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चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बीआरआई (बॉर्डर रोड इनीशिएटिव) को लेकर भारत की आपत्तियां कायम हैं। इसी कारण भारत ने दूसरी बार भी इस मुद्दे पर चीन के साथ मंच साझा करने से बहिष्कार करने के संकेत दिए हैं। चीन में भारतीय राजदूत विक्रम मिसरी ने कहा है कि इस परियोजना में भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता संबंधी चिंताओं का सम्मान नहीं किया जा रहा है। ऐसे में इससे जुड़ी दूसरी बैठक में भारत के हिस्सा लेने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
विक्रम मिसरी ने कहा, ‘बीआरआई जैसी कोई भी कोशिश इस तरह से लागू की जानी चाहिए कि संबंधित देशों की प्रभुसत्ता, उनकी इलाकाई अखंडता, संप्रभुता और समानता आदि का सम्मान बना रहे। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो कोई भी देश अपनी इन प्रमुख चिंताओं को दरकिनार कर इस तरह के प्रयासों का हिस्सा नहीं बन सकता है।’
चीन की इस महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना से संबंधित दूसरी अहम बैठक अगले महीने बीजिंग में होने वाली है। भारत 2017 में पहली बैठक का भी इसी आपत्तियों के चलते बहिष्कार कर चुका है। चीन ने बीआरआई को मूर्त रूप देने के लिए बीआरएफ (बेल्ड एंड रोड फोरम) फॉर इंटरेशनल कोऑपरेशन बनाया है। इसमें पाकिस्तान, सिंगापुर, इटली जैसे कई देश सदस्य हैं। चीन द्वारा श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को कर्ज के बदले 99 साल की लीज पर लेने के बाद भारत की चिंताएं और बढ़ गई थीं।
वैश्विक कानून के दायरे का पालन हो
भारतीय दूत विक्रम मिसरी ने कहा है कि वह खुद कई देशों और विश्व संस्थाओं के साथ सड़क, रेल व जहाज संपर्क को मजबूत करने की वैश्विक आकांक्षा साझा कर चुका है और यह हमारी आर्थिक व कूटनीतिक पहल का अभिन्न हिस्सा है। लेकिन हमारा भरोसा है कि यह पहल मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय मानदंडों, सुशासन और कानून के दायरे में होना चाहिए। इसके लिए सामाजिक व पर्यावरण संरक्षण पर जोर देने के साथ खुलेपन, पारदर्शिता और वित्तीय स्थिरता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
पीओके से गुजरने वाले हिस्से पर आपत्ति
बीआरआई के तहत चीन दुनिया के कई देशों को सड़क के रास्ते से जोड़ रहा है। इसी पहल का हिस्सा है चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी), जो पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजर रहा है। चूंकि इस हिस्से पर भारत अपना दावा करता है इसलिए इसे लेकर भारत शुरू से आपत्ति जताता रहा है। यही भारत की ओर से इस परियोजना का विरोध किए जाने की बड़ी वजह भी है।
चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बीआरआई (बॉर्डर रोड इनीशिएटिव) को लेकर भारत की आपत्तियां कायम हैं। इसी कारण भारत ने दूसरी बार भी इस मुद्दे पर चीन के साथ मंच साझा करने से बहिष्कार करने के संकेत दिए हैं। चीन में भारतीय राजदूत विक्रम मिसरी ने कहा है कि इस परियोजना में भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता संबंधी चिंताओं का सम्मान नहीं किया जा रहा है। ऐसे में इससे जुड़ी दूसरी बैठक में भारत के हिस्सा लेने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
विक्रम मिसरी ने कहा, ‘बीआरआई जैसी कोई भी कोशिश इस तरह से लागू की जानी चाहिए कि संबंधित देशों की प्रभुसत्ता, उनकी इलाकाई अखंडता, संप्रभुता और समानता आदि का सम्मान बना रहे। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो कोई भी देश अपनी इन प्रमुख चिंताओं को दरकिनार कर इस तरह के प्रयासों का हिस्सा नहीं बन सकता है।’
चीन की इस महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना से संबंधित दूसरी अहम बैठक अगले महीने बीजिंग में होने वाली है। भारत 2017 में पहली बैठक का भी इसी आपत्तियों के चलते बहिष्कार कर चुका है। चीन ने बीआरआई को मूर्त रूप देने के लिए बीआरएफ (बेल्ड एंड रोड फोरम) फॉर इंटरेशनल कोऑपरेशन बनाया है। इसमें पाकिस्तान, सिंगापुर, इटली जैसे कई देश सदस्य हैं। चीन द्वारा श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को कर्ज के बदले 99 साल की लीज पर लेने के बाद भारत की चिंताएं और बढ़ गई थीं।
वैश्विक कानून के दायरे का पालन हो
भारतीय दूत विक्रम मिसरी ने कहा है कि वह खुद कई देशों और विश्व संस्थाओं के साथ सड़क, रेल व जहाज संपर्क को मजबूत करने की वैश्विक आकांक्षा साझा कर चुका है और यह हमारी आर्थिक व कूटनीतिक पहल का अभिन्न हिस्सा है। लेकिन हमारा भरोसा है कि यह पहल मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय मानदंडों, सुशासन और कानून के दायरे में होना चाहिए। इसके लिए सामाजिक व पर्यावरण संरक्षण पर जोर देने के साथ खुलेपन, पारदर्शिता और वित्तीय स्थिरता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
पीओके से गुजरने वाले हिस्से पर आपत्ति
बीआरआई के तहत चीन दुनिया के कई देशों को सड़क के रास्ते से जोड़ रहा है। इसी पहल का हिस्सा है चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी), जो पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजर रहा है। चूंकि इस हिस्से पर भारत अपना दावा करता है इसलिए इसे लेकर भारत शुरू से आपत्ति जताता रहा है। यही भारत की ओर से इस परियोजना का विरोध किए जाने की बड़ी वजह भी है।