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महाभारत में पांडवों की पटरानी के रुप में यूं तो हर जगह द्रौपदी का जिक्र किया गया है। लेकिन ऐसा नहीं है कि पांडवों की एक ही पत्नी थी। द्रौपदी के अलावा भी पांचों पांडवों की अलग-अलग पत्नियां थी।
लेकिन द्रौपदी की एक शर्त थी कि पांचों पांडवों की दूसरी पत्नियां द्रौपदी के साथ नहीं रहेंगी, पण्डवों की दूसरी पत्नियों को अलग-अलग स्थानों पर रहना होगा। इसलिए द्रौपदी के अलावा अन्य रानियों का जिक्र कम ही मिलता है।
वैसे द्रौपदी के अलावा अर्जुन की एक अन्य पत्नी का भी जिक्र कई स्थानों पर मिलता है। अर्जुन की दूसरी पत्नी सुभद्रा थी। सुभद्रा श्रीकृष्ण की बहन और अभिमन्यु की माता थी।
अर्जुन पांडवों में सबसे योग्य और अपने जमाने के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के साथ ही दिखने में भी आकर्षक थे इसलिए कई कन्याओं को अर्जुन से प्रेम हुआ। कुछ के साथ एक तरफा प्यार तो कुछ के साथ वैवाहिक संबंध भी बने।
एक बार अर्जुन द्रौपदी के कक्ष में उस समय पहुंच गए जब द्रौपदी युधिष्ठिर के साथ थी। एक भाई के होते हुए दूसरे भाई का द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश दंडनीय था। इसलिए दंडस्वरूप अर्जुन को वनवास मिला। वन में भटकते हुए अर्जुन एक सरवोर के पास पहुंचे।
उस सरोवर में उलूपी नाम की एक नाग कन्या निवास करती थी। उलपू अर्जुन को देखकर मोहित हो गई और अर्जुन के पास जाकर कहने लगी कि आपके पास मैं प्रेम की इच्छा से आई हूं। अर्जुन ने पहले तो उलूपी के निवेदन को अस्वीकार कर दिया।
लेकिन उलूपी ने शास्त्रों का हवाला देते हुए कहा कि अपनी इच्छा से प्रेम का निवेदन लेकर आने वाली स्त्री की इच्छा पूरी न करना पाप है इसलिए मेरी इच्छा पूरी करो और धर्म का पालन करो। उलूपी की इन बातों को सुनकर अर्जुन ने उलूपी का प्रेम स्वीकार किया। उलूपी के साथ अर्जुन के प्रेम संबंध से एक पुत्र का जन्म हुआ जो इरावण कहलाया। इसने महाभारत के यु्द्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उलूपी से प्रेम संबंध बनाने के बाद अर्जुन अपने सफर पर आगे निकल चले और भटकते-भटकते मणिपुर पहुंच गए। यहां अर्जुन की भेंट मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से हुई। अर्जुन ने चित्रांगदा के पुरुष समान कद-काठी और वीरता से प्रभावित होकर चित्रांगदा से विवाह की इच्छा प्रकट की।
चित्रांगदा भी अर्जुन से प्रभावित थी इसलिए विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। लेकिन चित्रांगदा के पिता ने एक शर्त रखी कि चित्रांगदा और अर्जुन का पुत्र उनके पास ही रहेगा और मणिपुर का उत्तराधिकारी बनेगा।
अर्जुन ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया और चित्रांगदा के साथ अर्जुन ने विवाह कर लिया। इस विवाह से अर्जुन को एक पुत्र प्राप्त हुआ जो बब्रुवाहन कहलाया। महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया तब अर्जुन और बब्रुवाहन के बीच युद्ध हुआ जिसमें बब्रुवाहन ने अर्जुन को परास्त कर दिया और अर्जुन मृत्यु को प्राप्त होने लगे। इस समय उलूपी ने नागमणि की सहायता से अर्जुन के प्राण बचाए।
महाभारत में व्यास जी ने अर्जुन की पत्नियों के रुप में द्रौपदी, सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा का नाम लिया है। स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी का एकतरफा प्यार अर्जुन ने स्वीकार नहीं किया इसके लिए अर्जुन को शाप भी मिला।
जबकि तमिल लोककथाओं और इंडोनेशिया की कथाओं में अर्जुन के सात पत्नियों का जिक्र मिलता है। इनमें द्रौपदी की बहन शिखंडी और आमेजन की रानी आयली का भी जिक्र आता है।
हलांकि कई स्थानों पर अर्जुन का संबंध देवकन्या और असुरकन्याओं के साथ भी था ऐसा उल्लेख मिलता है। लेकिन प्रमुख रुप में अर्जुन की पांच पत्नी मानी जाती है।
