नर्सरी दाखिलों में निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर सरकार के रवैये पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि वर्तमान में अदालत के आदेश के बिना कोई भी दाखिला नहीं होगा और वर्तमान शैक्षिक सत्र पर भी अदालत का आदेश प्रभावी होगा। अदालत ने दाखिला सूची जारी करने से भी मना कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश डी मुरुगेसन और न्यायमूर्ति वीके जैन की खंडपीठ नर्सरी दाखिलों के लिए निजी स्कूलों को खुद दिशा निर्देश तय करने के लिए छूट देने संबंधी केंद्र सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है। याची ने तर्क रखा कि केंद्र सरकार का रवैया शिक्षा के अधिकार कानून की धारा 13 का उल्लंघन कर रहा है।
मामले की सुनवाई शुरू होते ही केंद्र और दिल्ली सरकार के अलावा निजी स्कूलों के अधिवक्ता ने याचिका पर आपत्ति जताई। निजी स्कूलों के अधिवक्ता ने तर्क रखा कि मौजूदा दाखिला प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। अब केवल सूची जारी करनी है, इसलिए अदालत जो भी आदेश दे, उसे अगले वर्ष से लागू किया जाए।
इस तर्क को खारिज करते हुए खंडपीठ ने कहा कि अभी जनवरी है, जबकि शिक्षा सत्र जुलाई से शुरू होगा। इसलिए उनका आदेश वर्तमान शैक्षिक सत्र 2013-14 पर भी लागू होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि फरवरी में जारी होने वाली सूची अदालत के आदेश के बिना जारी न की जाए।
सुनवाई के दौरान कुछ नए स्कूलों के अधिवक्ताओं ने भी अपना पक्ष रखने का आग्रह किया। खंडपीठ ने उनके आग्रह को मंजूर करते हुए मंगलवार को 30 मिनट उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए दिए हैं। याची के अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने तर्क रखा कि स्कूलों के पास पांच लाख आवेदन आए हैं और जिस तरह का रवैया अपनाया जा रहा है, उसमें चार लाख बच्चे सीधे दाखिले से बाहर हो जाएंगे।
उन्होंने कहा कि सभी को दाखिला लेने का समान अधिकार है और वर्तमान प्रक्रिया से उनके इस अधिकार का हनन होगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 23 नवंबर, 2011 को अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत गैर सहायता प्राप्त स्कूलों को नर्सरी दाखिले के लिए खुद दिशा निर्देश तय करने की छूट प्रदान कर दी गई है।