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ISRO Mangalyaan 2 Mission Launch Date All You Need to Know About India Mars Orbiter Mission II
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Mangalyaan: मंगल ग्रह के लिए क्या है भारत की आगे की योजना, मंगलयान-2 की लॉन्चिंग कब तक, जानें
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Mon, 03 Oct 2022 05:06 PM IST
सार
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मंगल ग्रह के लिए भारत की आगे की योजना क्या है? मंगलयान-2 मिशन को लॉन्च करने के लिए तैयारियां कहां पहुंची हैं? इसकी लॉन्चिंग की तारीख क्या हो सकती है? इसके अलावा मंगलयान-2 में क्या-क्या उपकरण शामिल किए जाएंगे और यह मंगलयान-1 से कितना अलग होगा? आइये जानते हैं...
मंगल ग्रह की जानकारी जुटाने के लिए भेजा गया भारत का पहला ऑर्बिटर मंगलयान का संपर्क इसरो के ग्राउंड स्टेशन से टूट गया है। बताया गया है कि लॉन्चिंग के आठ साल तक मंगल के चक्कर काटने वाले मंगलयान का ईंधन और बैट्री खत्म हो गई थी। इसके चलते 450 करोड़ के भारत के पहले मंगल मिशन का अंत हुआ। हालांकि, मंगलयान भले ही मंगल ग्रह के लिए भारत का पहला मिशन हो, लेकिन जाहिर तौर पर यह आखिरी नहीं था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने मंगल ग्रह के लिए अपने दूसरे मिशन की तैयारी कई दिनों पहले ही शुरू कर दी थी। इसे मंगलयान-2 नाम दिया गया है। हालांकि, बीते दिनों में इस नए मिशन को लेकर जानकारी स्पष्ट नहीं हुई है।
मंगल ग्रह के लिए भारत की आगे की योजना क्या है? मंगलयान-2 मिशन को लॉन्च करने के लिए तैयारियां कहां पहुंची हैं? इसकी लॉन्चिंग की तारीख क्या हो सकती है? इसके अलावा मंगलयान-2 में क्या-क्या उपकरण शामिल किए जाएंगे और यह मंगलयान-1 से कितना अलग होगा? आइये जानते हैं...
मंगलयान
- फोटो : ट्विटर/मार्स ऑर्बिटर
क्या मंगल ग्रह के लिए आगे भी मिशन लॉन्च करेगा भारत?
इसरो ने मंगलयान-1 की लॉन्चिंग 5 नवंबर, 2013 को की थी। इसे मंगल की कक्षा में 24 सितंबर 2014 को स्थापित कराया गया था। ऐसा माना जा रहा था कि भारत सरकार इस मिशन की सफलता के बाद जल्द ही मंगल ग्रह के लिए एक और प्रोजेक्ट का एलान कर सकती है। हालांकि, नए प्रोजेक्ट को लेकर अगली जानकारी सामने आई 2016 में, जब केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में लिखित जवाब में कहा था कि मार्स ऑर्बिटर मिशन-2 की तैयारियां की जा रही हैं और मिशन का मकसद और ब्लूप्रिंट भी बनाया जा रहा है।
मंगलयान
- फोटो : अमर उजाला
मंगलयान-2 मिशन को लॉन्च करने के लिए तैयारियां कहां पहुंची हैं?
संसद में जितेंद्र सिंह की तरफ से दिए इस बयान के बाद इसरो ने अनाउसमेंट ऑफ अपॉर्च्यूनिटी (एओ डॉक्यूमेंट) निकाला था। इसमें मिशन के लिए जरूरी बातों का जिक्र किया गया था। इसके अलावा ऑर्बिटर को मंगल के और करीब की कक्षा में स्थापित करने का प्रस्ताव दिया गया। 2019 के करीब कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि मंगलयान-2 में मंगल के चक्कर लगाने वाले एक ऑर्बिटर के साथ एक लैंडर भी भेजा जाएगा, जो ग्रह की सतह पर उतरकर अहम जानकारियां जुटाएगा।
हालांकि, बाद में इसरो प्रमुख के. सिवन ने एक इंटरव्यू में साफ किया था कि मिशन में सिर्फ एक ऑर्बिटर ही प्रस्तावित है। 2021 में मार्स ऑर्बिटर मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुबैया अरुणन ने कहा था कि इसरो मंगलयान-2 में एयरोब्रेकिंग तकनीक का इस्तेमाल करेगा, ताकि ऑर्बिटर को मंगल के और करीबी कक्षा में स्थापित किया जा सके।
मंगल ग्रह
- फोटो : Pixabay
भारत के अगले मंगल मिशन की लॉन्चिंग कब तक?
रिपोर्ट्स की मानें तो मंगलयान-2 की लॉन्चिंग फिलहाल इसरो की प्राथमिकता में नहीं है। अधिकारियों ने मंगल मिशन की लॉन्चिंग 2025 तक टाल दी है। उनका कहना है कि यह प्रोजेक्ट अभी भी निर्माण के फेज में है और तैयारियां आगे बढ़ रही हैं। इसरो की तरफ से फिलहाल अंतरिक्ष में पहले इंसान को भेजने के मिशन- गगनयान पर काम चल रहा है। इसके अलावा चांद पर ऑर्बिटर-लैंडर उतारने के मिशन चंद्रयान-3 को भी प्राथमिकता श्रेणी में रखा गया है। इसके अलावा एजेंसी एक और प्रोजेक्ट आदित्य-एल1 परियोजना पर काम कर रही है।
एक इसरो अफसर का तो यहां तक कहना है कि मंगल मिशन फिलहाल मंजूरी पाने वाले प्रोजेक्ट्स में नहीं है। न्यूज एजेंसी से बातचीत में इस अधिकारी ने बताया कि मंगलयान के लिए प्रोजेक्ट के प्रस्तावों पर विचार बाकी है। अफसरों के मुताबिक, मंगलयान-2 मिशन को फाइनल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत भी पड़ सकती है।
मंगलयान-2 में क्या-क्या उपकरण होंगे, मंगलयान से कितना अलग?
भारत के अगल मार्स मिशन के जो एओ डॉक्यूमेंट सामने आया था। उसमें सैटेलाइट की पेलोड क्षमता 100 किलोग्राम प्रस्तावित थी। बताया गया है कि इसमें जो पेलोड लगेंगे, उनमें से एक ARIS नाम का उपकरण होगा। हालांकि, इसे लेकर ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है। सिर्फ इतनी जानकारी दी गई है कि इसे भारत के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी (IIST) के संभाग 'स्पेस सैटेलाइट सिस्टम्स और पेलोड सेंटर' (SSPACE) की तरफ से विकसित किया जा रहा है। इससे जुड़े इंजीनियरिंग मॉडल्स और हाई वैक्यूम टेस्ट किए जा चुके हैं।
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