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Brand Modi still a puzzle for the opposition, but local issues challenges
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Brand Modi and Opposition: ब्रांड मोदी अब भी विपक्ष के लिए पहेली, पर स्थानीय मुद्दे चुनौती
अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
Published by: Amit Mandal
Updated Sat, 10 Dec 2022 06:07 AM IST
सार
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भले ही भाजपा को हिमाचल और दिल्ली नगर निगम की डेढ़ दशक पुरानी सत्ता गंवानी पड़ी है, मगर इससे भाजपा के मिशन 2024 की संभावना पर असर पड़ने की संभावना नहीं दिख रही।
दिल्ली नगर निगम और गुजरात-हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने मिशन 2024 के संदर्भ में कई राजनीतिक संदेश दिए हैं। इसमें पहला संदेश यह है कि ब्रांड मोदी अब भी विपक्ष के लिए अबूझ पहेली है। बीते आठ सालों से ब्रांड मोदी के सामने नतमस्तक कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी के रूप में दोहरी चुनौती खड़ी हुई है। हालांकि हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के नतीजों ने भाजपा के अजेय होने की छवि पर बट्टा लगाया है और यह साबित किया है कि स्थानीय मुद्दों के सहारे भाजपा के हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और विकास का मुकाबला किया जा सकता है।
भले ही भाजपा को हिमाचल और दिल्ली नगर निगम की डेढ़ दशक पुरानी सत्ता गंवानी पड़ी है, मगर इससे भाजपा के मिशन 2024 की संभावना पर असर पड़ने की संभावना नहीं दिख रही। इसका कारण ब्रांड मोदी की मजबूती और विश्वसनीयता बीते आठ साल से बरकरार रहने, चुनाव में पीएम मोदी के ट्रंप कार्ड बने रहने के साथ आप की कांग्रेस का विकल्प बनने की बनती जा रही अवधारणा है। आप के विस्तार के संभावना ने आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की संभावना को ही विस्तार दिया है। फिर ध्यान देने वाली बात यह है कि सत्ता विरोधी लहर के एक समय बहुत तेज होने के बावजूद भाजपा को वोट प्रतिशत और सीटों की दृष्टि से दिल्ली नगर निगम और हिमाचल चुनाव में कोई बड़ा नुकसान नहीं उठाना पड़ा है। हिमाचल में कांग्रेस को भाजपा की तुलना में महज 37974 मत ज्यादा मिले, जबकि दिल्ली निगम में भाजपा की सीटों की संख्या सौ से ज्यादा है।
पुरानी पेंशन स्कीम भी कांग्रेस की जीत की वजह
बीते आठ सालों में जिस भी दल ने राज्य की अस्मिता और स्थानीय मुद्दों के सहारे भाजपा के राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और विकास का मुकाबला किया है, उसे सफलता मिली है। हिमाचल प्रदेश और दिल्ली निगम चुनाव के नतीजों ने इसे साबित किया है। हिमाचल में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन स्कीम, बेरोजगाारी जैसे स्थानीय मुद्दों के सहारे भाजपा का मुकाबला कर जीत हासिल की। इससे पहले भी दिल्ली, पश्चिम बंगाल, ओडिशा जैसे राज्यों में स्थानीय मुद्दों के सहारे ही क्षत्रप भाजपा से पार पा सके हैं।
विपक्षी एकता की राह में संकट
नतीजों ने कांग्रेस की अपनी अगुवाई में विपक्ष को एकजुट करने की इच्छा के सामने भी बड़ी चुनौती खड़ी की है। केजरीवाल, ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव पहले ही कांग्रेस की अगुवाई को अस्वीकार कर चुके हैं। फिर अगर कांग्रेस ने दिल बड़ा किया तो आप के साथ सीटों का समझौता करना बेहद पेचीदा होगा। आप उसे दिल्ली, पंजाब में सीटें नहीं देना चाहेगी, इसके उलट उसकी कोशिश गुजरात में अधिक सीटें हासिल करने के साथ मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा में भी सीटें झटकने की होगी।
जहां रहती थीं बिलकिस बानो, वहां से भी जीती भाजपा
अहमदाबाद। गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म का मामला जोरशोर से उठा था। कारण था इस मामले के दोषियों की समयपूर्व जेल से रिहाई। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की थी, लेकिन लगता है मतदाताओं पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। जिस लिमखेड़ा विधानसभा क्षेत्र में कभी बिलकिस बानो रहती थीं, वहां से भी भाजपा को जीत मिली है। आदिवासी बहुल दाहोज जिले के इस क्षेत्र से भाजपा के मौजूदा विधायक शैलेश भभोर ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी आप के नरेश बारिया को चार हजार मतों से हराया है। कांग्रेस यहां पर तीसरे नंबर पर रही है और मात्र 8,000 मत ही मिले हैं। इससे कुछ विश्लेषकों ने कहा था कि यहां मुस्लिम कांग्रेस का समर्थन करेंगे।
इस चुनाव में फिर भाजपा के साथ आए पाटीदार : गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि इस चुनाव में पाटीदार समुदाय का भाजपा को समर्थन मिला है। 2017 के चुनाव में पाटीदार भाजपा से दूर हो गए थे। पाटीदार बहुल सूरत में आम आदमी पार्टी ने बहुत उम्मीदें लगा रखी थीं, लेकिन वहां इस समुदाय का सत्तारूढ़ दल को समर्थन मिला।
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कांग्रेस के सामने दोहरी मुश्किल
ब्रांड मोदी से पार पाने की कोशिशों में बीते आठ साल से उलझी कांग्रेस के सामने भाजपा के बाद अब आप के रूप में नई चुनौती खड़ी हुई है। गुजरात में उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज करा कर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली आप भविष्य में कांग्रेस के लिए चुनौती है। ध्यान देने वाली बात है कि आप का विस्तार भाजपा की जगह कांग्रेस की कीमत पर हो रहा है। ऐसे में मिशन 2024 के लिए कांग्रेस को भाजपा के साथ ही आप के रूप में मजबूत चुनौती का सामना करना होगा।
आगामी चुनावों में कांग्रेस की होगी अग्निपरीक्षा
चार साल बाद सत्ता का सूखा खत्म करने के बावजूद कांग्रेस की चुनौती कम होने के बदले और बढ़ी ही है। अगले साल कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और हरियाणा में 2024 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में अगर कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई तो उसकी विपक्ष की अगुवाई करने की इच्छा ग्रहण लगेगा।
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