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Delhi Ordinance Tussle : नौकरशाही-सरकार में बढ़ा टकराव तो अटकेगा विकास, अफसर रहेंगे कशमकश में

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Sun, 21 May 2023 06:26 AM IST
सार

इसकी जगह नौकरशाही की निगाह राजनिवास और केंद्रीय गृहमंत्रालय की तरफ रहेगी। ऐसा होने की सूरत में इसका असर सरकार के कामकाज और दिल्ली के विकास पर भी पड़ेगा।

Delhi : If the conflict between the bureaucracy and the government increases, development will get stuck
file pic..... - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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केंद्र सरकार का अध्यादेश आने के बाद दिल्ली सरकार और नौकरशाही में टकराव ज्यादा बढ़ा तो सरकार न तो अधिकारियों से प्रशासनिक काम ले सकेगी और न ही आईएएस अधिकारी किसी काम करने में आगे आएंगे।  इसकी जगह नौकरशाही की निगाह राजनिवास और केंद्रीय गृहमंत्रालय की तरफ रहेगी। ऐसा होने की सूरत में इसका असर सरकार के कामकाज और दिल्ली के विकास पर भी पड़ेगा।



ऐसे में राजधानी दिल्ली का विकास एक बार फिर राजनीति की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। एक-दूसरे को सियासी पटखनी देने की चल रही मौजूदा खींचतान के बीच अब दिल्ली सरकार के सेवा विभाग भी अखाड़ा बन गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधीन आए इस विभाग पर अध्यादेश के बाद अब उपराज्यपाल की सत्ता मजबूत हुई है। दिल्ली सरकार और नौकरशाही के बीच के टकराव पर असल मुसीबत विकास को लेकर है। दिल्ली सरकार के विभाग हों या एमसीडी इन दोनों को चलाने का जिम्मेदारी उन्हीं पर है। हालांकि, केंद्र शासित प्रदेश होने की वजह से कई विकास के काम की जिम्मेदारी और प्रशासनिक अधिकार केंद्र के पास है। लिहाजा, कुछ इलाकों को छोड़कर अन्य इलाकों जिसमें लुटियन की दिल्ली शामिल है में विकास बाधित नहीं होगा।


तीखे हमलों के कारण केंद्र हुआ मजबूर : सूत्र
दिल्ली सरकार की ओर से लगातार 'उकसाने' और केंद्र पर ‘तीखे हमले’ किए जाने के कारण केंद्र सरकार वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण के मामले देखने के लिए एक विशेष प्राधिकरण का गठन करने संबंधी अध्यादेश लाने पर मजबूर हुई। सूत्रों ने यह दावा किया।

केंद्र सरकार ने ‘दानिक्स’ (दिल्ली, अंडमान- निकोबार, लक्षद्वीप, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली (सिविल) सेवा) कैडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित करने के उद्देश्य से शुक्रवार को एक अध्यादेश जारी किया। सूत्रों ने कहा कि दिल्ली सरकार के आक्रामक प्रकृति वाले कदमों में से  अधिकतर का मकसद केंद्र को उकसाना प्रतीत होता है। 

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित करते वक्त ही अवधारणा की गई थी स्पष्ट  सूत्रों ने कहा कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है और दिल्ली के प्रशासन पर नियंत्रण होने से राजधानी शहर में प्रभावी समन्वय और सुरक्षा उपायों का कार्यान्वयन सुनिश्चित होता है। सूत्रों ने कहा कि जब 1991 में दिल्ली को एक सांविधानिक संशोधन के जरिये राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) घोषित किया गया था, तो यह अवधारणा स्पष्ट कर दी गई थी कि चूंकि दिल्ली केंद्र सरकार की सीट है, दोहरी सत्ता एवं जिम्मेदारी नहीं हो सकती। सूत्रों ने कहा कि दिल्ली में बड़ी संख्या में राजनयिक मिशन और अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं, ऐसे में केंद्र सरकार का नियंत्रण अन्य देशों की सरकारों के साथ प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करता है और इन राजनयिक संस्थाओं के सुचारू कामकाज को संभव बनाता है। उन्होंने कहा कि दुनियाभर में यही व्यवस्था है।

