गैंगस्टर छोटा राजन के सहयोगी राम नारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया के फर्जी एनकाउंटर मामले में कोर्ट ने सभी 21 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
सेशन कोर्ट द्वारा 2006 में किए गए इस एनकाउंटर में सजा पाने वालों में 13 पुलिसकर्मी शामिल हैं, जिनमें टीम का नेतृत्व कर रहे पूर्व सीनियर इंस्पेक्टर प्रदीप सूर्यवंशी, तानाजी देसाई और दिलीप पालांडे के प्रमुख हैं।
जबकि अब तक 100 से ज्यादा अपराधियों का एनकाउंटर कर चुके प्रदीप शर्मा को पिछले सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था।
मुकदमे की सुनवाई के दौरान 110 से ज्यादा अभियोजन पक्ष के गवाह और दो बचाव पक्ष के गवाहों ने अपने बयान दर्ज कराए।
अभियोजन पक्ष ने सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान सभी पुलिसकर्मियों और उन्हें मदद करने वाले शैलेंद्र पांडे और अखिल खान के लिए फांसी की सजा मांगी थी।
मगर बचाव पक्ष ने दलील दी कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर ही उन्हें दोषी ठहराया गया है, इसलिए फांसी की सजा के बारे में विचार नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही दोषियों के परिवार के बारे में भी विचार किया जाना चाहिए।
11 नवंबर, 2006 को पुलिस की एक टीम ने लखन भैया को उसके दोस्त अनिल भेड़ा को राजन गैंग के संदिग्ध सदस्य के रूप में उठाया था और उसी शाम पश्चिमी मुंबई के वर्सोवा में फर्जी एनकाउंटर में मार दिया था।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक भेड़ा को शुरुआत में वर्सोवा में हिरासत में लिया गया और बाद में उसे कोल्हापुर शिफ्ट कर दिया गया। बाद में उसे फिर से मुंबई लाया गया और एक महीने तक हिरासत में रखा गया।
इसके बाद ही राम नारायण के भाई एडवोकेट रामप्रसाद गुप्ता ने बांबे हाईकोर्ट में गुहार लगाई। फरवरी, 2008 में हाईकोर्ट ने इस मामले की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए। बाद में सितंबर, 2009 को हाईकोर्ट ने विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया।
2010 में एसआईटी ने प्रदीप शर्मा समेत 21 आरोपियों को गिरफ्तार किया। जांचकर्ताओं के मुताबिक बिल्डर जनार्दन बांगे उर्फ जान्या सेठ के कहने पर गुप्ता का एनकाउंटर किया गया था।
इसके बाद 2011 में इकलौता चश्मदीद गवाह भेड़ा घर से लापता हो गया, दो महीने बाद नवी मुंबई पुलिस को बेहद खराब हालत में उसका शव बरामद हुआ।
गैंगस्टर छोटा राजन के सहयोगी राम नारायण गुप्ता उर्फ लखन भैया के फर्जी एनकाउंटर मामले में कोर्ट ने सभी 21 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
सेशन कोर्ट द्वारा 2006 में किए गए इस एनकाउंटर में सजा पाने वालों में 13 पुलिसकर्मी शामिल हैं, जिनमें टीम का नेतृत्व कर रहे पूर्व सीनियर इंस्पेक्टर प्रदीप सूर्यवंशी, तानाजी देसाई और दिलीप पालांडे के प्रमुख हैं।
जबकि अब तक 100 से ज्यादा अपराधियों का एनकाउंटर कर चुके प्रदीप शर्मा को पिछले सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था।
मुकदमे की सुनवाई के दौरान 110 से ज्यादा अभियोजन पक्ष के गवाह और दो बचाव पक्ष के गवाहों ने अपने बयान दर्ज कराए।
अभियोजन पक्ष ने सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान सभी पुलिसकर्मियों और उन्हें मदद करने वाले शैलेंद्र पांडे और अखिल खान के लिए फांसी की सजा मांगी थी।
मगर बचाव पक्ष ने दलील दी कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर ही उन्हें दोषी ठहराया गया है, इसलिए फांसी की सजा के बारे में विचार नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही दोषियों के परिवार के बारे में भी विचार किया जाना चाहिए।
11 नवंबर, 2006 को पुलिस की एक टीम ने लखन भैया को उसके दोस्त अनिल भेड़ा को राजन गैंग के संदिग्ध सदस्य के रूप में उठाया था और उसी शाम पश्चिमी मुंबई के वर्सोवा में फर्जी एनकाउंटर में मार दिया था।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक भेड़ा को शुरुआत में वर्सोवा में हिरासत में लिया गया और बाद में उसे कोल्हापुर शिफ्ट कर दिया गया। बाद में उसे फिर से मुंबई लाया गया और एक महीने तक हिरासत में रखा गया।
इसके बाद ही राम नारायण के भाई एडवोकेट रामप्रसाद गुप्ता ने बांबे हाईकोर्ट में गुहार लगाई। फरवरी, 2008 में हाईकोर्ट ने इस मामले की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए। बाद में सितंबर, 2009 को हाईकोर्ट ने विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया।
2010 में एसआईटी ने प्रदीप शर्मा समेत 21 आरोपियों को गिरफ्तार किया। जांचकर्ताओं के मुताबिक बिल्डर जनार्दन बांगे उर्फ जान्या सेठ के कहने पर गुप्ता का एनकाउंटर किया गया था।
इसके बाद 2011 में इकलौता चश्मदीद गवाह भेड़ा घर से लापता हो गया, दो महीने बाद नवी मुंबई पुलिस को बेहद खराब हालत में उसका शव बरामद हुआ।