वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, हवाना
Updated Sat, 07 Nov 2020 03:24 PM IST
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जिस समय अमेरिका अपने अंदरूनी राजनीतिक ऊहापोह में फंसा हुआ है, उसके दो धुर विरोधी देशों ने अपने रिश्ते मजबूत करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल की है। इन दोनों देशों के बीच एक तीसरा कोण चीन का है, जिसने इन दोनों देशों से अपने संबंधों को हाल में नई गति दी है।
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ क्यूबा की राजधानी हवाना पहुंचे, जहां उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ है। इस यात्रा के दौरान जरीफ की क्बूबा के लगभग सभी बड़े नेताओं से मुलाकात होगी। इस मौके पर क्यूबा के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि क्यूबा ईरान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को बहुत महत्त्व देता है। वह ईरान के शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के विकास, अनुसंधान और उत्पादन करने के अधिकार को मान्यता देता है।
परमाणु कार्यक्रम को ही लेकर ईरान का पश्चिमी देशों से लंबा टकराव चला। बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति थे, तब छह पश्चिमी देशों (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों और जर्मनी) का ईरान से परमाणु समझौता हुआ था। इसमें ईरान ने परमाणु हथियार ना बनाने का वादा किया था। इसके बदले पश्चिमी देशों ने ईरान पर जारी कई प्रतिबंध हटा लिए थे। लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद डॉनल्ड ट्रंप ने अपने देश को उस समझौते से हटा लिया और फिर से ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए। इससे अमेरिका और ईरान के संबंधों में नया टकराव पैदा हो गया।
तब से ईरान ने क्यूबा और चीन से अपने संबंध और मजबूत किए हैँ। वैसे क्यूबा पहला देश था, जिसने 1979 में इस्लामी क्रांति के बाद ईरान की नई व्यवस्था को मान्यता दी थी। तब से ऊर्जा, कारोबार, उद्योग, शिक्षा, कृषि, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में दोनों देशों का द्विपक्षीय सहयोग लगातार मजबूत हुआ है। इसका एक पहलू दोनों देशों के खिलाफ अमेरिका का उग्र रुख रहा है।
गौरतलब है कि ईरान के विदेश मंत्री क्यूबा के बाद बोलिविया जाएंगे, जहां वे नव-निर्वाचित राष्ट्रपति लुईस आर्चे के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेंगे। ये समारोह रविवार को होगा। बोलिविया में पिछले साल सोशलिस्ट नेता इवो मोरालेस का तख्ता पलट दिया गया था, जिसका ट्रंप प्रशासन ने समर्थन किया था। लेकिन पिछले महीने हुए चुनाव में मोरालेस की पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में लौट आई। इसलिए वहां नई सरकार के सत्ता ग्रहण समारोह में जाने का भी एक प्रतीकात्मक महत्त्व है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों में ईरान की सक्रियता को सीधे अमेरिका को चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। बीते सितंबर में ईरान ने चीन के साथ रणनीतिक भागीदारी का समझौता किया था। हालांकि इस करार में सैनिक सहयोग का कोई जिक्र नहीं था, लेकिन अमेरिकी मीडिया में इसे उसी रूप में पेश किया गया। न्यूयॉर्क टाइम्स ने तब अपनी खबर के शीर्षक में कहा था कि अमेरिका को ठेंगा दिखाते हुए चीन और ईरान व्यापार और सैनिक समझौते के करीब पहुंचे। क्यूबा के साथ चीन के गहरे रिश्ते पचास साल से भी ज्यादा पुराने हैं। पिछले सितंबर में दोनों देशों के राष्ट्रपतियों ने इस संबंध और सहयोग को और प्रगाढ़ करने का संकल्प व्यक्त किया था। जाहिर है, अब जबकि चीन भी क्यूबा और ईरान की तरह अमेरिका के निशाने पर आ गया है, इन तीनों देशों ने आपसी सहयोग को अधिक अहमियत देने की जरूरत समझी है। ईरानी विदेश मंत्री की क्यूबा और बोलिविया यात्रा को इस बड़े संदर्भ में ही देखा जा रहा है।
