नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित इंडियन कॉफी हाउस में कॉफी पीने को प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने एशिया की 25 विश्वसनीय अनुभूतियों में शुमार किया है। राजधानी दिल्ली के मध्य में स्थित यह कॉफी हाउस दशकों से राजनेताओं, लेखकों, पत्रकारों और बुजुर्ग नागरिकों के लिए बौद्धिक बहस का केंद्र रहा है। डॉ राममनोहर लोहिया, इंदिरा गांधी, लालकृष्ण आडवाणी, पी के धूमल जैसे कई राजनेता एवं बिष्णु प्रभाकर जैसे कई लेखक यहां नियमित आते रहे।
यों तो ब्रिटिश राज में इंडिया काफी हाउस का संचालन 1940 के दशक में कॉफी बोर्ड ने शुरू किया था, पर जब देश स्वतंत्र हुआ, तो 1950 के दशक में इंडियन कॉफी हाउस को बंद कर दिया गया और कॉफी बोर्ड ने इनमें कार्यरत लोगों को नौकरी से निकाल दिया। तब कॉफी हाउस के कर्मचारियों ने कम्युनिस्ट नेता ए के गोपालन के नेतृत्व में एक सोसाइटी बनाकर कॉफी हाउस की बागडोर अपने हाथों में संभाली।
अब इसका नाम इंडियन कॉफी हाउस हो गया। पहली इंडियन कॉफी वर्कर कोऑपरेटिव सोसाइटी की स्थापना 19 अगस्त, 1957 को बंगलुरु में की गई और पहला इंडियन कॉफी हाउस नई दिल्ली में 27 अक्तूबर, 1957 को खुला। इसके बाद इंडियन कॉफी हाउस का विस्तार देश के तमाम प्रमुख शहरों में किया गया। केरल में सबसे ज्यादा इंडियन कॉफी हाउस हैं।
देश भर में 13 कोऑपरेटिव सोसाइटियां हैं, जो कॉफी हाउस चलाती हैं। इन कॉफी हाउसों का प्रबंधन कर्मचारियों द्वारा चुनी गई प्रबंधन समिति करती है। 1950 के दशक में दिल्ली में एक कप कॉफी का मूल्य एक आना था, पर आज उसका मूल्य 15 रुपये प्रति कप हो गया है। फिर भी इसके मुरीद इसे सस्ता ही मानते हैं।