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सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय अधिनियम के तहत संरक्षण पाने वाले 18 साल तक के नाबालिगों के मामले में एक अहम व्यवस्था दी है।
सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि यदि किसी नाबालिग का ट्रायल सामान्य कानून के तहत हुआ है और अदालत ने उसे दोषी करार दिया है तो दोषी के नाबालिग होने की जानकारी मिलने के बाद भी ट्रायल को अवैध नहीं माना जाएगा।
ऐसे मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को भेज दिया जाएगा। नाबालिग पर दोष समाप्त नहीं होगा और बोर्ड उस मामले में सिर्फ सजा तय करेगा।
अदालत के इस फैसले से उन मामलों में बड़ा फर्क पड़ेगा, जिनमें देरी से पता लगता है कि अपराध के समय आरोपी नाबालिग था।
जस्टिस बीएस ठाकुर व जस्टिस मदन बी. लोकुर की पीठ ने कहा है कि यदि किसी ट्रायल के पूरा होने के बाद यह पता लगता है कि आरोपी अपराध के समय नाबालिग था तो उसका दोष खत्म नहीं होगा और चलाए गए ट्रायल को अवैध नहीं माना जाएगा।
हालांकि निचली अदालत ऐसे मामले में आरोपी के नाबालिग होने की जानकारी मिलते ही मसले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के पास भेज देगी और बोर्ड यह तय करेगा कि उसे क्या सजा दी जानी है।
सर्वोच्च अदालत की यह व्यवस्था पूर्व में दिए गए अदालत के एक फैसले से हटकर है, जिसमें कहा गया था कि यदि किसी जुवेनाइल का ट्रायल उसके नाबालिग होने की जानकारी न होने के फलस्वरूप हो जाता है तो ऐसे मामले में ट्रायल नहीं माना जाएगा और जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड नाबालिग के मामले में सुनवाई कर फैसला करेगा।
गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला दहेज हत्या के उस मामले में सुनाया है जिसमें आरोपी ने अपराध के समय 14 साल का होने का दावा किया था और सुप्रीम कोर्ट की ओर से कराए गए इंक्वायरी में उसके दावे को सही पाया गया।
सर्वोच्च अदालत ने उसे ट्रायल में दोषी करार दिए जाने को सही मानते हुए मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को भेज दिया। साथ ही कहा है कि आरोपी की उम्र चूंकि अब 40 साल हो चुकी है इसलिए उसे सुधार गृह भेजा जाना संभव नहीं है। ऐसे में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड नाबालिग के खिलाफ जुर्माना तय करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय अधिनियम के तहत संरक्षण पाने वाले 18 साल तक के नाबालिगों के मामले में एक अहम व्यवस्था दी है।
सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि यदि किसी नाबालिग का ट्रायल सामान्य कानून के तहत हुआ है और अदालत ने उसे दोषी करार दिया है तो दोषी के नाबालिग होने की जानकारी मिलने के बाद भी ट्रायल को अवैध नहीं माना जाएगा।
ऐसे मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को भेज दिया जाएगा। नाबालिग पर दोष समाप्त नहीं होगा और बोर्ड उस मामले में सिर्फ सजा तय करेगा।
अदालत के इस फैसले से उन मामलों में बड़ा फर्क पड़ेगा, जिनमें देरी से पता लगता है कि अपराध के समय आरोपी नाबालिग था।
जस्टिस बीएस ठाकुर व जस्टिस मदन बी. लोकुर की पीठ ने कहा है कि यदि किसी ट्रायल के पूरा होने के बाद यह पता लगता है कि आरोपी अपराध के समय नाबालिग था तो उसका दोष खत्म नहीं होगा और चलाए गए ट्रायल को अवैध नहीं माना जाएगा।
हालांकि निचली अदालत ऐसे मामले में आरोपी के नाबालिग होने की जानकारी मिलते ही मसले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के पास भेज देगी और बोर्ड यह तय करेगा कि उसे क्या सजा दी जानी है।
सर्वोच्च अदालत की यह व्यवस्था पूर्व में दिए गए अदालत के एक फैसले से हटकर है, जिसमें कहा गया था कि यदि किसी जुवेनाइल का ट्रायल उसके नाबालिग होने की जानकारी न होने के फलस्वरूप हो जाता है तो ऐसे मामले में ट्रायल नहीं माना जाएगा और जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड नाबालिग के मामले में सुनवाई कर फैसला करेगा।
गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला दहेज हत्या के उस मामले में सुनाया है जिसमें आरोपी ने अपराध के समय 14 साल का होने का दावा किया था और सुप्रीम कोर्ट की ओर से कराए गए इंक्वायरी में उसके दावे को सही पाया गया।
सर्वोच्च अदालत ने उसे ट्रायल में दोषी करार दिए जाने को सही मानते हुए मामले को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को भेज दिया। साथ ही कहा है कि आरोपी की उम्र चूंकि अब 40 साल हो चुकी है इसलिए उसे सुधार गृह भेजा जाना संभव नहीं है। ऐसे में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड नाबालिग के खिलाफ जुर्माना तय करेगा।