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कर्तव्यपालन ही सच्चा धर्म है
Yashwant Vyas
Updated Mon, 07 May 2012 12:00 PM IST
कठोपनिषद् के शांतिपाठ में प्रार्थना की गई है, मैं ब्रह्म का (मनुष्य जीवन के सर्वोत्कृष्ट लक्ष्य का) निराकरण न करूं। ब्रह्म मेरा निराकरण न करे। मैं बराबर आत्मोत्कर्ष के मार्ग पर अग्रसर होता रहूं। उपनिषद् में ऋषि कहते हैं, हे अज्ञान से ग्रस्त लोगो। उठो, जागो और श्रेष्ठ जनों के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करो। जिस प्रकार चाकू की धार तीक्ष्ण होती है और उसे छुआ नहीं जा सकता, उसी प्रकार आत्मज्ञान का रास्ता दुर्गम होता है, पर जो दृढ़ संकल्पी होता है, वह निश्चय ही सफल होता है।
कहा भी जाता है, सत्य और सदाचार के मार्ग में अनेक बाधाएं आने की आशंका रहती हैं, पर दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति कदापि विचलित नहीं होता। वह कांटों भरे रास्ते पर युक्तिपूर्वक आगे बढ़ता जाता है। जिसे प्रमाद या निराशा घेर लेती है, वह भयभीत होकर लौट आता है और अपना पुरुषार्थ और जीवन निरर्थक बना लेता है। अतः संकल्प और साहस के साथ निरंतर आगे बढ़ते रहने में ही कल्याण है।
यजुर्वेद में भी कहा गया है, मनुष्य को चाहिए कि वह अपने कर्तव्य को दृढ़ता के साथ पूर्ण करता हुआ आगे बढ़े। जैसे आकाश और पृथ्वी अपने-अपने कर्तव्य के पालन में कभी आलस्य नहीं करते, उसी प्रकार मनुष्य को भी आलस्य छोड़ अपने देश, माता, पिता, परिवार और समाज के प्रति अपने कर्तव्यपालन में निरंतर लगे रहना चाहिए। जब तक आत्मज्ञान प्राप्त न कर लें, तब तक हमारी जीवन यात्रा अधूरी ही रहेगी।
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