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अभी हाल ही में हमने अपना 70वां गणतंत्र दिवस मनाया, लेकिन गरीबी और अभाव की समस्या अब भी हमारे देश के लगभग 30 करोड़ लोगों के जीवन को अपंग बना रही है। जैसा कि संसद में प्रवेश करने के बाद से लगभग हर बार बजट भाषण की बहस में भाग लेते हुए मैंने कहा है कि सिर्फ एक दशक तक आर्थिक विकास की दर उच्च दोहरे अंक में हो जाए, तो इतनी बड़ी संख्या में भारतीयों को गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है। विकास का मतलब सिर्फ उद्यमशीलता और आर्थिक गतिविधियां बढ़ाना भर नहीं है, बल्कि यह सभी भारतीयों के लिए समान अवसर और समृद्धि के साथ भारत निर्माण के अंतिम लक्ष्य का एक साधन भी है।
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गैर-कर अनुपालन से कर अनुपालन वाले समाज की ओर
समृद्ध भारत निर्माण का पहला कदम ऐसे भारत का निर्माण है, जहां हर भारतीय अपनी भूमिका निभाएं और अपने उत्तरदायित्वों का पूरी तरह पालन करें। चाणक्य ने अपने महान ग्रंथ अर्थशास्त्र में कहा है कि नागरिकों से कर संग्रह इस तरह से किया जाना चाहिए, जैसे मधुमक्खियां फूलों से मधु संग्रह करती हैं। कहने का मतलब कि नागरिकों से कर संग्रह उन्हें कष्ट पहुंचाए बिना किया जाना चाहिए और उचित राशि ही कर के रूप में लेनी चाहिए। इन वर्षों में ईमानदार करदाताओं की त्रासदी यह थी कि उन्हें न केवल अपने हिस्से का कर अदा करना पड़ता था, बल्कि उन लोगों के हिस्से का कर अदा करने के लिए भी मजबूर किया जाता था, जो कर चुकाने से बचते थे।
पिछले सात दशक में ज्यादातर समय भारत एक निम्न कर-जीडीपी वाला राष्ट्र होने के कारण बदनाम रहा। इस समस्या से निपटने के लिए पहला वास्तविक सुधार प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में किया गया, जब उनकी सरकार ने कर अनुपालन का विस्तार करने के लिए पहली कर सूचना प्रणाली और प्रौद्योगिकी का उपयोग किया। पिछले साल अक्तूबर में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा जारी किए गए आकलन वर्ष 2017-18 के इनकम टैक्स रिटर्न का आंकड़ा दिखाता है कि भारत में वास्तविक करदाताओं का दायरा कितना सीमित है। अनुमानित 8.6 लाख डॉक्टरों में से केवल 4.2 लाख या उससे कम डॉक्टर ही आयकर चुकाते हैं। तेरह लाख वकीलों में से मात्र 2.6 लाख ही कर चुकाते हैं। 2.8 लाख चार्टर्ड अकाउंटेंटों में से केवल एक तिहाई या एक लाख ही कर चुकाते हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार ने करदाताओं के दायरे के विस्तार और कर अनुपालन को अपना लक्ष्य बनाया है। नोटबंदी सहित इसके प्रयासों और सुधारों ने प्रत्यक्ष कर-जीडीपी अनुपात को दस साल के उच्चतम स्तर यानी लगभग छह प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। यह पिछले चार वर्षों में दाखिल किए गए रिटर्न में 80 फीसदी बढ़ोतरी को दर्शाता है। गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2013-14 में 3.79 करोड़ रिटर्न दाखिल किए गए, जो कि वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़कर 6.85 करोड़ हो गए। जैसे ही हम अर्थव्यवस्था के बढ़ते औपचारिककरण और टैक्स नेट के विस्तार के लिए प्रौद्योगिकी और निगरानी का उपयोग बढ़ाएंगे, यह आगे और बढ़ेगा। सात दशकों से जारी टैक्स चोरी की संस्कृति को खत्म करना न तो सरल है और न ही आसान। मुख्य रूप से इसकी आलोचना हुई है और इस पर आक्रमण किया गया है, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में हमें इस रास्ते पर आगे बढ़ना होगा।
आगे का रास्ता
कर विवाद संबंधी मुकदमे को कम करना-आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, मार्च, 2017 तक आयकर अपीलीय अधिकरण, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में प्रत्यक्ष कर से संबंधित लगभग 1,37,176 मामले विचाराधीन हैं और आयुक्त अपील, कस्टम, एक्साइज ऐंड सर्विस टैक्स अपीलीय ट्रिब्यूनल, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में कुल 1.45 लाख अपील लंबित हैं। मार्च, 2017 के अंत तक मुकदमेबाजी (अपीलीय न्यायाधिकरण और ऊपर की अदालतों) में अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष कर के लगभग 7.58 लाख करोड़ रुपये के दावे अटके थे, जो जीडीपी के 4.7 फीसदी से ज्यादा है। प्रस्तावित प्रत्यक्ष कर संहिता को कर मुकदमेबाजी को कम करने पर केंद्रित होना चाहिए, जिसमें निवेश भावना और व्यापार करने में आसानी प्रत्यक्ष निहितार्थ हों।
प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना-सरकार को, विशेष रूप से उसके राजस्व विभागों को प्रौद्योगिकी का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए, डेटाबेस, एनालिटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल और एप्लिकेशन का उपयोग करना चाहिए, जो कर नेट विस्तार के अवसरों की पहचान करते हैं। ये सभी चीजें पहले से ही जीएसटीएन, आईटी रिटर्न, पैन और वित्तीय क्षेत्र के डेटा के साथ हैं। टैक्स नेट विस्तार के अगले चरण को संचालित करने के लिए वित्त मंत्रालय के भीतर एक अच्छी तरह से मानवयुक्त एनालिटिक्स डिवीजन या समूह की जरूरत है।
कम कर और उच्च अनुपालन का भविष्य
भारत का भविष्य कम कर दर और उच्च अनुपालन वाले राष्ट्र के रूप में होना चाहिए, जहां हर नागरिक सामान्य दर पर कर का भुगतान अनिवार्य रूप से करे। यह स्पष्ट रूप से नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक दृष्टि के लिए महत्वपूर्ण है, जैसा कि जीएसटी और व्यक्तिगत कराधान के क्रमिक परिष्करण के साथ देखा गया है। यह न केवल चाणक्य की अर्थव्यवस्था की पुरानी दृष्टि को ध्यान रखना है, बल्कि सभी करदाताओं के लिए समान रास्ता बनाना भी है।
कॉरपोरेट और व्यक्तिगत करदाता दशकों से एक अनुचित और असमान व्यवस्था के शिकार हुए हैं, जहां ईमानदार लोगों को देश के विकास का खामियाजा भुगतना पड़ता है, और कर चोरी करने वाले लोग बिना किसी दंड के पूरा आनंद लेते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था के परिवर्तन का पहला चरण अभी चल रहा है और अगले कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक दृष्टि से सभी के लिए मध्यम दर पर करों की नई व्यवस्था लागू होगी।