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विस्तार
अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के केंद्र में अभी से ‘अयोध्या’ है। यह कुछ राजनीतिक दलों के लिए प्रमुख फैक्टर है तो किसी के लिए प्रयोगशाला। कोई पार्टी ब्राह्मणों को यहीं से रिझाने की कोशिश कर रहा है तो कोई मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए यहां पड़ाव डाल रहा है। दरअसल इस धार्मिक शहर में किसी भी राजनीतिक घटनाक्रम का न केवल अयोध्या में, बल्कि पूर्वांचल और राज्य के अन्य हिस्सों में भी असर होता है, इसलिए सभी पार्टियां इस नगरी से अपने मतदाताओं को साधने की कोशिश में है।
अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के केंद्र में अभी से ‘अयोध्या’ है। यह कुछ राजनीतिक दलों के लिए प्रमुख फैक्टर है तो किसी के लिए प्रयोगशाला। कोई पार्टी ब्राह्मणों को यहीं से रिझाने की कोशिश कर रहा है तो कोई मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए यहां पड़ाव डाल रहा है। दरअसल इस धार्मिक शहर में किसी भी राजनीतिक घटनाक्रम का न केवल अयोध्या में, बल्कि पूर्वांचल और राज्य के अन्य हिस्सों में भी असर होता है, इसलिए सभी पार्टियां इस नगरी से अपने मतदाताओं को साधने की कोशिश में है।
पहले सिलसिलेवार समझिए कि कैसे सभी पार्टियों और घटनाओं के मुख्य फोकस में अभी अयोध्या है।
.चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन नवंबर को अयोध्या में दीपोत्सव कार्यक्रम में शामिल होंगे।
.उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से ही चुनाव लड़ने की अटकलें हैं। अयोध्या से बीजेपी विधायक वेद प्रकाश गुप्ता योगी के लिए अपनी सीट छोड़ने को तैयार हैं।
. मायावती ने 23 जुलाई से यूपी के 18 मंडलों में ब्राह्मण सम्मेलन करने का एलान किया,अयोध्या के धार्मिक महत्व को महसूस करते हुए इसकी शुरुआत यहीं से हुई।
.आईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कल यूपी में अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार अयोध्या में रैली कर शुरू किया। वे यहां से मुस्लिमों को साधने की कोशिश में है।
.सपा नेता और अयोध्या के पूर्व विधायक पवन पांडे ने मीडिया को बताया था हमारे अध्यक्ष अखिलेश यादव जी अपने राज्य के दौरे की शुरुआत करेंगे और अयोध्या आएंगे।
भाजपा के लिए अहम, दूसरी पार्टियां महत्व को भुनाने की कोशिश में
भारतीय जनता पार्टी के चुनाव एजेंडे में अयोध्या और राम हमेशा रहे हैं। इसलिए हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा के लिए अयोध्या महत्वपूर्ण है। अन्य पार्टियां भाजपा के हिंदुत्व की काट नहीं ढूंढ पा रही तो अयोध्या के महत्व को भुनाने की कोशिश कर रही हैं। जो भी पार्टी 2022 में जीतना चाहती है, उसके लिए यहां अपनी उपस्थिति दिखाना महत्वपूर्ण हो गया है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति की नब्ज पकड़ने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं ऐसा लगता है कि सारी राजनीतिक पार्टियां उलझन में है। राजनीतिक पार्टियों को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह बड़ा मुद्दा नहीं रहा, लेकिन फिर भी इस मुद्दे को गरमाए रखना है। भाजपा को इसका जो ज्यादा फायदा मिलना तो वह मिल गया, लेकिन दूसरी पार्टियां उसके ट्रैप में है। दूसरी पार्टियां इस उम्मीद में कि यदि वे भी इस गेम में रहें तो उन्हें भी फायदा होगा। भाजपा की देखादेखी ही दूसरी पार्टियां भी इसमें कूद गई हैं। भाजपा के इशारे पर ही मुस्लिम वोट बैंक को बांटने के लिए ओवैसी आ गए हैं। सभी पार्टियां अयोध्या को एक फैक्टर बनाने की कोशिश में हैं, लेकिन यह दांव कितना कारगार होगा यह देखने की बात है।