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विश्व सिनेमा की जादुई दुनिया: पेरु का सिने-इतिहास- धीमी गति से आगे बढ़ता सिनेमा

Dr. Vijay Sharma डॉ. विजय शर्मा
Updated Sun, 28 May 2023 12:46 PM IST
सार

पेरु सिनेमा में ‘द मिल्क ऑफ सोरो’ फिल्म को 16 विभिन्न पुरस्कार प्राप्त हुए, साथ ही यह फिल्म ऑस्कर के लिए नामांकित भी हुई थी। 2009 की इस फिल्म को बर्लिन समारोह में सर्वोत्तम फिल्म का गोल्डेन बेयर पुरस्कार मिला था।

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द मिल्क ऑफ सोरो फिल्म का दृश्य - फोटो : Twitter

विस्तार
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पेरु सिनेमा के विषय में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, खासकर इंग्लिश में। यहां सिनेमा निर्माण देर से प्रारंभ हुआ और इसकी गति बहुत धीमी रही। लीमा में 1934 में एल्बर्टो सान्टाना ने पहली फिल्म ‘रेसाका’ निर्देशित की। धीमी गति के बावजूद यहां के सिने-प्रेमियों में राष्ट्रीय अस्मिता को पकड़ने, उसे फिल्माने और लोगों का ध्यान उसकी ओर आकर्षित करने की न केवल इच्छा रही है वरन वे इसमें सक्षम भी हैं।



लैटिन अमेरिका के अन्य देशों की भांति पेरु का सिनेमा भी वहां के राजनैतिक दृश्य को प्रस्तुत करने में सफल रहा है। वे अपनी सृजनात्मक कुशलता से विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचने का कार्य करते रहे हैं।


पिछली सदी के पचास के दशक में एक मास्टरपीस ‘ला पेरीचोली’ नाम से बनी थी, फिल्म एंडियन समुदाय की एक युवा स्त्री के हाई सोसायटी में प्रेम तथा राजनैतिक यात्रा का रोमांचक अनुभव प्रस्तुत करती है। 18वीं सदी की प्रसिद्ध स्त्री की यह मिनी सिरीज खूब लोकप्रिय हुई थी।

पेरु का सिनेमा भले ही विश्व सिनेमा का एक छोटा-सा अंश हो पर पेरु के सिनेमा में जादूई यथार्थवाद के तत्व मिलना कोई अजूबा नहीं है, क्योंकि यहां का सिनेमा लैटिन अमेरिका के लेखकों से प्रभावित रहा है। उस पर मारिओ वर्गास लोसा, गैब्रियल गार्षा मार्केस जैसे लेखकों की छाप देखी जा सकती है।
 

नब्बे के दशक में पेरु सिनेमा

मारियो वर्गास लोसा के कार्य ‘कैप्टन पैन्टोजा एंड द स्पेशल सर्विसेस’ पर स्पेनिश भाषा में प्रसिद्ध सिने-निर्देशक फ्रांसिस्को जोस लोम्बार्डी ने 1999 में इसी नाम से फिल्म बनाई। 137 मिनट की इस कॉमेडी-ड्रामा फिल्म में पेरु की सेना के एक बहुत काबिल कैप्टन पैन्टोजा को एक विशिष्ट कार्य सौंपा जाता है। उसे सुदूर जंगल में पोस्टेड सैनिकों की यौन आवश्यकता की पूर्ति करनी है। व्यंग्य-हास्य से भरपूर फिल्म पेरु के प्रशासन के विषय में बहुत कुछ कहती है। 

इसी बीच 1998 में लोम्बार्डी ने 120 मिनट की एक ड्रामा फिल्म ‘डोन्ट टेल एनीवन’ बनाई। यह फिल्म अपनी कहानी पेरु के टॉक शो के होस्ट जाइम बेली के जीवन से उठाती है जिसका नाम फिल्म में जोक्विन है। वह उच्च वर्ग से आता है और बचपन से उसे अपनी यूनिक पहचान को लेकर संशय है। किशोर होने पर उसके मैचो पिता का दबाव उस पर बढ़ता जाता है, नतीजन कॉलेज जाने पर वह नशा करने लगता है और कोकीन का लती बन जाता है, लीमा तथा मियामी में भटकता रहता है।

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इसके भी एक साल पहले उन्होंने ‘द लायन’स डेन’ बनाई जो पेरु के एंटी-टेरेरिस्ट सेना के कार्य पर आधारित है। यह पेरु के अस्सी के दशक के युद्ध की बानगी एंडेस के एक सुदूर गांव में दिखाती है।

इन सबके काफी पहले लोम्बार्डी ने ‘द सिटी एंड द डॉग्स’ बनाई जिसमें सेना के चार कैडेट्स बहुत गुस्से में हैं, वे सिस्टम का शिकार मिलिट्री अकादमी के घिसे-पिटे नियमों से उकता कर सिस्टम से विद्रोह करते हैं। 135 मिनट की इस फिल्म में वे शुरुआत तो करते हैं लूटपाट से मगर जिसकी सूई हत्या की ओर मुड़ जाती है। फिल्म में पाब्लो सेरा, गर्स्टावो बुनो आदि ने अभिनय किया है।

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फिल्म ‘सॉन्ग विदआउट ए नेम’ का दृश्य - फोटो : Twitter

