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Nisar: India breaks coconut, America presents groundnuts
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शुभ ‘निसार’ : भारत ने फोड़ा नारियल, अमेरिका ने भेंट कीं मूंगफलियां
एजेंसी, कैलिफोर्निया
Published by: Amit Mandal
Updated Sun, 05 Feb 2023 06:06 AM IST
सार
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150 करोड़ डॉलर की इस परियोजना पर अमेरिकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) मिलकर काम कर रहे हैं।
निसार उपग्रह की कैलिफोर्निया से बंगलूरू रवानगी से पहले नासा में विदाई समारोह रखा गया। यहां इसरो के अधिकारियों ने निसार के लघु रूप के समक्ष नारियल फोड़ कर इसकी सफलता की कामना की। वहीं, नासा की जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला (जेपीएल) के अधिकारियों ने भी अपने यहां सौभाग्य का प्रतीक मानी जाने वालीं मूंगफलियों का मर्तबान इसरो को सौंपा।
सफलता व सौभाग्य की ये कामनाएं मानव इतिहास के सबसे महंगे पृथ्वी के पर्यवेक्षण उपग्रह नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार यानी निसार के लिए की गईं। 150 करोड़ डॉलर की इस परियोजना पर अमेरिकी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) मिलकर काम कर रहे हैं। इसे कैलिफोर्निया से भारत के लिए रवाना किया गया।
आठ साल पहले हुई शुरुआत : एस सोमनाथ ने कहा, दोनों एजेंसियों की क्षमताएं निसार में साकार हो रही हैं। दोनों देशों ने आठ साल पहले अपनी शक्तियों के सामंजस्य से पृथ्वी पर नजर रखने का अब तक का सबसे शक्तिशाली उपकरण तैयार करने का यह मिशन शुरू किया था। यह जमीन, हिम, वन के गहन अध्ययन में मदद करेगा। लॉरी लेशिन ने कहा, पृथ्वी व बदलती जलवायु को समझने की अपनी साझा यात्रा में निसार के रूप में दोनों देश एक मील का पत्थर हासिल कर रहे हैं।
इस मौके पर इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ, निसार के परियोजना निदेशक सीवी श्रीकांत, मिशन की डिप्टी चीफ सुप्रिया रंगनाथन, नासा से परियोजना प्रबंधक फिल बरेला, जेपीएल निदेशक लॉरी लेशिन, नासा अधिकारी भव्या लाल मौजूद रहे।
निसार में दो रडार प्रणालियां
निसार में दो रडार प्रणालियां हैं, जिनके परीक्षण 2021 से हो रहे हैं। जेपीएल ने एल-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार बनाया, यह जंगलों के भीतर से भी सतह को देखने की क्षमता रखता है। एस-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार इसरो का है, जिसमें 700 किमी ऊंचाई से किसी खेत में लगी फसल को भी पहचानने की क्षमता है। यह रडार पृथ्वी पर माइक्रोवेव फेंकेंगी, जब ये लौटेंगी तो एक एंटीना इन्हें ग्रहण करेगा।
निसार में इसके लिए ड्रम की तरह दिखने वाला 40 फुट व्यास का एक रिफ्लेक्टर एंटीना लगा है। पृथ्वी की सतह के पर्यवेक्षण के लिए निसार सिंगल प्रोसेसिंग तकनीक इंटरफेरोमेट्री सिंथेटिक अपर्चर रडार (इन-सार) का उपयोग करेगा। यह उपग्रह तीन साल तक डाटा जनरेट करेगा।
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अगले साल किया जाएगा प्रक्षेपित : विशेष कार्गों में निसार को इसी महीने के आखिर तक 14,000 किमी की यात्रा तय कर बंगलूरू स्थित यूआर राव उपग्रह केंद्र लाया जाएगा। इसे रॉकेट में स्थापित कर साल 2024 में आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा।
जमीन, पानी, जंगल, कृषि, हिम पर रखेगा नजर
निसार पूरी पृथ्वी को व्यवस्थित ढंग से नक्शाबद्ध करेगा। दो अलग-अलग रडार जमीन, पानी, जंगल, कृषि, हिम पर लगातार नजर रखेंगी।
इन-सार तकनीक सतह पर एक इंच तक के आकार में हर 12 दिन में आए बदलावों को पहचान लेगी।
हर 12 दिन में पूरी धरती की तस्वीरें लेगा। एक तस्वीर का सैंपल साइज लॉन टेनिस कोर्ट के बराबर होगा। इन्हें 5जीबी प्रति सेकंड की रफ्तार से धरती पर भेजेगा।
इनसे प्राकृतिक आपदाओं खासतौर से चक्रवातों के खतरे समय रहते पहचानने में मदद मिलेगी।
समुद्र स्तर कितना और किस रफ्तार से बढ़ रहा है, किन द्वीप व देशों को खतरा है, पता चलेगा।
हिम आच्छादित क्षेत्रों में आए बदलाव भी हर समय नजर में रहेंगे।
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