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तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहि सुनहि बहुत विधि सब संता। इन्ही आदि और अनंत से रहित भगवान विष्णु की पूजा का एक विशेष दिन है भाद्रमास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी।
यह तिथि इस वर्ष 27 सितंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रुप की पूजा होती है।
भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है जो इस कल्याणकारी व्रत का पालन करता है और अनंतसूत्र को अपने बाजू में धारण करता है उसके सारे कष्ट और संकट अनंत भगवान दूर कर देते हैं।
शास्त्रों में अनंत चतुर्दशी की जो कथा मिलती है उसके अनुसार सतयुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। सुमन्तु मुनि ने अपनी कन्या शीला का विवाह कौण्डिन्य नामक मुनि से किया। शीला अनन्त-व्रत का पालन किया करती थी अत: विवाह उपरांत भी वह अनंत भगवान का पूजन करती है और अनन्तसूत्र बांधती हैं।
व्रत के प्रभाव से उनका घर धन-धान्य से पूर्ण रहता था। लेकिन एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पड़ी। मुनि ने अनंतसूत्र को तोड़ कर जला दिया।
इससे अनंत भगवान कुपित हो गए और कौण्डिन्य मुनि के घर का सुख और वैभव नष्ट हो गया। इसके बाद कौण्डिन्य मुनि को अपने किए पर पछताबा होने लगा। इसके बाद अनंत भगवान से क्षमा मांगते हुए चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत करते रहे, इसके बाद भगवान को इन पर दया आ गई और कौण्डिन्य मुनि का घर फिर से धन-धान्य से भर गया।
महाभारत में उल्लेख है कि दुर्योधन ने जुए में युधिष्ठिर को छल से हरा दिया। युधिष्ठिर को अपना राज-पाट त्यागकर पत्नी एवं भाईयों सहित 12 वर्ष वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास पर जाना पड़ा। वन में पाण्डवों को बहुत ही कष्टमय जीवन बिताना पड़ रहा था। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पाण्डवों से मिलने वन में पधारे।
युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे मधुसूदन इस कष्ट से निकलने का और पुनः राजपाट प्राप्त करने का कोई उपाय बताएं। भगवान ने कहा कि आप सभी भाई पत्नी समेत भद्र शुक्ल चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर अनंत भगवान की पूजा करें।
युधिष्ठिर ने पूछा कि अनंत भगवान कौन हैं इनके बारे में बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने बताया कि यह भगवान विष्णु ही हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने वामन रूप धारण करके दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था।
इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए यह अनंत कहलाते हैं। इनकी पूजा से निश्चित ही आपके सारे कष्ट समाप्त हो जाएंगे। युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुनःराज्यलक्ष्मी ने उन पर कृपा की। युधिष्ठिर को अपना खोया हुआ राज-पाट फिर से मिल गया।
शास्त्रो में बताया गया है कि अनंत चतुर्दशी के पूजन में व्रतकर्ता को प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए पूजा घर में कलश स्थापित करना चाहिए।
कलश पर भगवान विष्णु का चित्र स्थापित करनी चाहिए इसके पश्चात धागा लें जिस पर चौदह गांठें लगाएं इस प्रकार अनन्तसूत्र (अनंत का धागा) तैयार हो जाने पर इसे भगवान के सामने रखें। इसके बाद भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्र की षोडशोपचार-विधि से पूजा करनी चाहिए।
इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र क जप करते हुए अनंत भगवान की पूजा करनी चाहिए। पुरुषों को अनंतसूत्र दाएं बाजू में और महिलाओं को बाएं बाजू में बांधना चाहिए।
तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहि सुनहि बहुत विधि सब संता। इन्ही आदि और अनंत से रहित भगवान विष्णु की पूजा का एक विशेष दिन है भाद्रमास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी।
यह तिथि इस वर्ष 27 सितंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रुप की पूजा होती है।
भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है जो इस कल्याणकारी व्रत का पालन करता है और अनंतसूत्र को अपने बाजू में धारण करता है उसके सारे कष्ट और संकट अनंत भगवान दूर कर देते हैं।
जब अनंत भगवान ने पलट की ऋषि की किस्मत
शास्त्रों में अनंत चतुर्दशी की जो कथा मिलती है उसके अनुसार सतयुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। सुमन्तु मुनि ने अपनी कन्या शीला का विवाह कौण्डिन्य नामक मुनि से किया। शीला अनन्त-व्रत का पालन किया करती थी अत: विवाह उपरांत भी वह अनंत भगवान का पूजन करती है और अनन्तसूत्र बांधती हैं।
व्रत के प्रभाव से उनका घर धन-धान्य से पूर्ण रहता था। लेकिन एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पड़ी। मुनि ने अनंतसूत्र को तोड़ कर जला दिया।
इससे अनंत भगवान कुपित हो गए और कौण्डिन्य मुनि के घर का सुख और वैभव नष्ट हो गया। इसके बाद कौण्डिन्य मुनि को अपने किए पर पछताबा होने लगा। इसके बाद अनंत भगवान से क्षमा मांगते हुए चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत करते रहे, इसके बाद भगवान को इन पर दया आ गई और कौण्डिन्य मुनि का घर फिर से धन-धान्य से भर गया।
श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से करवाया व्रत मिली राज लक्ष्मी
महाभारत में उल्लेख है कि दुर्योधन ने जुए में युधिष्ठिर को छल से हरा दिया। युधिष्ठिर को अपना राज-पाट त्यागकर पत्नी एवं भाईयों सहित 12 वर्ष वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास पर जाना पड़ा। वन में पाण्डवों को बहुत ही कष्टमय जीवन बिताना पड़ रहा था। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पाण्डवों से मिलने वन में पधारे।
युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे मधुसूदन इस कष्ट से निकलने का और पुनः राजपाट प्राप्त करने का कोई उपाय बताएं। भगवान ने कहा कि आप सभी भाई पत्नी समेत भद्र शुक्ल चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर अनंत भगवान की पूजा करें।
युधिष्ठिर ने पूछा कि अनंत भगवान कौन हैं इनके बारे में बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने बताया कि यह भगवान विष्णु ही हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने वामन रूप धारण करके दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था।
इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए यह अनंत कहलाते हैं। इनकी पूजा से निश्चित ही आपके सारे कष्ट समाप्त हो जाएंगे। युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुनःराज्यलक्ष्मी ने उन पर कृपा की। युधिष्ठिर को अपना खोया हुआ राज-पाट फिर से मिल गया।
अनंत चतुर्दशी व्रत पूजन विधि
शास्त्रो में बताया गया है कि अनंत चतुर्दशी के पूजन में व्रतकर्ता को प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए पूजा घर में कलश स्थापित करना चाहिए।
कलश पर भगवान विष्णु का चित्र स्थापित करनी चाहिए इसके पश्चात धागा लें जिस पर चौदह गांठें लगाएं इस प्रकार अनन्तसूत्र (अनंत का धागा) तैयार हो जाने पर इसे भगवान के सामने रखें। इसके बाद भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्र की षोडशोपचार-विधि से पूजा करनी चाहिए।
इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र क जप करते हुए अनंत भगवान की पूजा करनी चाहिए। पुरुषों को अनंतसूत्र दाएं बाजू में और महिलाओं को बाएं बाजू में बांधना चाहिए।