बिजली संयंत्रों के लिए कोयला आपूर्ति एक बड़ी चुनौती है। लगभग 10 लाख करोड़ की लागत वाली स्वीकृत कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं का निर्माण लंबित है। जब कोयला ब्लॉकों की नीलामी शुरू होगी, तभी ये परियोजनाएं आगे बढ़ सकती हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या ये परियोजनाएं आर्थिक रूप से उपयुक्त हैं।
बेशक कोयला बिजली उत्पादन का सबसे सस्ता विकल्प है, पर भविष्य में कोयले से बिजली उत्पादन कई कारणों से कठिन हो सकता है। प्रमुख कारण यही है कि ग्लोबल वार्मिंग के खतरों के चलते भारत पर कोयले से बिजली उत्पादन पर अंकुश लगाने का दबाव बन सकता है, क्योंकि इससे भारी मात्रा में कार्बन डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। इसके चलते नए बिजली घरों के लिए आर्थिक उपलब्धता में भी रुकावट आ सकती है।
इसके अलावा, कोयले की लागत भविष्य में बढ़ सकती है, क्योंकि खनन और परिवहन की लागत, दोनों में बढ़ने की प्रवृत्ति है। कई कारणों से जब पिछले दिनों कोयला आयात करना पड़ा, तो भारत के भुगतान शेष का घाटा, जो पहले से ही ज्यादा था, और बढ़ने लगा। एक समय तो रुपया कमजोर होकर 69 रुपये प्रति डॉलर के आसपास पहुंच गया, जिससे कीमतों में भारी वृद्धि देखने को मिली। तीसरी बात यह है कि कोयला आधारित बिजली घरों के लिए पानी की भी आवश्यकता ज्यादा होती है।
अगर सौर ऊर्जा संयंत्र की बात करें, तो दीर्घकालीन अर्थों में वह सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है। ताप ऊर्जा संयंत्र की लागत चार से पांच करोड़ रुपये प्रति मेगावाट है, जबकि सौर ऊर्जा संयंत्र की लागत सात करोड़ रुपये प्रति मेगावाट है। सही है कि सौर ऊर्जा संयंत्र में दिन के समय ही बिजली पैदा हो सकती है, लेकिन इससे मुफ्त बिजली पैदा होती है। यही नहीं, अब सौर ऊर्जा का संप्रेषण भी ग्रिड में होना संभव हो रहा है। बिजली का वितरण भी हमारे देश में एक बड़ी समस्या है। घरों की छतों पर सौर पैनल लगाकर बिजली उपलब्ध कराने से वितरण की अकुशलताएं खत्म की जा सकती हैं। व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी बिजली की आवश्यकता की पूर्ति सौर ऊर्जा से कर सकते हैं।
एक ओर परंपरागत तरीके से बिजली निर्माण महंगा होता जा रहा है, दूसरी ओर सौर ऊर्जा संयंत्रों की लागत घटती जा रही है। पहले सोलर पैनल की प्रति वाट की लागत जहां पांच डॉलर तक थी, अब वह घटकर एक डॉलर से भी कम पर आ गई है। ऐसे में यदि पूंजी लागत के हिसाब से सौर ऊर्जा की निर्माण लागत अभी परंपरागत ऊर्जा से थोड़ी ज्यादा भी हो, तो भी दीर्घकालीन दृष्टि से सस्ती ही पड़ेगी। साथ ही दूर-दराज के क्षेत्रों में सौर ऊर्जा एक सस्ता विकल्प है, क्योंकि वितरण के खर्चे बच जाते हैं।
सबसे बड़ी बात है कि सौर ऊर्जा से पर्यावरण पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि अभी भारत में बिजली का उपभोग विकसित देशों के मुकाबले कम है, लेकिन जैसे-जैसे आय बढ़ेगी, ऊर्जा की खपत भी बढ़ेगी। ऐसे में ताप संयंत्रों से जरूरत भर बिजली की आपूर्ति मुश्किल है। जरूरत इस बात की है कि सौर, पवन और अन्य गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता दी जाए और उनसे भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए।
- स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक
बिजली संयंत्रों के लिए कोयला आपूर्ति एक बड़ी चुनौती है। लगभग 10 लाख करोड़ की लागत वाली स्वीकृत कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं का निर्माण लंबित है। जब कोयला ब्लॉकों की नीलामी शुरू होगी, तभी ये परियोजनाएं आगे बढ़ सकती हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या ये परियोजनाएं आर्थिक रूप से उपयुक्त हैं।
बेशक कोयला बिजली उत्पादन का सबसे सस्ता विकल्प है, पर भविष्य में कोयले से बिजली उत्पादन कई कारणों से कठिन हो सकता है। प्रमुख कारण यही है कि ग्लोबल वार्मिंग के खतरों के चलते भारत पर कोयले से बिजली उत्पादन पर अंकुश लगाने का दबाव बन सकता है, क्योंकि इससे भारी मात्रा में कार्बन डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। इसके चलते नए बिजली घरों के लिए आर्थिक उपलब्धता में भी रुकावट आ सकती है।
इसके अलावा, कोयले की लागत भविष्य में बढ़ सकती है, क्योंकि खनन और परिवहन की लागत, दोनों में बढ़ने की प्रवृत्ति है। कई कारणों से जब पिछले दिनों कोयला आयात करना पड़ा, तो भारत के भुगतान शेष का घाटा, जो पहले से ही ज्यादा था, और बढ़ने लगा। एक समय तो रुपया कमजोर होकर 69 रुपये प्रति डॉलर के आसपास पहुंच गया, जिससे कीमतों में भारी वृद्धि देखने को मिली। तीसरी बात यह है कि कोयला आधारित बिजली घरों के लिए पानी की भी आवश्यकता ज्यादा होती है।
अगर सौर ऊर्जा संयंत्र की बात करें, तो दीर्घकालीन अर्थों में वह सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है। ताप ऊर्जा संयंत्र की लागत चार से पांच करोड़ रुपये प्रति मेगावाट है, जबकि सौर ऊर्जा संयंत्र की लागत सात करोड़ रुपये प्रति मेगावाट है। सही है कि सौर ऊर्जा संयंत्र में दिन के समय ही बिजली पैदा हो सकती है, लेकिन इससे मुफ्त बिजली पैदा होती है। यही नहीं, अब सौर ऊर्जा का संप्रेषण भी ग्रिड में होना संभव हो रहा है। बिजली का वितरण भी हमारे देश में एक बड़ी समस्या है। घरों की छतों पर सौर पैनल लगाकर बिजली उपलब्ध कराने से वितरण की अकुशलताएं खत्म की जा सकती हैं। व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी बिजली की आवश्यकता की पूर्ति सौर ऊर्जा से कर सकते हैं।
एक ओर परंपरागत तरीके से बिजली निर्माण महंगा होता जा रहा है, दूसरी ओर सौर ऊर्जा संयंत्रों की लागत घटती जा रही है। पहले सोलर पैनल की प्रति वाट की लागत जहां पांच डॉलर तक थी, अब वह घटकर एक डॉलर से भी कम पर आ गई है। ऐसे में यदि पूंजी लागत के हिसाब से सौर ऊर्जा की निर्माण लागत अभी परंपरागत ऊर्जा से थोड़ी ज्यादा भी हो, तो भी दीर्घकालीन दृष्टि से सस्ती ही पड़ेगी। साथ ही दूर-दराज के क्षेत्रों में सौर ऊर्जा एक सस्ता विकल्प है, क्योंकि वितरण के खर्चे बच जाते हैं।
सबसे बड़ी बात है कि सौर ऊर्जा से पर्यावरण पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। हालांकि अभी भारत में बिजली का उपभोग विकसित देशों के मुकाबले कम है, लेकिन जैसे-जैसे आय बढ़ेगी, ऊर्जा की खपत भी बढ़ेगी। ऐसे में ताप संयंत्रों से जरूरत भर बिजली की आपूर्ति मुश्किल है। जरूरत इस बात की है कि सौर, पवन और अन्य गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता दी जाए और उनसे भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए।
- स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक