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दो साल की सजा तो जनप्रतिनिधियों की सदस्यता खत्म

नई दिल्ली/ब्यूरो Updated Thu, 11 Jul 2013 01:36 AM IST
supreme court rejects janpratinidhi act

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति से अपराधियों को दूर रखने के लिए बुधवार को ऐतिहासिक फैसला दिया, जिसके तहत अब सांसद-विधायक निचली अदालत में दोषी करार दिए जाने की तिथि से ही अयोग्य हो जाएंगे।



शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में उस प्रावधान को निरस्त कर दिया, जो आपराधिक मुकदमों में दोषी करार सांसदों, विधायकों को ऊपरी अदालत में अपील लंबित रहने तक अयोग्य करार दिए जाने से बचाता है।


इस फैसले के बाद अब दो साल या अधिक की सजा पाए जनप्रतिनिधियों की सदस्यता बरकरार नहीं रह पाएगी। यह फैसला तत्काल लागू हो गया है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अब तक जो सांसद या विधायक अपनी सजा को ऊपरी अदालत में चुनौती दे चुके हैं उन पर यह आदेश लागू नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से जहां संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त करने में मदद मिलेगी। वहीं यह आदेश उन राजनीतिक दलों के लिए भी सबक है जो अपराधियों को सियासत की कुर्सी पर बिठाकर जनता का खैर-ख्वाह बना देते हैं।

जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होती है।

इसी धारा के तहत आपराधिक रिकॉर्ड वाले जनप्रतिनिधियों को अयोग्यता से संरक्षण हासिल है। हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि यह फैसला भावी मामलों में ही लागू होगा।

पीठ ने यह भी कहा कि संसद को इस प्रावधान को लागू करने का अधिकार नहीं था क्योंकि यह संविधान के विपरीत है। शीर्ष अदालत ने फैसले में आम आदमी और चुने गए जनप्रतिनिधियों के बीच असमानता को दूर करने का प्रयास किया है।
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मालूम हो कि जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान के मुताबिक आपराधिक मामले में (दो साल या उससे ज्यादा सजा के प्रावधान वाली धाराओं के तहत) दोषी करार किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को तब अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता था, जबकि उसकी ओर से ऊपरी न्यायालय में अपील दायर कर दी गई हो।

अदालत ने यह फैसला अधिवक्ता लिली थॉमस और गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी के सचिव एसएन शुक्ला की जनहित याचिका पर सुनाया। इन याचिकाओं में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को निरस्त करने की मांग करते हुए कहा गया था कि इससे संविधान का उल्लंघन होता है।

याचिका में कहा गया था कि संविधान में एक अपराधी के मतदाता के रूप में पंजीकृत होने या फिर उसके सांसद या विधायक बनने पर प्रतिबंध है। लेकिन जन प्रतिनिधित्व कानून का प्रावधान दोषी सांसद, विधायक को अदालत के निर्णय के खिलाफ अपील लंबित होने के दौरान पद पर बने रहने की छूट प्रदान करता है।

याचिकाकर्ता के मुताबिक यह प्रावधान पक्षपात करने वाला है क्योंकि इससे समानता के अधिकार अनुच्छेद-14 का उल्लंघन होता है और इससे राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा मिलता है।

जेल से चुनाव लड़ना अब मुमकिन नहीं
जेल से चुनावी मैदान में कूदने के लिए नामांकन भरने वाले अपराधियों की कारगुजारी पर भी सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अंकुश लगा दिया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि जब जेल से मतदान करने का अधिकार नहीं है तो फिर जेल से चुनाव लड़ने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है।

अदालत ने जेल से चुनाव लड़ने को गलत प्रक्रिया करार देते हुए दोषी या गैर-दोषी व्यक्तियों की ओर से कैद में रहते हुए पर्चा भरे जाने के अधिकार को भी रद्द कर दिया है। जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता वाली पीठ ने जन चौकीदार के आवेदन पर यह फैसला दिया।

तोड़ निकालने में जुटी सरकार

राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद सरकार अब इस आदेश का तोड़ निकालने में जुट गई है। माना जा रहा है कि दोषी ठहराने की तिथि से ही अयोग्य करार दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार अपील कर सकती है।

सरकार को आशंका है कि सजा होते ही अपील का मौका दिए बिना संसद या विधानसभा की सदस्यता खत्म करने के फैसले का राजनीतिक विरोधी दुरुपयोग कर सकते हैं।

सरकार के सूत्रों ने साफ संकेत दिए हैं कि फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने पर गंभीरता से गौर किया जाएगा।

इस फैसले ने राजनीतिक दलों और सरकार से सारे बहाने छीन लिए हैं। चुनाव सुधारों की दिशा में यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा।--लिली थॉमस, याचिकाकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता

फैसला ऐतिहासिक है। चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार के लिए तमाम कोशिशें कीं, मगर राजनीतिक दल इन प्रयासों का समर्थन करने के बजाय इसके खिलाफ एकजुट हो गए। अब इस फैसले के बाद राजनीतिक व्यवस्था में साफ सफाई की शुरुआत होगी।--एसवाई कुरैशी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त

