जम्मू-कश्मीर में 'अनुच्छेद 370' खत्म होने के बाद केंद्र सरकार ने वहां पर 'भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानून' में बड़ा संशोधन किया था। उसके तहत, देश का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकता है। उसे घर बनाने और कारोबार शुरू करने की इजाजत दे दी गई थी। तब विपक्ष और जम्मू-कश्मीर के कई राजनीतिक दलों (गुपकार समझौते में शामिल) ने केंद्र सरकार को यह कहकर घेरने का प्रयास किया था कि बाहर के लोगों को जम्मू-कश्मीर में बसाने की साजिश रची जा रही है। केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर की 'डेमोग्राफी' को बिगाड़ना चाहती है।
मंगलवार को संसद में जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने यह खुलासा किया कि वहां पर तो केवल दो ही लोगों ने जम्मू में जमीन खरीदी है, भाजपा खुश हो गई। 'डेमोग्राफी' के साथ खिलवाड़, यह राजनीतिक दुष्प्रचार पूरी तरह फेल हो गया। हालांकि अब जम्मू-कश्मीर की नई औद्योगिक नीति पर काम शुरू हो गया है। उम्मीद है कि आने वाले समय में प्रदेश के बाहर से भारी संख्या में निवेशक वहां पहुंचेंगे।
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक एवं सुरक्षा मामलों के जानकार कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) ने कहा, जब 'भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानून' में संशोधन किया गया तो जम्मू कश्मीर के कई राजनीतिक दलों ने उसका विरोध किया था। इनमें कई राजनीतिक दल तो ऐसे थे, जो बाद में 'गुपकार' समझौते में शामिल हो गए। इनके अलावा घाटी के अलगाववादी संगठनों ने भी केंद्र सरकार के इस बदलाव का पुरजोर विरोध किया था। इन संगठनों का आरोप था कि केंद्र सरकार अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जानबूझकर कश्मीर में जनसांख्यिकीय बदलाव करना चाहती है। इसका जमकर दुष्प्रचार किया गया। ऐसा कहीं नहीं लिखा है जो जमीन खरीदेगा, उसे वहीं रहना पड़ेगा। किसी की मर्जी है, वह कहीं भी रहे। 'भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानून' के जरिए अगर कोई यहां जमीन खरीदता है तो उसका मकसद 'कारोबार' ही रहेगा।
कैप्टन गौर ने कहा, अभी घाटी के हालात उस स्तर पर नहीं पहुंचे हैं कि कोई बाहर से यहां आकर बस जाए। मौजूदा समय में लोग यह बात जानते हैं कि किसी बाहरी व्यक्ति के लिए कश्मीर में जाकर बस जाना आसान नहीं है। स्थानीय सहयोग, समुदाय और प्रशासन, इन सबके हिसाब से वहां रहने लायक हालात नहीं हैं। आतंकवादियों का खतरा कम नहीं हुआ है। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी और आर्मी चीफ तक यह बात स्वीकार कर चुके हैं कि अभी घाटी में डेढ़ सौ के आसपास आतंकवादी बचे हैं। बॉर्डर पार भी दो-तीन सौ आतंकी लॉन्चिंग पैड पर मौजूद हैं। ऐसे माहौल में कोई बाहरी आदमी यहां होली-डे होम नहीं बनाएगा। उसे अपना स्थायी आवास भी नहीं बनाना है। वह अपना प्रोजेक्ट, जैसे उद्योग, स्कूल, अस्पताल, पर्यटन या कोई दूसरा व्यवसाय आगे बढ़ाना चाहेगा। उसे ये बात मालूम है कि यहां पर भारी सब्सिडी और दूसरी सुविधाएं सरकार द्वारा मुहैया कराई जाएंगी।
केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन की नई औद्योगिक नीति की घोषणा हो चुकी है। बतौर कैप्टन गौर, जम्मू-कश्मीर प्रशासन यहां पर कम से कम 30-40 हजार करोड़ रुपये का निवेश लाने की योजना बना रहा है। जिन इलाकों में यह निवेश होगा, उनकी पहचान की जा रही है। फिल्म उद्योग, जम्मू-कश्मीर में आए, इसके प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि इन सब योजनाओं में अभी समय लगेगा। सरकार को यहां पर बाहर से आने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। इसके लिए जरूरी है कि सुरक्षा एजेंसियां ओवर ग्राउंड वर्कर और अंडर ग्राउंड वर्करों की पहचान कर उन्हें बाहर निकाले। किसी भी बाहरी व्यक्ति के लिए ये दोनों प्रकार के वर्कर बहुत खतरनाक हैं। यूं कहें कि आतंकियों को सूचना पहुंचाने का ये वर्कर एक बड़ा माध्यम हैं। जब घाटी में आतंकवाद पूरी तरह खत्म हो जाएगा, तभी बाहर के लोग यहां आकर बसने की सोच सकते हैं। तब तक लोग जमीन खरीदेंगे और कहीं दूर बैठकर अपना कारोबार संचालित करेंगे।
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जम्मू-कश्मीर में 'अनुच्छेद 370' खत्म होने के बाद केंद्र सरकार ने वहां पर 'भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानून' में बड़ा संशोधन किया था। उसके तहत, देश का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकता है। उसे घर बनाने और कारोबार शुरू करने की इजाजत दे दी गई थी। तब विपक्ष और जम्मू-कश्मीर के कई राजनीतिक दलों (गुपकार समझौते में शामिल) ने केंद्र सरकार को यह कहकर घेरने का प्रयास किया था कि बाहर के लोगों को जम्मू-कश्मीर में बसाने की साजिश रची जा रही है। केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर की 'डेमोग्राफी' को बिगाड़ना चाहती है।
मंगलवार को संसद में जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने यह खुलासा किया कि वहां पर तो केवल दो ही लोगों ने जम्मू में जमीन खरीदी है, भाजपा खुश हो गई। 'डेमोग्राफी' के साथ खिलवाड़, यह राजनीतिक दुष्प्रचार पूरी तरह फेल हो गया। हालांकि अब जम्मू-कश्मीर की नई औद्योगिक नीति पर काम शुरू हो गया है। उम्मीद है कि आने वाले समय में प्रदेश के बाहर से भारी संख्या में निवेशक वहां पहुंचेंगे।
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक एवं सुरक्षा मामलों के जानकार कैप्टन अनिल गौर (रिटायर्ड) ने कहा, जब 'भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानून' में संशोधन किया गया तो जम्मू कश्मीर के कई राजनीतिक दलों ने उसका विरोध किया था। इनमें कई राजनीतिक दल तो ऐसे थे, जो बाद में 'गुपकार' समझौते में शामिल हो गए। इनके अलावा घाटी के अलगाववादी संगठनों ने भी केंद्र सरकार के इस बदलाव का पुरजोर विरोध किया था। इन संगठनों का आरोप था कि केंद्र सरकार अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद जानबूझकर कश्मीर में जनसांख्यिकीय बदलाव करना चाहती है। इसका जमकर दुष्प्रचार किया गया। ऐसा कहीं नहीं लिखा है जो जमीन खरीदेगा, उसे वहीं रहना पड़ेगा। किसी की मर्जी है, वह कहीं भी रहे। 'भूमि स्वामित्व अधिनियम संबंधी कानून' के जरिए अगर कोई यहां जमीन खरीदता है तो उसका मकसद 'कारोबार' ही रहेगा।