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Sedition Charges Against Sharjeel Imam: क्या है देशद्रोह का कानून? शरजील इमाम पर है क्या-क्या आरोप हैं?
प्रतिभा ज्योति, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Published by: प्रतिभा ज्योति
Updated Tue, 25 Jan 2022 02:09 PM IST
सार
देशद्रोह और राजद्रोह दोनों में फर्क है। आमतौर पर इसे एक ही माना जाता है, लेकिन वास्तव में ये दोनों अलग-अलग हैं। कानून के जानकार का कहना है राजद्रोह और देशद्रोह को एक मानने की गलती करना संविधान के साथ पूरे देश के साथ एक धोखा है।
शरजील इमाम (फाइल फोटो)
- फोटो : Facebook
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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र शरजील इमाम पर विभिन्न धाराओं के तहत देशद्रोह का केस चलेगा। उन पर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीसीए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ 2019 में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ भाषण देने का आरोप है।
कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायधीश अमिताभ रावत की अदालत ने कहा कि इस मामले में शरजील पर आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), धारा 153ए (धार्मिक वैमनस्यता बढ़ाने), धारा 153बी (देश के एकता के खिलाफ बयान), धारा 505 (सार्वजनिक शांति के खिलाफ बयान), गैरकानूनी गतिविधि (निषेध) अधिनियम यूएपीए की धारा 13 के तहत आरोप दर्ज किया जाता है। अदालत ने कहा कि प्रथमदृष्टया इमाम पर पर लगे आरोप को प्रमाणित करने के लिए अभियोजन के पास साक्ष्य हैं। इसलिए उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के निर्देश दिए जाते हैं।
क्या है मामला
शरजील इमाम जनवरी 2020 से ही जेल में हैं। उन पर आरोप हैं कि उन्होंने 13 दिसंबर 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और 16 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए थे, जिसमें उन्होंने भारत से असम और बाकी पूर्वोत्तर राज्यों को अलग करने की धमकी दी थी। दिल्ली पुलिस के आरोपपत्र कहा गया कि इस भड़काऊ भाषण के कारण दिसंबर 2019 में दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा भड़की थी। हालांकि अपने बचाव में इमाम ने कहा था कि उनके खिलाफ अभियोजन सरकार द्वारा स्थापित कानून के मुताबिक नहीं है।
देशद्रोह कानून को लेकर एक बार फिर चर्चा गर्म है, इसलिए यह समझना जरूरी है कि देशद्रोह क्या है और इससे जुड़े कानून क्या हैं?
सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान विशेषज्ञ विराग गुप्ता बताते हैं ‘देशद्रोह बहुत ही गम्भीरअपराध है। देशद्रोह का मतलब देश के साथ गद्दारी है। यदि कोई भी व्यक्ति देश को बांटने या देश को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करता है तो यह देशद्रोह के दायरे में आता है और इससे निबटने के लिए अनेक कानूनी प्रावधान हैं। देश की एकता अखंडता को खंडित करने और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वाले राष्ट्र-विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों से निपटने के लिए आईपीसी में कई कानून के साथ यूएपीए, मकोका और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसे सख्त कानूनों की व्यवस्था है।
क्या देशद्रोह और राजद्रोह अलग-अलग हैं?
विराग गुप्ता कहते हैं ‘बिल्कुल फर्क है। राजद्रोह और देशद्रोह को एक समझना कानून सम्मत नहीं है।’ उनके मुताबिक राजद्रोह का कानून औपनिवेशिक काल का है। ब्रिटिश शासन के दौर में सरकार को अस्थिर करने वालों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल होता था जो अभी भी चला रहा है। राजद्रोह का कानून अंग्रेजों ने बनाया था क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत को ब्रिटिश संसद से मान्यता मिली थी।
उनके मुताबिक राजद्रोह कानून को लेकर ब्रितानी राजा या महारानी और हिन्दुस्तान को एक मानने का भ्रम पैदा किया गया। लेकिन 1950 में संविधान लागू होने पर भारत गणतंत्र बन गया। इसमें लोकतंत्र के दायरे में हर पांच साल में सरकार बदलने का जनता को अधिकार दिया गया। संसद और विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव से भी सरकारों को बदला जा सकता है। इसलिए कानून और संविधान के दायरे में सरकारों को अस्थिर बनाने का प्रयास अपराध के दायरे में नहीं आ सकता। इसलिए सरकार के खिलाफ बयान देना देशद्रोह नहीं है। इसलिए पिछले कई दशकों से राजद्रोह के कानून को निरस्त करने की बात हो रही है।
विस्तार
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र शरजील इमाम पर विभिन्न धाराओं के तहत देशद्रोह का केस चलेगा। उन पर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीसीए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ 2019 में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ भाषण देने का आरोप है।
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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र शरजील इमाम पर विभिन्न धाराओं के तहत देशद्रोह का केस चलेगा। उन पर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीसीए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ 2019 में हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ भाषण देने का आरोप है।
कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायधीश अमिताभ रावत की अदालत ने कहा कि इस मामले में शरजील पर आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), धारा 153ए (धार्मिक वैमनस्यता बढ़ाने), धारा 153बी (देश के एकता के खिलाफ बयान), धारा 505 (सार्वजनिक शांति के खिलाफ बयान), गैरकानूनी गतिविधि (निषेध) अधिनियम यूएपीए की धारा 13 के तहत आरोप दर्ज किया जाता है। अदालत ने कहा कि प्रथमदृष्टया इमाम पर पर लगे आरोप को प्रमाणित करने के लिए अभियोजन के पास साक्ष्य हैं। इसलिए उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के निर्देश दिए जाते हैं।
क्या है मामला
शरजील इमाम जनवरी 2020 से ही जेल में हैं। उन पर आरोप हैं कि उन्होंने 13 दिसंबर 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और 16 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए थे, जिसमें उन्होंने भारत से असम और बाकी पूर्वोत्तर राज्यों को अलग करने की धमकी दी थी। दिल्ली पुलिस के आरोपपत्र कहा गया कि इस भड़काऊ भाषण के कारण दिसंबर 2019 में दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा भड़की थी। हालांकि अपने बचाव में इमाम ने कहा था कि उनके खिलाफ अभियोजन सरकार द्वारा स्थापित कानून के मुताबिक नहीं है।
शरजील इमाम
- फोटो : अमर उजाला
देशद्रोह कानून को लेकर एक बार फिर चर्चा गर्म है, इसलिए यह समझना जरूरी है कि देशद्रोह क्या है और इससे जुड़े कानून क्या हैं?
सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान विशेषज्ञ विराग गुप्ता बताते हैं ‘देशद्रोह बहुत ही गम्भीरअपराध है। देशद्रोह का मतलब देश के साथ गद्दारी है। यदि कोई भी व्यक्ति देश को बांटने या देश को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करता है तो यह देशद्रोह के दायरे में आता है और इससे निबटने के लिए अनेक कानूनी प्रावधान हैं। देश की एकता अखंडता को खंडित करने और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वाले राष्ट्र-विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों से निपटने के लिए आईपीसी में कई कानून के साथ यूएपीए, मकोका और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसे सख्त कानूनों की व्यवस्था है।
शरजील इमाम
- फोटो : अमर उजाला
क्या देशद्रोह और राजद्रोह अलग-अलग हैं?
विराग गुप्ता कहते हैं ‘बिल्कुल फर्क है। राजद्रोह और देशद्रोह को एक समझना कानून सम्मत नहीं है।’ उनके मुताबिक राजद्रोह का कानून औपनिवेशिक काल का है। ब्रिटिश शासन के दौर में सरकार को अस्थिर करने वालों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल होता था जो अभी भी चला रहा है। राजद्रोह का कानून अंग्रेजों ने बनाया था क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत को ब्रिटिश संसद से मान्यता मिली थी।
उनके मुताबिक राजद्रोह कानून को लेकर ब्रितानी राजा या महारानी और हिन्दुस्तान को एक मानने का भ्रम पैदा किया गया। लेकिन 1950 में संविधान लागू होने पर भारत गणतंत्र बन गया। इसमें लोकतंत्र के दायरे में हर पांच साल में सरकार बदलने का जनता को अधिकार दिया गया। संसद और विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव से भी सरकारों को बदला जा सकता है। इसलिए कानून और संविधान के दायरे में सरकारों को अस्थिर बनाने का प्रयास अपराध के दायरे में नहीं आ सकता। इसलिए सरकार के खिलाफ बयान देना देशद्रोह नहीं है। इसलिए पिछले कई दशकों से राजद्रोह के कानून को निरस्त करने की बात हो रही है।
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