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Shaligram: why idol of Ramlala is being made from the stone of Shaligram, what happen if the work is not done?
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Shaligram: आखिर क्यों शालिग्राम के पत्थर से ही रामलला की मूर्ति बनवाई जा रही, अगर नहीं हुआ काम तो क्या होगा?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Fri, 03 Feb 2023 05:00 PM IST
सार
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सवाल उठता है कि आखिर शालिग्राम के पत्थर से ही क्यों भगवान की मूर्तियां बनाई जा रहीं हैं? इसका महत्व क्या है? अगर इन पत्थरों से मूर्तियां तैयार नहीं हो पाती हैं तो फिर क्या होगा? आइए समझते हैं...
नेपाल से अयोध्या लाईं गई करीब छह करोड़ साल पुरानी शालिग्राम शिलाएं इन दिनों चर्चा में हैं। इन्हीं शिलाओं से अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के गर्भगृह में स्थापित होने वाली भगवान राम और माता सीता की मूर्ति तैयार होनी है। ये शिलाएं नेपाल की गंडकी नदी में लाई गईं हैं। माना जा रहा है कि साल 2024 में होने वाली मकर संक्रांति तक यह मूर्तियां बनकर तैयार हो जाएंगी।
सवाल उठता है कि आखिर शालिग्राम के पत्थर से ही क्यों भगवान की मूर्तियां बनाई जा रहीं हैं? इसका महत्व क्या है? अगर इन पत्थरों से मूर्तियां तैयार नहीं हो पाती हैं तो फिर क्या होगा? आइए समझते हैं...
आखिर क्यों शालिग्राम पत्थर से ही रामलला की मूर्ति बनवाई जा रही?
हिंदू धर्म में शालिग्राम पत्थर का विशेष महत्व है। इस पत्थर को भगवान विष्णु का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। इसे सालग्राम के रूप में भी जाना जाता है। शालिग्राम दुर्लभ होते हैं, जो हर जगह नहीं मिलते। ज्यादातर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र, काली गंडकी नदी के तट पर ही पाए जाते हैं। शालिग्राम कई रंगों के होते हैं। लेकिन सुनहरा और ज्योति युक्त शालिग्राम सबसे दुर्लभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, शालिग्राम 33 प्रकार के होते हैं जिनमे से 24 प्रकार को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा जाता है। यही कारण है कि शालिग्राम को भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना जाता है।
अयोध्या में शालिग्राम शिला
- फोटो : अमर उजाला
भगवान विष्णु के विग्रह रूप के रूप में शालिग्राम को ही पूजा जाता है। कहा जाता है कि अगर शालिग्राम गोल है, तो वह भगवान विष्णु का गोपाल रूप होता है और मछली के आकार में है, तो उसे मत्स्य अवतार का प्रतीक माना जाता है। अगर कछुए के आकार में शालिग्राम है, तो उसे कुर्म और कच्छप अवतार का प्रतीक माना जाता है। शालिग्राम पर उभरे हुए चक्र और रेखाएं विष्णु जी के अन्य अवतारों और रूपों का प्रतीक मानी जाती हैं। विष्णु जी के गदाधर रूप में एक चक्र का चिह्न होता है। लक्ष्मीनारायण रूप में दो, त्रिविक्रम तीन से, चतुर्व्यूह रूप में चार, वासुदेव में पांच।
हिंदू परंपरा के अनुसार 'वज्र-कीट' नामक एक छोटा कीट इन्हीं शिलाओं में रहता है। कीट का एक हीरे का दांत होता है जो शालिग्राम पत्थर को काटता है और उसके अंदर रहता है। वैष्णवों के अनुसार शालिग्राम 'भगवान विष्णु का निवास स्थान' है और जो कोई भी इसे रखता है, उसे प्रतिदिन इसकी पूजा करनी चाहिए। उसे कठोर नियमों का भी पालन करना चाहिए जैसे बिना स्नान किए शालिग्राम को न छूना, शालिग्राम को कभी भी जमीन पर न रखना, गैर-सात्विक भोजन से परहेज करना और बुरी प्रथाओं में लिप्त न होना। स्वयं भगवान कृष्ण ने महाभारत में युधिष्ठिर को शालिग्राम के गुण बताए हैं। मंदिर अपने अनुष्ठानों में किसी भी प्रकार के शालिग्राम का उपयोग कर सकते हैं।
शालिग्राम शिला
- फोटो : ANI
देवउठनी एकादशी के दिन होती है पूजा
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी के विवाह की परंपरा है। एक कथा के अनुसार तुलसी ने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया था इसलिए भगवान विष्णु को शालिग्राम बनना पड़ा और इस रूप में उन्होंने माता तुलसी जोकि लक्ष्मी का ही रुप मानी जाती है उनसे विवाह किया। शालिग्राम और भगवती स्वरूपा तुलसी का विवाह करने से सारे अभाव, कलह, पाप, दुख और रोग दूर हो जाते हैं।
मान्यतओं के मुताबिक, जिस घर में शालिग्राम की रोज पूजा होती है वहां सभी दोष दूर होते हैं और नकारात्मकता नहीं रहती है। इसके अलावा इस घर में विष्णुजी और महालक्ष्मी निवास करती हैं। शालिग्राम को स्वयंभू माना जाता है इसलिए कोई भी व्यक्ति इन्हें घर या मंदिर में स्थापित करके पूजा कर सकता है। शालिग्राम को अर्पित किया हुआ पंचामृत प्रसाद के रूप में लेने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। पूजा में शालिग्राम पर चढ़ाया हुआ जल भक्त यदि अपने ऊपर छिड़कता है तो उसे सभी तीर्थों में स्नान के समान पुण्य फल की प्राप्ति होता है।
अगर नेपाल से आए शालिग्राम से मूर्ति नहीं बनी तो क्या होगा?
इसे समझने के लिए हमने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय से बात की। उन्होंने कहा, 'हम पूरी कोशिश करेंगे कि नेपाल से आईं शालिग्राम पत्थर से ही रामलला की मूर्ति तैयार हो। हालांकि, इसपर आखिरी फैसला मूर्तिकला के विशेषज्ञ और मूर्ति निर्माण करने वाले कारीगर द्वारा ही लिया जाएगा। मूर्ति का निर्माण करने वालों को सबसे पहले शालिग्राम पत्थर दिखाया जाएगा। वह इसे टेस्ट करेंगे। जब पत्थर पर छेनी लगेगी तभी मूर्तिकार बता पाएगा कि इस पत्थर से मूर्ति तैयार होगी या नहीं।'
चंपत राय आगे कहते हैं, 'भारत में जहां-जहां इस प्रकार के पत्थर उपलब्ध हैं, वे पत्थर भी मंगाए जा रहे हैं। ऐसा जरूरी नहीं है कि जिस पत्थर को एक बार ले आएं, उससे ही मूर्ति बनेगी। इसलिए शालिग्राम शिला को लेकर भी अभी कुछ कन्फर्म नहीं है। ओडिशा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश से भी पत्थर मंगवाए जा रहे हैं। मूर्तिकार को आगे तय करना है कि किस पत्थर से बेहतर मूर्ति बनेगी।'
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