नौ साल पहले ‘फर्जी’ एनकाउंटर में मारी गई इशरत जहां के परिवार को डराया धमकाया जा रहा है।
परिवार का आरोप है कि कुछ अज्ञात लोग उन्हें धमका रहे हैं। इसी वजह से उन्होंने लिखित तौर पर केंद्र सरकार से सुरक्षा की भी मांग की है।
इशरत की मां शमीमा कौसर ने अपनी वकील के जरिए केंद्रीय गृह सचिव अनिल गोस्वामी को पत्र लिखकर सुरक्षा की मांग की है। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने उनकी याचिका पर जल्द से जल्द गौर करने के निर्देश दिए हैं।
मुंबई में इशरत की बहन मुशरत ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ‘मेरे परिवार और हमारा साथ दे रहे रौफ लाला और मोइनुद्दीन इस्माइल सैयद को जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं।’
मुशरत ने बताया, ‘बुधवार रात को हमारी बिल्डिंग के सामने कई सारे पुलिसकर्मी तैनात थे। रात ढाई बजे कुछ लोगों के एक समूह ने हमारा दरवाजा खटखटाया। वह खुद को पुलिसकर्मी बता रहे थे। वह लगातार दरवाजा पीट रहे थे और पूछ रहे थे कि क्या हम सुरक्षित हैं। वह आपस में कानाफूसी भी करते रहे। लेकिन जब सुबह हमने पुलिस से इस संबंध में पूछा तो उन्होंने बताया कि उनकी ओर से किसी पुलिसकर्मी को नहीं भेजा गया था। साफ था कि वह हमें नुकसान पहुंचाने के इरादे से आए थे।’
एक अन्य घटना का जिक्र करते हुए इशरत के चाचा रौफ लाला ने बताया, ‘गत 18 व 19 जून के बीच रात में मैं अपने परिवार समेत एयरपोर्ट से कार में लौट रहा था, तभी दो हथियारबंद लोगों ने उन पर हमला किया, जिससे कार का पिछला शीशा टूट गया। हमलावरों को स्थानीय लोगों ने पकड़कर पुलिस के हवाले भी कर दिया। उनके पास से देसी पिस्तौल बरामद हुई। मगर पुलिस ने बाद में इसे सड़क दुर्घटना बताकर दोनों को छोड़ दिया। जबकि बाद में पता चला कि उनमें से एक फिरोज कालिया नाम का सुपारी किलर था।’
इसके अलावा जब वह हरियाणा में एक कार्यक्रम के सिलसिले में जा रहे थे, तब भी कुछ लोगों ने करीब 30 किमी तक हमारा पीछा किया।
सीबीआई ने कानून मंत्रालय से मांगी मदद
इशरत जहां की पृष्ठभूमि की तस्वीर साफ करने के उद्देश्य से सीबीआई ने अब कानून मंत्रालय से कुछ अहम फाइलों की जानकारी मांगी है।
गृह मंत्रालय ने एजेंसी के आवेदन को कानून मंत्रालय को भेज दिया है। यह फाइलें गुजरात हाई कोर्ट में इशरत की पृष्ठभूमि को लेकर अलग-अलग बयानों वाले हलफनामे से संबंधित हैं।
सूत्रों का कहना है कि अवर सचिव आरवीएस मनी ने 2009 में हाईकोर्ट में दो महीनों के भीतर ही अलग-अलग विरोधाभासी बयान दर्ज कराए थे। सीबीआई के आवेदन को कानून मंत्रालय को भेज दिया गया है और उससे राय मांगी गई है कि क्या यह गोपनीय जानकारी मामले की जांच में सहायक साबित हो सकती है।
अवर सचिव मनी ने 6 अगस्त, 2009 को दायर हलफनामे में इशरत और उसके तीन साथियों को आतंकवादी ठहराया था। जबकि 30 सितंबर, 2009 के हलफनामे में उन्होंने दावा किया था कि ऐसे कोई ठोस सुबूत नहीं मिले हैं, जो इशरत को आतंकी ठहराते हों।
पूछताछ में भी मनी ने कोई संतुष्टि भरा जवाब नहीं दिया। इन फाइलों से इन विरोधाभासी बयानों के पीछे के सच पर से पर्दा उठ सकता है।