भगवत गीता के एक उपदेश में कहा गया है कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। हिन्दू धर्म में सभी 16 संस्कारों में अंतिम संस्कार शव यात्रा की होती है। हिंदू धर्म में शव को गंगा के घाट पर अंतिम क्रिया की जाती है। काशी को मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे पवित्र जगह माना गया है। यहां पर जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है उसे सीधे स्वर्ग का प्राप्ति होती है। बनारस के घाट दुनिया का इकलौता श्मशान है जहां पर चिता हमेशा जलती रहती है। बनारस के श्मशान घाट में एक ऐसा घाट है जहां पर मुर्दों से भी टैक्स वसूला जाता है। श्मशान घाट पर लाशों से टैक्स वसूलने के पीछे की ये कहानी भी दिलचस्प है।
हरीशचंद्र घाट पर अंतिम संस्कार की कीमत चुकाने की यह परम्परा तकरीबन 3000 साल पुरानी है। ऐसी मान्यता है कि श्मशान के रख रखाव का जिम्मा तभी से डोम जाति के हाथ था। दरअसल टैक्स वसूलने के मौजूदा दौर की शुरुआत हुई राजा हरीशचंद्र के जमाने से। हरीशचंद्र ने एक वचन के तहत अपना राजपाट छोड़ कर डोम परिवार के पूर्वज कल्लू डोम की नौकरी की थी। इसी बीच उनके बेटे की मौत हो गई और बेटे के दाह संस्कार के लिये उन्हें मजबूरन कल्लू डोम की इजाजत मांगनी पड़ी। चूंकि बिना दान दिये तब भी अंतिम संस्कार की इजाज़त नहीं थी लिहाजा राजा हरीशचंद्र को अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा बतौर दक्षिणा कल्लू डोम को देना पड़ा। बस तभी से शवदाह के बदले टैक्स मांगने की परम्परा मजबूत हो गई।
भगवत गीता के एक उपदेश में कहा गया है कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। हिन्दू धर्म में सभी 16 संस्कारों में अंतिम संस्कार शव यात्रा की होती है। हिंदू धर्म में शव को गंगा के घाट पर अंतिम क्रिया की जाती है। काशी को मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे पवित्र जगह माना गया है। यहां पर जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है उसे सीधे स्वर्ग का प्राप्ति होती है। बनारस के घाट दुनिया का इकलौता श्मशान है जहां पर चिता हमेशा जलती रहती है। बनारस के श्मशान घाट में एक ऐसा घाट है जहां पर मुर्दों से भी टैक्स वसूला जाता है। श्मशान घाट पर लाशों से टैक्स वसूलने के पीछे की ये कहानी भी दिलचस्प है।
हरीशचंद्र घाट पर अंतिम संस्कार की कीमत चुकाने की यह परम्परा तकरीबन 3000 साल पुरानी है। ऐसी मान्यता है कि श्मशान के रख रखाव का जिम्मा तभी से डोम जाति के हाथ था। दरअसल टैक्स वसूलने के मौजूदा दौर की शुरुआत हुई राजा हरीशचंद्र के जमाने से। हरीशचंद्र ने एक वचन के तहत अपना राजपाट छोड़ कर डोम परिवार के पूर्वज कल्लू डोम की नौकरी की थी। इसी बीच उनके बेटे की मौत हो गई और बेटे के दाह संस्कार के लिये उन्हें मजबूरन कल्लू डोम की इजाजत मांगनी पड़ी। चूंकि बिना दान दिये तब भी अंतिम संस्कार की इजाज़त नहीं थी लिहाजा राजा हरीशचंद्र को अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा बतौर दक्षिणा कल्लू डोम को देना पड़ा। बस तभी से शवदाह के बदले टैक्स मांगने की परम्परा मजबूत हो गई।