सार
- चीन के साथ ईरान और क्यूबा ने मज़बूत किए रिश्ते
- ईरानी विदेश मंत्री ने क्यूबा के साथ कई क्षेत्रों में किए नए करार
विस्तार
जिस समय अमेरिका अपने अंदरूनी राजनीतिक ऊहापोह में फंसा हुआ है, उसके दो धुर विरोधी देशों ने अपने रिश्ते मजबूत करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल की है। इन दोनों देशों के बीच एक तीसरा कोण चीन का है, जिसने इन दोनों देशों से अपने संबंधों को हाल में नई गति दी है।
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ क्यूबा की राजधानी हवाना पहुंचे, जहां उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ है। इस यात्रा के दौरान जरीफ की क्बूबा के लगभग सभी बड़े नेताओं से मुलाकात होगी। इस मौके पर क्यूबा के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि क्यूबा ईरान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को बहुत महत्त्व देता है। वह ईरान के शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के विकास, अनुसंधान और उत्पादन करने के अधिकार को मान्यता देता है।
परमाणु कार्यक्रम को ही लेकर ईरान का पश्चिमी देशों से लंबा टकराव चला। बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति थे, तब छह पश्चिमी देशों (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों और जर्मनी) का ईरान से परमाणु समझौता हुआ था। इसमें ईरान ने परमाणु हथियार ना बनाने का वादा किया था। इसके बदले पश्चिमी देशों ने ईरान पर जारी कई प्रतिबंध हटा लिए थे। लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद डॉनल्ड ट्रंप ने अपने देश को उस समझौते से हटा लिया और फिर से ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए। इससे अमेरिका और ईरान के संबंधों में नया टकराव पैदा हो गया।
तब से ईरान ने क्यूबा और चीन से अपने संबंध और मजबूत किए हैँ। वैसे क्यूबा पहला देश था, जिसने 1979 में इस्लामी क्रांति के बाद ईरान की नई व्यवस्था को मान्यता दी थी। तब से ऊर्जा, कारोबार, उद्योग, शिक्षा, कृषि, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में दोनों देशों का द्विपक्षीय सहयोग लगातार मजबूत हुआ है। इसका एक पहलू दोनों देशों के खिलाफ अमेरिका का उग्र रुख रहा है।
गौरतलब है कि ईरान के विदेश मंत्री क्यूबा के बाद बोलिविया जाएंगे, जहां वे नव-निर्वाचित राष्ट्रपति लुईस आर्चे के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेंगे। ये समारोह रविवार को होगा। बोलिविया में पिछले साल सोशलिस्ट नेता इवो मोरालेस का तख्ता पलट दिया गया था, जिसका ट्रंप प्रशासन ने समर्थन किया था। लेकिन पिछले महीने हुए चुनाव में मोरालेस की पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में लौट आई। इसलिए वहां नई सरकार के सत्ता ग्रहण समारोह में जाने का भी एक प्रतीकात्मक महत्त्व है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों में ईरान की सक्रियता को सीधे अमेरिका को चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। बीते सितंबर में ईरान ने चीन के साथ रणनीतिक भागीदारी का समझौता किया था। हालांकि इस करार में सैनिक सहयोग का कोई जिक्र नहीं था, लेकिन अमेरिकी मीडिया में इसे उसी रूप में पेश किया गया। न्यूयॉर्क टाइम्स ने तब अपनी खबर के शीर्षक में कहा था कि अमेरिका को ठेंगा दिखाते हुए चीन और ईरान व्यापार और सैनिक समझौते के करीब पहुंचे। क्यूबा के साथ चीन के गहरे रिश्ते पचास साल से भी ज्यादा पुराने हैं। पिछले सितंबर में दोनों देशों के राष्ट्रपतियों ने इस संबंध और सहयोग को और प्रगाढ़ करने का संकल्प व्यक्त किया था। जाहिर है, अब जबकि चीन भी क्यूबा और ईरान की तरह अमेरिका के निशाने पर आ गया है, इन तीनों देशों ने आपसी सहयोग को अधिक अहमियत देने की जरूरत समझी है। ईरानी विदेश मंत्री की क्यूबा और बोलिविया यात्रा को इस बड़े संदर्भ में ही देखा जा रहा है।