क्या होगा लाभ
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राजनीति का साफ स्वच्छ बनाने में मदद मिलेगी। आपराधिक रिकॉर्ड वाले नेता संसद और विधानसभाओं में नहीं पहुंच सकेंगे।

चुनाव आयोग समय समय पर अपनी रिपोर्टों में आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने की जोरदार वकालत करता रहा है।

राजनीतिक दलों की बोलती बंद
चुनाव आयोग की अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकने की सिफारिशों का लगातार विरोध करते रहे राजनीतिक दलों को अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सांप सूंघ गया है। उनके मुंह से कुछ बोल नहीं निकल रहे हैं।

इस फैसले को अपने लिए झटका मान रहे दलों को डर है कि इसका विरोध करने से जनता के बीच गलत संदेश जाएगा। तमाम दलों के नेता फिलहाल अध्ययन के बाद ही फैसले पर कुछ कह पाने का तर्क दे रहे हैं।

क्या है कानून
जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(3) के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो वह अयोग्य हो जाएगा। जेल से रिहा होने के छह साल बाद तक वह जनप्रतिनिधि बनने के लिए अयोग्य रहेगा।

इसकी उपधारा 8(4) में प्रावधान है कि दोषी ठहराए जाने के तीन माह तक किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता है। और दोषी ठहराए गए सांसद या विधायक ने कोर्ट के निर्णय को इन दौरान यदि ऊपरी अदालत में चुनौती दी है तो वहां मामले की सुनवाई पूरी होने तक उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।

फैसले के बाद 
अब किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे ज्यादा की सजा के प्रावधान के तहत दोषी करार दिया जाता है तो दोषी करार दिए जाने के दिन से ही वह अयोग्य हो जाएगा।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि उसका फैसला आने से पहले जो सांसद या विधायक अपनी सजा को ऊपरी अदालत में चुनौती दे चुके हैं उन पर यह आदेश लागू नहीं होगा।
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निर्दोष साबित नहीं हुए तो जल्द ही आएंगे कोर्ट के फैसले के दायरे में
नाम--आरोप--मुकदमे की स्थिति

जगनमोहन रेड्डी (सांसद)--आय से अधिक संपत्ति मामला--सीबीआई द्वारा चार्जशीट
बीएस येदियुरपपा (पूर्व मुख्यमंत्री, कर्नाटक)--गैर कानूनी खनन घोटाला--मामला अदालत में
सुरेश कलमाडी (सांसद)--राष्ट्रमंडल खेल घोटाला--आरोप तय, जमानत पर रिहा
ए. राजा (पूर्व केंद्रीय मंत्री)--2जी स्पेक्ट्रम घोटाला--आरोप तय, जमानत पर रिहा
कनीमोझी (सांसद)--2जी स्पेक्ट्रम घोटाला--आरोप तय, जमानत पर रिहा
अशोक चव्हाण (मुख्यमंत्री महाराष्ट्र)--आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला--आरोप तय

कौन आ सकते हैं लपेटे में
बाबूभाई बोखरिया (पूर्व मंत्री, गुजरात सरकार)--अवैध खनन मामला
रंगनाथ मिश्र (यूपी के पूर्व माध्यमिक शिक्षा मंत्री)--लेकफैड घोटाला
बाबू सिंह कुशवाहा (पूर्व मंत्री, यूपी सरकार)--एनआरएचएम घोटाला
गोपाल कांडा (पूर्व मंत्री, हरियाणा सरकार)--एयरहोस्टेस खुदकुशी मामला
राघव जी (पूर्व मंत्री, मध्य प्रदेश सरकार)--यौन शोषण मामला
मुख्तार अंसारी (निर्दलीय विधायक, यूपी)--हत्या के मामले में
मधु कोड़ा (पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड)--भ्रष्टाचार का मामला

कितनों पर लटकी तलवार
162--कुल दागी सांसद
1286--विधायक

--162 सांसदों पर विभिन्न आरोपों में आपराधिक मामले चल रहे हैं। इनमें 76 सांसद ऐसे हैं जिन पर चल रहे आपराधिक मामलों में उन्हें पांच साल से ज्यादा की सजा सुनाई जा सकती है।

--1460 विधायकों पर देश भर में विभिन्न आरोपों में आपराधिक मामले चल रहे हैं। इनमें 30 फीसदी विधायक ऐसे हैं जिन पर चल रहे आपराधिक मामलों में उन्हें पांच साल से ज्यादा की सजा सुनाई जा सकती है।

--एनजीओ एडीआर की ओर से जुटाए आंकड़ों के मुताबिक।

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--14वीं लोकसभा में दागी सांसदों की संख्या 128 थी।

--वर्ष 2004 (14वीं लोकसभा) में 55 सांसदों पर संगीन आरोप थे, 15वीं लोकसभा में (2009 के चुनाव के बाद आए परिणाम के अनुसार) बढ़कर 72 हो गए।

--(2009 में लोकसभा चुनाव में बाद नेशनल इलेक्शन वॉच द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार)

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