अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के साथ बैठक कर रहे हैं। खास बात है कि इस बैठक का न्योता भी प्रधानमंत्री की तरफ से भेजा गया है। पिछले दो दिनों से 'गुपकार' में शामिल राजनीतिक दलों की बैठक चल रही है। महबूबा मुफ्ती 24 जून को होने जा रही बैठक में शिरकत करने के लिए दिल्ली पहुंच चुकी हैं। कांग्रेस व भाजपा सहित दूसरे दलों ने भी अपना होमवर्क पूरा कर लिया है। जम्मू-कश्मीर की राजनीति के जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ होने जा रही बैठक में बाजी पलट सकती है।
पिछले सत्तर साल से 'गुपकार' या उनके विचारों से मिलते जुलते लोगों ने जम्मू-कश्मीर पर राज किया है। कभी जम्मू-कश्मीर पर 'डोगरा' समुदाय के लोग शासन करते थे। डोगरा नेता मानते हैं कि एक साजिश के तहत उनका शासन खत्म कर दिया गया।
बता दें कि 'गुपकार' नेता अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग पर अड़ सकते हैं। उन्होंने अपने बयानों के जरिए इस बात के संकेत दे दिए हैं। भले ही कांग्रेस पार्टी ने मंगलवार को दिल्ली में लेकर अलग से अपने नेताओं के साथ बातचीत की है, लेकिन वे पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस सहित 'गुपकार' गठबंधन के दूसरे दलों के साथ हैं।
कांग्रेस पार्टी की तरफ से जो बयान आ रहे हैं, उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि पीएम मोदी के सामने वे 'गुपकार' नेताओं की बात का समर्थन करेंगे। नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस और पीडीपी, ये पार्टियां जम्मू-कश्मीर की परीसीमन प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए तैयार हैं। ये सभी दल जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करेंगे। तीसरा, जो सबसे अहम बिंदु है, वह अनुच्छेद 370 का है। जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी को छोड़कर बाकी दल अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग कर सकते हैं। पैंथर्स पार्टी ने तो अनुच्छेद 370 समाप्त करने के फैसले का स्वागत किया था।
राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) कहते हैं, पीएम की बैठक में गुपकार अपनी मांग उठाएगा, जिसे भाजपा कभी स्वीकार नहीं करेगी। पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग पर सरकार कोई आश्वासन दे सकती है। राज्य में परीसीमन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसके बाद संभावना है कि केंद्र सरकार पूर्ण राज्य का दर्जा देकर चुनाव करा दे। अलगाववादी समूह भी अब पूर्ण सरकार के पक्ष में हैं। पिछले कुछ वर्षों से इन समूहों की आतंकियों की मदद करने जैसी खबरें नहीं आ रही हैं। हालांकि अनेक अलगाववादी नज़रबंद रहे हैं तो कुछ गिरफ्तार भी हुए हैं।
यहां देखने वाली बात यह रहेगी कि केंद्र सरकार जम्मू और कश्मीर को अलग करने के बारे में क्या रुख अपनाती है। बैठक में केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह भी रहेंगे। वे डोगरा समुदाय से हैं। उन पर भी लंबे समय से यह दबाव है कि जम्मू-कश्मीर में डोगरा लोगों को भी प्रमुखता से प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद विकास का जो नया खाका खींचा जा रहा है, उसमें विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधित्व में असंतुलन कम करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
कैप्टन अनिल गौर कहते हैं, डोगरा समुदाय के लोगों को भी प्रतिनिधित्व मिले, इसके लिए जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर में दो विधानसभाएं गठित कर दी जाएं। दूसरा विकल्प ये है कि परीसीमन के जरिए जम्मू को उसके हिस्से की पूरी विधानसभा सीटें मिलें। पिछली जनगणना के दौरान दस लाख की अतिरिक्त संख्या कश्मीर में जोड़ दी गई। इस बाबत कहीं से कोई आवाज नहीं उठी। डोगरा शासकों की इस जमीन पर अब न्याय होगा। लोगों को उम्मीद है कि अब सारी नौकरी और पैसा, कश्मीर नहीं जाएगा। डोगरा शासकों के गौरवपूर्ण अतीत को जानबूझकर खत्म करने का प्रयास किया गया था।
सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने का वादा पूरा कर दिया है। इतने वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डोगरा संस्कृति को नहीं पहुंचने दिया गया।
पीएम की बैठक में ये तय है कि गुपकार नेता एक स्वर में बोलेंगे। चूंकि अब उनके पास कोई काम ही नहीं बचा है, इसलिए वे दोबारा से अनुच्छेद 370 बहाली की मांग करेंगे। पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए, यह उनकी दूसरी मांग रहेगी। स्थानीय भाजपा के प्रतिनिधि जम्मू को लेकर एक खास प्रस्ताव प्रधानमंत्री के समक्ष रख सकते हैं। इसमें डोगरा का जिक्र रहेगा।
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अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के साथ बैठक कर रहे हैं। खास बात है कि इस बैठक का न्योता भी प्रधानमंत्री की तरफ से भेजा गया है। पिछले दो दिनों से 'गुपकार' में शामिल राजनीतिक दलों की बैठक चल रही है। महबूबा मुफ्ती 24 जून को होने जा रही बैठक में शिरकत करने के लिए दिल्ली पहुंच चुकी हैं। कांग्रेस व भाजपा सहित दूसरे दलों ने भी अपना होमवर्क पूरा कर लिया है। जम्मू-कश्मीर की राजनीति के जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ होने जा रही बैठक में बाजी पलट सकती है।
पिछले सत्तर साल से 'गुपकार' या उनके विचारों से मिलते जुलते लोगों ने जम्मू-कश्मीर पर राज किया है। कभी जम्मू-कश्मीर पर 'डोगरा' समुदाय के लोग शासन करते थे। डोगरा नेता मानते हैं कि एक साजिश के तहत उनका शासन खत्म कर दिया गया।