जोस लोम्बार्डी का निर्देशन और फिल्में

खूबसूरत फ्रांसिस्को जोस लोम्बार्डी पेरु के बहुत सम्मानित निर्देशकों में गिने जाते हैं। वे निर्देशन के साथ-साथ प्रड्यूसर भी हैं। कई पुरस्कारों से सम्मानित लोम्बार्डी की ‘अंडर द स्किन’, ‘टिंटा रोजा’, ‘सिन कम्पेशन’ आदि कुछ अन्य फिल्में हैं। उन्हें मानव अधिकारों के प्रति समर्पित होने केलिए भी कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उन्होंने मारिओ वर्गास लोसा के कार्य ‘द टाइम ऑफ द हीरो’ को भी फिल्म में परिवर्तित किया है। 

लोम्बार्डी ने 2003 में छ: भिन्न परंतु समानान्तर कहानियों को मिला कर 1 घंटे 35 मिनट की फिल्म ‘ओजोस क्यु नो वैन’ बनाई। इसमें उन्होंने पेरु के समाज का चित्रण वर्ग तथा पीढ़ियों के हिसाब से किया है और 90 के दशक की पेरु की सरकार के भ्रष्टाचार का खुलासा किया है। यहां फुजीमोरी सरकार के पतन को दिखाया गया है।

पेरु से ही एक अन्य लेखक, सिने-निर्देशक आती हैं। क्लाउडिआ लोसा मारिओ वर्गास लोसा तथा पेरु के कल्ट फिल्म निर्देशक लुई लोसा (एनाकोंडा) की भतीजी हैं। 15 नवम्बर 1976 को लीमा में जन्मी क्लाउडिआ लोसा को अब तक विभिन्न श्रेणी के 21 पुरस्कार मिल चुके हैं। ‘ला टेटा असुस्टाडा’, ‘मैडेइनुसा’, ‘लोओरो’ उनकी कुछ फिल्मों के नाम हैं। ‘मैडेइनुसा’ कमिंग ऑफ एज की कहानी जिसमें एक 14 साल की किशोरी अपने छोटे-से, दूर-दराज के गांव में ईस्टर समारोह के दौरान अचानक वयस्क होती है।

इस भूमिका को अभिनेत्री मैगली सोलिएर ने बड़ी कुशलत से निभाया है। ‘मैडेइनुसा’ के आलावा ‘द मिल्क ऑफ सोरो’, ‘मेगालांस’ मैगली सोलिएर की अन्य फिल्में हैं। मैगली सोलिएर को कई पुरस्कार प्राप्त हैं। वे लैटिन अमेरिका के आलावा यूरोप में भी खूब लोकप्रिय हैं।

‘द मिल्क ऑफ सोरो’ फिल्म कहानी है एक स्त्री फौस्टा की जो एक विरल बीमारी मिल्क ऑफ सोरो से ग्रसित है। यह बीमारी उन गर्भवती स्त्रियों के दूध से फैलती है, जिनका गर्भावस्था में बलात्कार हुआ है। मुसीबत यह है कि फौस्टा एक ओर तो इस बीमारी से तरह-तरह के भ्रम और निरंतर भय में है और उसी बीच उसकी मां की अचानक मृत्यु हो जाती है। वह एक कठोर कदम उठाती है और ऐसा रास्ता चुनती है ताकि उसे अपनी मां की राह पर न चलना पड़े।

फिल्म को 16 विभिन्न पुरस्कार प्राप्त हुए, साथ ही यह फिल्म ऑस्कर के लिए नामांकित भी हुई थी। 2009 की इस फिल्म को बर्लिन समारोह में सर्वोत्तम फिल्म का गोल्डेन बेयर पुरस्कार मिला था।


समय के साथ प्रगति पर है सिनेमा

इसी तरह पेरु के सिनेमा को देश के बाहर लोकप्रिय बनाने में कार्लोस एल्कांत्रा के अभिनय का भी काफी योगदान है। ‘पेरो गार्डियन’, ‘हाउस ऑफ स्नेल’ कार्लोस एल्कांत्रा की कुछ अन्य फिल्में हैं। वे टीवी तथा थियेटर में भी काम करते हैं।

इस सदी में पेरु के जिस सिनेमा की खूब चर्चा हुई वह चे ग्वेरा के जीवन को परिवर्तित करने वाली उनकी मोटरसाइकिल रोड ट्रिप पर आधारित बायोपिक है। 2004 में वाल्टर सेलेस की ‘द मोटरसाइकिल डायरीज’ युवाओं के बीच खूब लोकप्रिय हुई। 

एक नवजात बच्ची के चोरी होने और उसकी खोज पर ‘सॉन्ग विदआउट ए नेम’ (मेलिना लिओन), अपने बेटे का इंतजार करते बूढ़े युगल पर ‘इटर्निटी’ (ऑस्कर कैटाकोरा), पर्यावरण बचाने की जद्दोजहद पर ‘व्हेन टू वर्ल्ड्स कोलाइड’ (हैडी ब्रैंडनबर्ग तथा मैत्यु ओर्जेल) आदि इस सदी की पेरु से आने वाली कुछ अन्य अच्छी फिल्में हैं।

अब पेरु में कई प्रोड्कशन स्टूडियो हैं और ये लोग देश और देश के बाहर दोनों स्थानों के दर्शकों को ध्यान में रखे हुए हैं। अब तो पेरिस में हर साल पेरुवियन सिनेमा समारोह का आयोजन भी होता है।


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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदाई नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

 
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