महाभारत में पांडवों की पटरानी के रुप में यूं तो हर जगह द्रौपदी का जिक्र किया गया है। लेकिन ऐसा नहीं है कि पांडवों की एक ही पत्नी थी। द्रौपदी के अलावा भी पांचों पांडवों की अलग-अलग पत्नियां थी।
लेकिन द्रौपदी की एक शर्त थी कि पांचों पांडवों की दूसरी पत्नियां द्रौपदी के साथ नहीं रहेंगी, पण्डवों की दूसरी पत्नियों को अलग-अलग स्थानों पर रहना होगा। इसलिए द्रौपदी के अलावा अन्य रानियों का जिक्र कम ही मिलता है।
वैसे द्रौपदी के अलावा अर्जुन की एक अन्य पत्नी का भी जिक्र कई स्थानों पर मिलता है। अर्जुन की दूसरी पत्नी सुभद्रा थी। सुभद्रा श्रीकृष्ण की बहन और अभिमन्यु की माता थी।
अर्जुन पांडवों में सबसे योग्य और अपने जमाने के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के साथ ही दिखने में भी आकर्षक थे इसलिए कई कन्याओं को अर्जुन से प्रेम हुआ। कुछ के साथ एक तरफा प्यार तो कुछ के साथ वैवाहिक संबंध भी बने।
नाग कन्या का अर्जुन से गंधर्व विवाह
एक बार अर्जुन द्रौपदी के कक्ष में उस समय पहुंच गए जब द्रौपदी युधिष्ठिर के साथ थी। एक भाई के होते हुए दूसरे भाई का द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश दंडनीय था। इसलिए दंडस्वरूप अर्जुन को वनवास मिला। वन में भटकते हुए अर्जुन एक सरवोर के पास पहुंचे।
उस सरोवर में उलूपी नाम की एक नाग कन्या निवास करती थी। उलपू अर्जुन को देखकर मोहित हो गई और अर्जुन के पास जाकर कहने लगी कि आपके पास मैं प्रेम की इच्छा से आई हूं। अर्जुन ने पहले तो उलूपी के निवेदन को अस्वीकार कर दिया।
लेकिन उलूपी ने शास्त्रों का हवाला देते हुए कहा कि अपनी इच्छा से प्रेम का निवेदन लेकर आने वाली स्त्री की इच्छा पूरी न करना पाप है इसलिए मेरी इच्छा पूरी करो और धर्म का पालन करो। उलूपी की इन बातों को सुनकर अर्जुन ने उलूपी का प्रेम स्वीकार किया। उलूपी के साथ अर्जुन के प्रेम संबंध से एक पुत्र का जन्म हुआ जो इरावण कहलाया। इसने महाभारत के यु्द्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मणिपुर की राजकुमारी से अर्जुन का विवाह
उलूपी से प्रेम संबंध बनाने के बाद अर्जुन अपने सफर पर आगे निकल चले और भटकते-भटकते मणिपुर पहुंच गए। यहां अर्जुन की भेंट मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से हुई। अर्जुन ने चित्रांगदा के पुरुष समान कद-काठी और वीरता से प्रभावित होकर चित्रांगदा से विवाह की इच्छा प्रकट की।
चित्रांगदा भी अर्जुन से प्रभावित थी इसलिए विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। लेकिन चित्रांगदा के पिता ने एक शर्त रखी कि चित्रांगदा और अर्जुन का पुत्र उनके पास ही रहेगा और मणिपुर का उत्तराधिकारी बनेगा।
अर्जुन ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया और चित्रांगदा के साथ अर्जुन ने विवाह कर लिया। इस विवाह से अर्जुन को एक पुत्र प्राप्त हुआ जो बब्रुवाहन कहलाया। महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया तब अर्जुन और बब्रुवाहन के बीच युद्ध हुआ जिसमें बब्रुवाहन ने अर्जुन को परास्त कर दिया और अर्जुन मृत्यु को प्राप्त होने लगे। इस समय उलूपी ने नागमणि की सहायता से अर्जुन के प्राण बचाए।
द्रौपदी की बहन से अर्जुन का संबंध
महाभारत में व्यास जी ने अर्जुन की पत्नियों के रुप में द्रौपदी, सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा का नाम लिया है। स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी का एकतरफा प्यार अर्जुन ने स्वीकार नहीं किया इसके लिए अर्जुन को शाप भी मिला।
जबकि तमिल लोककथाओं और इंडोनेशिया की कथाओं में अर्जुन के सात पत्नियों का जिक्र मिलता है। इनमें द्रौपदी की बहन शिखंडी और आमेजन की रानी आयली का भी जिक्र आता है।
हलांकि कई स्थानों पर अर्जुन का संबंध देवकन्या और असुरकन्याओं के साथ भी था ऐसा उल्लेख मिलता है। लेकिन प्रमुख रुप में अर्जुन की पांच पत्नी मानी जाती है।