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Report: We are consuming upto 5 gms of micro plastic every week researchers said it is dangerous for the body
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Report: हर सप्ताह हमारे शरीर में पहुंच रहा 5 ग्राम माइक्रो प्लास्टिक, शोधकर्ताओं ने बताया शरीर के लिए खतरनाक
एजेंसी, सिंगापुर।
Published by: देव कश्यप
Updated Tue, 07 Feb 2023 06:03 AM IST
सार
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ताजा अध्ययन के अनुसार, प्लास्टिक में करीब 10 हजार प्रकार के केमिकल पूरी दुनिया में बिना रोकटोक मिलाए जा रहे हैं। चीन सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहा है, इसके बाद इंडोनेशिया है। यहां के एयरलंग्गा विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ता वेरिल हसन का दावा है कि आज मानव शरीर में माइक्रो-प्लास्टिक पहुंचाने का प्रमुख माध्यम समुद्री मछलियां बन चुकी हैं।
प्लास्टिक के कण मानव शरीर में चिंताजनक स्तर पर बढ़ रहे हैं। हमारे स्वास्थ्य के लिए यह किसी टाइम-बम की तरह बन चुके हैं, जो आधे से अधिक अंदरूनी अंगों को क्षति पहुंचा सकते हैं। मलयेशिया, ऑस्ट्रेलिया व इंडोनेशिया के अध्ययनकर्ताओं ने नई रिपोर्ट्स में यह दावा किया है। इसमें कहा गया है कि प्रति सप्ताह औसतन 5 ग्राम प्लास्टिक मानव शरीर में पहुंच रहा है। एक क्रेडिट कार्ड का वजन भी इतना ही होता है। कई लोगों में तो इससे कहीं ज्यादा प्लास्टिक पहुंच रहा है।
ताजा अध्ययन के अनुसार, प्लास्टिक में करीब 10 हजार प्रकार के केमिकल पूरी दुनिया में बिना रोकटोक मिलाए जा रहे हैं। चीन सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण फैला रहा है, इसके बाद इंडोनेशिया है। यहां के एयरलंग्गा विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ता वेरिल हसन का दावा है कि आज मानव शरीर में माइक्रो-प्लास्टिक पहुंचाने का प्रमुख माध्यम समुद्री मछलियां बन चुकी हैं। अनुमान है कि 2050 तक समुद्र में पहुंचे प्लास्टिक का वजन मछलियों के कुल वजन से ज्यादा होगा। मलयेशिया में साइंस विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ता ली योंग ये का दावा है कि आधे से अधिक मानव अंगों में माइक्रो प्लास्टिक पहुंच चुका है।
वैज्ञानिकों ने जारी की रिपोर्ट्स, कैंसर से लेकर अंदरुनी अंग फेल होने की आशंकाएं जताईं।
क्या हैं माइक्रो प्लास्टिक
माइक्रो प्लास्टिक 5 मिलीमीटर से छोटे कण होते हैं। मलयेशियाई अध्ययनकर्ताओं ने 5 मिलीमीटर से छोटे 12 से लेकर 1 लाख तक प्लास्टिक कण तक मानव शरीर में रोज पहुंचने का दावा किया है। एक साल में 11,845 से 1,93,200 माइक्रो प्लास्टिक कण शरीर में पहुंचते हैं, इनका वजन 7.7 ग्राम से 287 ग्राम तक होता है। रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और फोरियर-ट्रांसफॉर्म इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी के जरिए बेहद सूक्ष्म कणों की पहचान के प्रयास हो रहे हैं ताकि शरीर और विभिन्न पदार्थों में उनकी मौजूदगी का आकलन हो सके। फिलहाल सफलता नहीं मिली है।
शरीर में कहां से आ रहा
खाने-पीने की चीजों की प्लास्टिक पैकेजिंग और प्लास्टिक के प्लेट-ग्लास के साथ यह आ रहा है। सबसे ज्यादा पैकेज्ड बॉटल-वाटर लेने वालों को खतरा है, अध्ययन बताते हैं कि बॉटल के पानी में माइक्रो-प्लास्टिक ज्यादा है। प्रदूषण इसकी सबसे बड़ी वजह है। हमारे समुद्र, नदियां, मिट्टी, हवा और बारिश के पानी में प्लास्टिक पहुंच गया है।
मां के दूध में भी माइक्रोप्लास्टिक
मां के दूध तक में माइक्रोप्लास्टिक मिलने की पुष्टि वैज्ञानिकों ने की है। नीदरलैंड के वैज्ञानिकों को मांस के 8 में से 7 नमूनों में माइक्रो प्लास्टिक मिला, तो दूध के 25 में से 18 नमूनों में। समुद्री नमक, मछलियां खाने वालों को प्लास्टिक भी परोसा जा रहा है। अध्ययनों में इससे पाचन तंत्र व आंतों से लेकर कोशिकाओं को खतरा माना गया है। कैंसर व हृदय रोग, किडनी, पेट व लिवर के रोग, मोटापा, मां के गर्भ में मौजूद भ्रूण का विकास भी रुकने के दावे हुए हैं।
क्या है बचाव
माइक्रोप्लास्टिक की अहम वजह सिंगल यूज प्लास्टिक है। करीब 98 देशों में 2022 तक इन पर आंशिक या पूर्ण प्रतिबंध लगे हैं। यह तभी संभव है, जब प्लास्टिक का उपयोग घटेगा।
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