विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के व्यापार सुविधा समझौते (टीएफए) पर दस्तखत किए जाने का असर बढ़ती प्रतिस्पर्धा और वैश्विक बाजार पर देखने को मिल सकता है।
खाद्य सुरक्षा के लिए अनाज के स्टॉक को लेकर हाल ही में भारत और अमेरिका के बीच सहमति बनने का प्रभाव आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों के बाजारों पर देखने को मिलेगा।
कंज्यूमर्स यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी (कट्स) द्वारा क्रू (सीआरईडब्ल्यू) प्रोजेक्ट के तहत आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में यह सहमति स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आई है।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रदीप एस मेहता ने कहा कि अमेरिका के साथ लंबी बातचीत के बाद भारत सरकार द्वारा टीएफए पर दस्तखत करने को लेकर सहमति जताया जाना क्षेत्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि विश्व व्यापार और अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भी एक स्वागत योग्य कदम है।
उन्होंने कहा कि यह विश्व व्यापार को बढ़ावा देने वाला कदम साबित होगा। दुनिया के प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भी इसका असर देखने को मिलेगा। इसके अलावा यह कदम विकासशील देशों के बाजारों में प्रतिस्पर्धा से जुड़ी नीतियों में सुधार की दिशा में बड़ा बदलाव लाने वाला भी साबित होगा।
उन्होंने हाल ही में ब्रिस्बन में हुए सम्मेलन के दौरान जी-20 देशों के नेताओं के इस बात पर सहमत होने का भी जिक्र किया कि व्यापार और प्रतिस्पर्धा की राह की बाधाओं को समाप्त करके ही दुनिया भर में आर्थिक विकास और रोजगार के सृजन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि सम्मेलन का विषय और क्रू प्रोजेक्ट दोनों ही प्रासंगिक हैं। क्रू प्रोजेक्ट घाना, भारत, फिलीपींस और जांबिया में चलाया जा रहा है। इससे पहले सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए अंकटाड के पूर्व महासचिव डा. सुपाचाई पानित्चपाकडी ने विकासशील देशों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने की सतत पैरवी करने के लिए कट्स को बधाई दी।
उन्होंने कहा परियोजना के मुख्य विषय के रूप में प्रधान भोजन (स्टेपल फूड) और बस परिवहन को चुना जाना काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दोनों ही आम आदमी से जुड़ी हुई चीजें हैं। इसलिए यह परियोजना के दायरे में आने वाले चार देशों के साथ-साथ थाईलैंड जैसे देशों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि थाईलैंड प्रतिस्पर्धा कानून के बावजूद में बीते कई वर्षों से इसे लागू कर पाने में नाकाम रहा है। क्रू प्रोजेक्ट के तहत उन सेक्टरों को शामिल किया गया है जिनमें कई देशों में सरकारें ही प्रदाता के रूप में मुख्य भूमिका में होती हैं।
इसलिए इन सेक्टरों में प्रतिस्पर्धात्मक सुधारों को लेकर बहुत सतर्कतापूर्ण रणनीति तैयार करने की जरूरत है। यह इसलिए भी जरूरी है कि प्रतिस्पर्धा का न होना उपभोक्ता और उत्पादक दोनों को ही प्रभावित करता है।
सम्मेलन के पहले तकनीकी सत्र में चार देशों के प्रस्तुतकर्ताओं ने मुख्य भोजन के क्षेत्र को लेकर किए गए अपने शोध अध्ययनों के निष्कर्षों को प्रस्तुत किया। उनके अध्ययन के मुताबिक बीज और उर्वरक के क्षेत्र में निजी भागीदारी और प्रतिस्पर्धा वाले देशों में इसका सकारात्मक असर देखने को मिला है।
अन्य देशों में सरकारें अभी भी आपूर्ति पर सब्सिडी प्रदान करने में लगी हुई हैं। ऐसे उपायों ने न केवल इन सेक्टरों में प्रतिस्पर्धा को दबाया, बल्कि सरकारों के राजस्व को भी हानि पहुंचाई। बस परिवहन के क्षेत्र में सभी देशों में नियामकीय स्तर पर काम किया जाना सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
बसों के बाजार की प्रकृति में समय के साथ-साथ बदलाव होने पर इसके नियमन में ठहराव बने रहना तर्कसंगत नहीं दिखता है। सम्मेलन में इस बात को लेकर सहमति दिखाई दी कि बस परिवहन क्षेत्र के नियमन की दिशा में सरकारों द्वारा बदलाव किए जाने की जरूरत है।
बस परिवहन के क्षेत्र में सरकारों के एकाधिकार को समाप्त करके इस निजी-सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी) को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। सम्मेलन में विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र, एस्कैप और ओसीईडी जैसे दर्जनों वैश्विक संगठनों के अलावा कई देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।