सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस और पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष अशोक कुमार गांगुली से जुड़े यौन शोषण का मामला शुक्रवार को लोकसभा में भी जोरशोर से उठा।
भारी हंगामे के बीच विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने यौन उत्पीड़न मामले में कड़ा संदेश दिए जाने के लिए गांगुली के इस्तीफे की मांग की। उनकी मांग का तृणमूल कांग्रेस के संसदीय दल के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने समर्थन किया।
जस्टिस गांगुली लॉ इंटर्न के यौन शोषण के आरोपों में फंसे हुए हैं। लॉ इंटर्न के आरोपों को सुप्रीम कोर्ट की एक जांच कमेटी ने सही पाया था। हालांकि इस्तीफे के भारी दबाव के बावजूद भी उन्होंने पद छोड़ने से साफ इनकार कर दिया है। सुषमा इससे पहले भी जस्टिस गांगुली के इस्तीफे की मांग कर चुकी हैं।
लोकसभा में प्रश्नकाल शुरू होने से ठीक पहले यह मामला उठाते हुए सुषमा ने कहा कि यौन शोषण का आरोप झेल रहे जस्टिस गांगुली को इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में फंसे बड़े लोगों को सजा मिलने पर छोटे लोग इस तरह का अपराध करने से पहले सोचने पर मजबूर होंगे।
उन्होंने यौन शोषण के बढ़ते मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में कड़ा संदेश देने के लिए बड़े लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जरूरत है।
सुषमा की मांग का समर्थन करते हुए बंदोपाध्याय ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट की समिति ने लॉ इंटर्न के आरोपों को सच पाया है, तब जस्टिस गांगुली को अपने पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है। उन्होंने इस्तीफा न दिए जाने पर अन्य विकल्प आजमाने की भी मांग की।
उल्लेखनीय है कि जस्टिस गांगुली का मामला शीत सत्र में पहली बार उठा है। सत्र से पहले भी भाजपा, तृणमूल कांग्रेस सहित कई दलों ने जस्टिस गांगुली के इस्तीफे की मांग की थी। हालांकि पूर्व सॉलिसिटर जनरल सोली सोराबजी और सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश ने जस्टिस गांगुली का बचाव करते हुए कहा था कि महज आरोप लगने पर ही इस्तीफे की मांग उचित नहीं है।
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गांगुली को हटाने के लिए पीएम को चिट्ठी
एडिशनल सॉलिसीटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने यौन उत्पीड़न के आरोपी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एके गांगुली को हटाने के लिए प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है। गांगुली इस समय पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष हैं।
पत्र में जयसिंह ने प्रधानमंत्री से गुजारिश की है कि इस मामले में कार्रवाई की जरूरत है। लिहाजा राष्ट्रपति की ओर से सुप्रीम कोर्ट को गांगुली को हटाने को लेकर कार्यवाही शुरू करने का रेफरेंस भेजा जाए। ताकि मानवाधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त संरक्षण की वजह से वह बच न सकें।
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