प्रदेश भाजपा ने साधा केजरीवाल पर निशाना
मीडिया से बातचीत में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने 11 मई से 19 मई तक के घटना को सिलसिलेवार ढंग से रखा और केजरीवाल सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि 11 मई को सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से निर्णय दिया गया जिसके बाद मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल ने बैठक की। 
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इसके बावजूद उनकी जल्दबाजी का नतीजा है कि 12 मई को ही दिल्ली सरकार सर्वोच्च न्यायालय चली गई और साथ ही सेवा सचिव आशीष मोरे को हटाने की सिफारिश करदी । 13 मई को मंत्री सौरभ भारद्वाज ने सतर्कता सचिव राजशेखर को हटाने का आदेश जारी कर दिया। 15 मई की बैठक में सभी अधिकारियों से घोटालों की फाइलें छीनना शुरू किया गया। 16 मई की रात अधिकारियों के कार्यालय के ताले तोड़कर कागजों की फोटोस्टेट की गई। 17 मई को आशीष मोरे की जगह एके सिंह को नियुक्त करने की फाइल उपराज्यपाल के पास आई और उसी दिन स्वीकृति मिली, लेकिन 18 मई को बिना उपराज्यपाल से बात किए मुख्य सचिव को बदलने का ऐलान कर दिया गया जो उनके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है। एक योजनाबद्ध साजिश की गई। 19 मई को सौरभ भारद्वाज ने ऐलान किया कि सेवा सचिव अभी तक नहीं बदले गए और फिर पांच मंत्री धरने पर बैठे व केजरीवाल की सौदेबाजी करने उपराज्यपाल से मिलने चले गए। वे दिल्ली की भलाई के लिए नहीं, बल्कि अपनी कमियों को छिपाने के लिए मनमानी कर रहे हैं। 

दिल्ली सरकार हो बर्खास्त, राष्ट्रपति शासन लगे : कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार ने शनिवार को कहा कि दिल्ली में बिगड़ती प्रशासनिक व्यवस्था और सरकार की अस्थिरता को देखते हुए राष्ट्रपति शासन लगाना चाहिए। प्रशासनिक अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर आम आदमी पार्टी और भाजपा में छिड़ी जंग के कारण दिल्ली में अराजकता का माहौल बन गया है। 

मंत्री सौरभ भारद्वाज प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण करने की जगह अधिकारियों को जबरन काम के लिए धमका रहे हैं। दिल्ली के इतिहास में पहली घटना है, जब दिल्ली के मंत्रियों ने मुख्य सचिव सर्विसेस पदेन प्रशासनिक अधिकारियों के ट्रांसफर ऑर्डर के लिए उपराज्यपाल निवास पर धरना दिया है। दिल्ली सरकार को बर्खास्त कर देना चाहिए। केजरीवाल के मंत्री अधिकारियों को धमकी दे रहे हैं। इससे पूर्व भी 19 फरवरी, 2018 को मुख्यमंत्री निवास पर मुख्य सचिव को बैठक के लिए बुलाकर मारपीट की गई थी। यह मामला कोर्ट में चल रहा है। तानाशाह रवैये के कारण अधिकारी भय के माहौल में जी रहे हैं। दिल्ली की जनता की अनदेखी हो रही है। दिल्ली सरकार प्रतिशोध की  भावना से काम कर रही है। केजरीवाल सरकार का असली     चेहरा दिल्ली की जनता के समक्ष उजागर हो चुका है। 

चुनावी जीत को निरंकुश सत्ता का पर्याय मानते हैं केजरीवाल : भाजपा
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने शनिवार को कहा कि मुख्यमंत्री केजरीवाल चुनावी जीत को निरंकुश सत्ता का पर्याय मानते हैं। उन्होंने और सांसद संजय सिंह ने दिल्ली की प्रशासकीय व्यवस्था को बनाए रखने के लिए लाए गए अध्यादेश को असंवैधानिक दर्शाने की कोशिश की है। वे निरंकुश सत्ता को अपनी सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को दबाने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। अध्यादेश में जो प्राधिकरण बनाया गया है, उसके मुखिया मुख्यमंत्री होंगे और तीन सदस्यीय प्राधिकरण बहुमत के आधार पर फैसले लेगा। इसके बावजूद जिस तरह केजरीवाल सरकार इससे घबरा रही है, उससे ऐसा लगता है कि उन्हें मालूम है कि जो मनमानी करना चाहता हूं, वो प्रशासकीय    प्राधिकरण में अधिकारियों के उपस्थित रहते मुमकिन नहीं है। ब्यूरो

