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कर्नाटक में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है और वहां सत्तारूढ़ कांग्रेस दो अंकों में सिमट गई है। इस दक्षिणी राज्य में भाजपा के इस प्रदर्शन का श्रेय नरेंद्र मोदी और अमित शाह को दिया जाना चाहिए। यदि निष्पक्षता से विश्लेषण किया जाए, तो राहुल गांधी पूरी तरह से विफल साबित हुए हैं।
यह गौर करने वाली बात है कि राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को इस बड़ी हार का सामना कर पड़ रहा है। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में क्या इसका यह मतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की ओर से भाजपा को कोई बड़ी चुनौती नहीं मिलने जा रही? क्या भाजपा को सिर्फ क्षेत्रीय दलों से ही चुनौती मिलेगी? और क्या कांग्रेस को फिर से सोनिया गांधी को कमान सौंपनी चाहिए या फिर प्रियंका को आगे बढ़ाना चाहिए?
भाजपा ने बी एस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार जरूर घोषित किया था, लेकिन पार्टी की जीत में प्रधानमंत्री मोदी की 21 रैलियों ने अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने की पहल कर एक भारी भूल की। इससे यह समुदाय बंट गया और इसका राजनीतिक फायदा भाजपा को हुआ।
भाजपा की इस जीत में मोदी के अलावा दूसरे बड़े किरदार हैं अमित शाह, जिन्होंने चुनाव के दौरान पूरे कर्नाटक में तकरीबन 45,000 किलोमीटर लंबा सफर तय किया और प्रदेश में 845 नुक्कड़ सभाएं कीं! इन पंक्तियों के लेखक को उन्होंने बताया था कि रोज प्रचार के बाद जब वह लौटते हैं तो उनके कुर्ते में एक इंच मोटी धूल जमा हो जाती है। उनके प्रचार को करीब से देखने के बाद मुझे लगता है कि उन्होंने जो दो मुद्दे उठाए वह मतदाताओं पर असर कर गए। अपने भाषणों में वह कहते थे कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने नेशनल हेराल्ड की पांच हजार करोड़ रुपये की संपत्ति की हेराफेरी की है और दोनों जमानत पर हैं। दूसरी बात वह कहते थे कि सिद्धारमैया सत्तर लाख रुपये कीमत की कलाई घड़ी पहनते हैं।
कांग्रेस ने जनता दल (एस) को समर्थन देने का ऐलान कर बड़ा दांव चला है। लेकिन नतीजे आने से पहले कांग्रेस में व्याप्त घबराहट किसी से छिपी नहीं थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिकायत की कि वह कांग्रेस के नेताओं को धमका रहे हैं और संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं। आखिर कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी ने राष्ट्रपति को यह पत्र क्यों नहीं लिखा? क्या उन्हें किसी तरह के राजनीतिक नुकसान का अंदेशा था? चूंकि कर्नाटक के चुनाव हो चुके हैं, ऐसे में यही सही समय है जब कांग्रेस नेताओं के पुराने मामलों को देखा जाए। मसलन, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने पी चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई की है।
कर्नाटक में कांग्रेस ने जनता दल (एस) से हाथ मिलाने की पेशकश की है, इससे उसकी स्थिति का पताचलता है। जनता दल (एस) को उससे करीब आधी सीटें मिली हंै, लेकिन खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए उसे जनता दल (एस) के पास जाना पड़ा है। वास्तव में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के समक्ष आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या देश भर के पैंतीस से अधिक क्षेत्रीय दलों में वह अपनी स्वीकार्यता बढ़ा पाएगी? यदि भाजपा कर्नाटक में सरकार बनाने में सफल हो जाती है, तो कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका होगा, जिसे दिसंबर में हिंदी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव में जाना है।
कर्नाटक में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है और वहां सत्तारूढ़ कांग्रेस दो अंकों में सिमट गई है। इस दक्षिणी राज्य में भाजपा के इस प्रदर्शन का श्रेय नरेंद्र मोदी और अमित शाह को दिया जाना चाहिए। यदि निष्पक्षता से विश्लेषण किया जाए, तो राहुल गांधी पूरी तरह से विफल साबित हुए हैं।
यह गौर करने वाली बात है कि राहुल के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को इस बड़ी हार का सामना कर पड़ रहा है। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में क्या इसका यह मतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की ओर से भाजपा को कोई बड़ी चुनौती नहीं मिलने जा रही? क्या भाजपा को सिर्फ क्षेत्रीय दलों से ही चुनौती मिलेगी? और क्या कांग्रेस को फिर से सोनिया गांधी को कमान सौंपनी चाहिए या फिर प्रियंका को आगे बढ़ाना चाहिए?
भाजपा ने बी एस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार जरूर घोषित किया था, लेकिन पार्टी की जीत में प्रधानमंत्री मोदी की 21 रैलियों ने अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने की पहल कर एक भारी भूल की। इससे यह समुदाय बंट गया और इसका राजनीतिक फायदा भाजपा को हुआ।
भाजपा की इस जीत में मोदी के अलावा दूसरे बड़े किरदार हैं अमित शाह, जिन्होंने चुनाव के दौरान पूरे कर्नाटक में तकरीबन 45,000 किलोमीटर लंबा सफर तय किया और प्रदेश में 845 नुक्कड़ सभाएं कीं! इन पंक्तियों के लेखक को उन्होंने बताया था कि रोज प्रचार के बाद जब वह लौटते हैं तो उनके कुर्ते में एक इंच मोटी धूल जमा हो जाती है। उनके प्रचार को करीब से देखने के बाद मुझे लगता है कि उन्होंने जो दो मुद्दे उठाए वह मतदाताओं पर असर कर गए। अपने भाषणों में वह कहते थे कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने नेशनल हेराल्ड की पांच हजार करोड़ रुपये की संपत्ति की हेराफेरी की है और दोनों जमानत पर हैं। दूसरी बात वह कहते थे कि सिद्धारमैया सत्तर लाख रुपये कीमत की कलाई घड़ी पहनते हैं।
कांग्रेस ने जनता दल (एस) को समर्थन देने का ऐलान कर बड़ा दांव चला है। लेकिन नतीजे आने से पहले कांग्रेस में व्याप्त घबराहट किसी से छिपी नहीं थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिकायत की कि वह कांग्रेस के नेताओं को धमका रहे हैं और संविधान का उल्लंघन कर रहे हैं। आखिर कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी ने राष्ट्रपति को यह पत्र क्यों नहीं लिखा? क्या उन्हें किसी तरह के राजनीतिक नुकसान का अंदेशा था? चूंकि कर्नाटक के चुनाव हो चुके हैं, ऐसे में यही सही समय है जब कांग्रेस नेताओं के पुराने मामलों को देखा जाए। मसलन, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने पी चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई की है।
कर्नाटक में कांग्रेस ने जनता दल (एस) से हाथ मिलाने की पेशकश की है, इससे उसकी स्थिति का पताचलता है। जनता दल (एस) को उससे करीब आधी सीटें मिली हंै, लेकिन खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए उसे जनता दल (एस) के पास जाना पड़ा है। वास्तव में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के समक्ष आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या देश भर के पैंतीस से अधिक क्षेत्रीय दलों में वह अपनी स्वीकार्यता बढ़ा पाएगी? यदि भाजपा कर्नाटक में सरकार बनाने में सफल हो जाती है, तो कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका होगा, जिसे दिसंबर में हिंदी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव में जाना है।