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कार्बेट टाइगर रिजर्व में बाघ के शिकार मामले में वन विभाग और रिजर्व प्रशासन का झूठ आखिर खुल ही गया। मौके से मिले मांस की जांच रिपोर्ट को वन विभाग तो दबाने की जुगत में जुटा रहा। लेकिन सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्लूआईआई) ने साफ कर दिया कि मांस मादा बाघ (बाघिन) का था।
इससे साफ हो गया कि रिजर्व में बाघ का ही शिकार किया गया था। कार्बेट पार्क की बिजरानी रेंज में मई 2012 में शिकार का मामला सामने आया था। अमर उजाला ने इसका खुलासा किया था। मौके से वन्यजीव का मांस और खड़के बरामद किए गए थे। शुरुआत से ही आशंका जताई जा रही थी कि यहां बाघों का शिकार किया गया।
हालांकि, प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव एसएस शर्मा और निदेशक कार्बेट टाइगर रिजर्व आरके मिश्रा शुरुआत से ही इस बात को नकारते रहे। अधिकारी इस कोशिश में जुटे रहे कि सच सामने न आ सके। वे बार-बार बरामद मांस को हिरन का बताते रहे। मांस को डीएनए जांच के लिए डब्लूआईआई भेजा गया। खास बात यह थी कि डब्लूआईआई तीन जुलाई 2012 को ही जांच रिपोर्ट कार्बेट निदेशक को भेज चुका था, लेकिन विभाग बार-बार रिपोर्ट न मिलने की बात कहता रहा।
आठ जनवरी को भाजपा सांसद मेनका गांधी से मुलाकात के दौरान डब्लूआईआई के निदेशक पीआर सिन्हा ने पुष्टि की कि बिजरानी में बाघ का ही शिकार किया गया था। लेकिन, प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव ने तब भी सिन्हा की बात को साफ नकार दिया था। आखिर पीपुल फॉर एनिमल्स (पीएफए) की गौरी मौलेखी ने आरटीआई के तहत डब्लूआईआई से रिपोर्ट की जानकारी मांगी। इसमें पुष्टि की गई है कि कार्बेट से बरामद मांस बाघिन का था।
बिजरानी रेंज में बाघिन के शिकार का मामला वन्यजीव विंग शुरू से छुपाती रही। यह स्थिति बेहद दुखद है। ऐसी कार्यशैली में बदलाव लाना चाहिए।
- डॉ. आरबीएस रावत, प्रमुख वन संरक्षक
प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव और निदेशक कार्बेट टाइगर रिजर्व को हटाने की मांग करेंगे। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। एक बाघिन के मौत का मतलब कई बाघों की मौत है।
- गौरी मौलेखी, पीएफए उत्तराखंड
कार्बेट टाइगर रिजर्व में बाघ के शिकार मामले में वन विभाग और रिजर्व प्रशासन का झूठ आखिर खुल ही गया। मौके से मिले मांस की जांच रिपोर्ट को वन विभाग तो दबाने की जुगत में जुटा रहा। लेकिन सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्लूआईआई) ने साफ कर दिया कि मांस मादा बाघ (बाघिन) का था।
इससे साफ हो गया कि रिजर्व में बाघ का ही शिकार किया गया था। कार्बेट पार्क की बिजरानी रेंज में मई 2012 में शिकार का मामला सामने आया था। अमर उजाला ने इसका खुलासा किया था। मौके से वन्यजीव का मांस और खड़के बरामद किए गए थे। शुरुआत से ही आशंका जताई जा रही थी कि यहां बाघों का शिकार किया गया।
हालांकि, प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव एसएस शर्मा और निदेशक कार्बेट टाइगर रिजर्व आरके मिश्रा शुरुआत से ही इस बात को नकारते रहे। अधिकारी इस कोशिश में जुटे रहे कि सच सामने न आ सके। वे बार-बार बरामद मांस को हिरन का बताते रहे। मांस को डीएनए जांच के लिए डब्लूआईआई भेजा गया। खास बात यह थी कि डब्लूआईआई तीन जुलाई 2012 को ही जांच रिपोर्ट कार्बेट निदेशक को भेज चुका था, लेकिन विभाग बार-बार रिपोर्ट न मिलने की बात कहता रहा।
आठ जनवरी को भाजपा सांसद मेनका गांधी से मुलाकात के दौरान डब्लूआईआई के निदेशक पीआर सिन्हा ने पुष्टि की कि बिजरानी में बाघ का ही शिकार किया गया था। लेकिन, प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव ने तब भी सिन्हा की बात को साफ नकार दिया था। आखिर पीपुल फॉर एनिमल्स (पीएफए) की गौरी मौलेखी ने आरटीआई के तहत डब्लूआईआई से रिपोर्ट की जानकारी मांगी। इसमें पुष्टि की गई है कि कार्बेट से बरामद मांस बाघिन का था।
बिजरानी रेंज में बाघिन के शिकार का मामला वन्यजीव विंग शुरू से छुपाती रही। यह स्थिति बेहद दुखद है। ऐसी कार्यशैली में बदलाव लाना चाहिए।
- डॉ. आरबीएस रावत, प्रमुख वन संरक्षक
प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव और निदेशक कार्बेट टाइगर रिजर्व को हटाने की मांग करेंगे। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। एक बाघिन के मौत का मतलब कई बाघों की मौत है।
- गौरी मौलेखी, पीएफए उत्तराखंड