फैसले से दिल्ली एक तरह से पूर्ण राज्य हो जाएगा : केंद्र
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा के लिए केंद्र सरकार की ओर से दायर पुनर्विचार याचिका में कहा गया कि केंद्र सरकार पूरे देश के लोगों की ओर से प्रशासित होती है जिनकी पूरे देश की राजधानी के शासन में अहम और प्रमुख रुचि है। 

उक्त फैसला भारत संघ के दिए गए उक्त तर्क की उपेक्षा करता है और यह मामले की जड़ तक जाता है क्योंकि यह भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची की प्रविष्टि 41 सूची दो पर निर्णय के प्रश्न से गंभीर रूप से जुड़ा हुआ है। इसमें कहा गया कि यह एक अनूठी विशेषता है जिसे राजधानी के नौकरशाही बुनियादी ढांचे के लिए एक समग्र सांविधानिक, विधायी और प्रशासनिक तंत्र प्रदान करते समय ध्यान में रखा जाना था और उसी कारण से तर्कों के दौरान महत्वपूर्ण जोर दिया गया था।

याचिका के अनुसार निर्णय एक विसंगति पैदा करता है, जिसमें अनुच्छेद 239एए (दिल्ली के संबंध में विशेष प्रावधान) के आधार पर संसद निर्विवाद रूप से विधायी वर्चस्व का आनंद लेती है, फिर भी जीएनसीटीडी (दिल्ली सरकार) के मंत्रियों की परिषद ‘अब सर्वोच्च्का र्यपालिका का आनंद लेगी’। इसका प्रभावी रूप से अर्थ है कि कार्यकारी शक्तियों के संबंध में केंद्रशासित प्रदेश होने के बावजूद दिल्ली को एक राज्य का दर्जा दिया गया है जोकि वह एक पूर्ण राज्य नहीं है। 

याचिका में कहा गया है कि नौ जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि 69वें संशोधन के बावजूद दिल्ली के लिए विधानसभा शुरू करने के बावजूद, दिल्ली का एनसीटी एक केंद्रशासित प्रदेश बना रहेगा। इसलिए, आक्षेपित निर्णय का प्रभाव संविधान के मूल ढांचे को नष्ट करने का है जिसमें अनुच्छेद 73, 239एए और 246 के संयुक्त पठन के प्रभाव से संघ के पास एक केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में विधायी और साथ ही कार्यकारी शक्तियां हैं जो 'राज्य' नहीं है।

काम रोकने के लिए लाया गया अध्यादेश 
आप से राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने शनिवार को कहा कि भाजपा मुख्यमंत्री से बहुत भयभीत है और नहीं चाहती कि दिल्ली में जनता का कोई काम हो। दिल्ली वालों के काम रोकने के लिए ही केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले को पलट दिया है। 

वहीं, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि आम आदमी पार्टी को दो बार विधानसभा और एक बार एमसीडी के अंदर प्रचंड बहुमत मिला, लेकिन केंद्र सरकार दिल्ली सरकार को काम करने से रोक रही है। हमारे शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्री को जेल में डाल दिया, ताकि स्कूल और अस्पताल न बन सकें। संजय सिंह ने कहा कि अब यह सवाल केवल केजरीवाल और पार्टी का नहीं रह गया है, बल्कि अब यह सवाल भारत के महान लोकतंत्र, संविधान और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा का हो गया है। दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को तीन बार चुना है। जनता ने 90 प्रतिशत से अधिक सीटें देकर चुना। इसके बावजूद दिल्ली की चुनी हुई सरकार के कामों में अडंगा लगाने के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आई है। 

वहीं, मंत्री आतिशी ने कहा कि अध्यादेश के अनुसार दिल्ली में ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए एक नई अथॉरिटी नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी बनाई जाएगी। इसमें तीन सदस्य होंगे और चेयरपर्सन मुख्यमंत्री होंगे। इसके सदस्य दिल्ली के मुख्य सचिव और गृह सचिव होंगे, लेकिन मुख्य सचिव व गृह सचिव को चुनी हुई सरकार नहीं चुनेगी, इन्हें केंद्र सरकार चुनेगी। इस हिसाब से इस अथॉरिटी में मुख्यमंत्री चेयरपर्सन तो होंगे, लेकिन निर्णय नहीं ले पाएंगे। अथॉरिटी बहुमत से फैसला लेगी और अगर गलती से कोई ऐसा निर्णय लिया जो केंद्र को पसंद नहीं तो उसे एलजी पलट सकेंगे। ऐसे ये चिट भी आपकी और पट भी आपकी जैसी स्थिति है।

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