देश के दक्षिणी राज्यों में चुनावी सरगर्मियां जोरों पर हैं। नए राज्य तेलंगाना के उदय ने दक्षिण भारतीय राजनीति को सबके आकर्षण का केंद्र बना दिया है। दक्षिण के अन्य राज्य आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल हैं, जबकि पुदुचेरी केंद्र शासित प्रदेश है। दक्षिण भारत में अमूमन सब मान रहे हैं कि कांग्रेस की संभावनाएं खत्म हो गई हैं। वहां कांग्रेस विरोधी लहर महसूस की जा रही है। दूसरी ओर, आत्मविश्वास से लबरेज एनडीए और नरेंद्र मोदी के उभार का साझा असर वहां देखा जा सकता है। बंगलूरू, हैदराबाद और चेन्नई वैसे भी भारत में इलेक्ट्रॉनिक क्रांति के गढ़ माने जाते हैं। फेसबुक और ट्वीटर युग के ज्यादातर युवाओं में नरेंद्र मोदी को लेकर एक जुनून-सा है।
नरेंद्र मोदी और उनकी भरोसेमंद टीम की दक्षिण भारत की राजनीति के मद्देनजर आंध्र प्रदेश में तेलगुदेशम पार्टी और तमिलनाडु में एमडीएमके और डीएमडीके जैसे छोटे दलों को जोड़ने की रणनीति का असर दिख रहा है। कर्नाटक में पुराने दोस्तों को पार्टी से फिर से जोड़ने के फैसले को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। पिछले चार-पांच महीने से मोदी जिस योजना पर काम कर रहे थे, उसके अच्छे नतीजे अब दिखने भी लगे हैं। दक्षिण के महत्व को ध्यान में रखते हुए ही मोदी ने सोलह बार इन राज्यों की यात्राएं कीं।
तेलंगाना में अगर सोनिया गांधी को पूजा जा रहा है, तो इसकी वजह है। आंध्र प्रदेश के विभाजन का श्रेय यूपीए, खासकर सोनिया गांधी को ही जाता है। इसके बावजूद दक्षिण में कांग्रेस कैडर में ज्यादा उत्साह नहीं दिख रहा। केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश का एक एसएमएस भी यही बताता है, जो उन्होंने मेरे अलावा कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को भेजा। यह एसएमएस कहता है, दो हार्वर्ड (पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल) और दो ऑक्सफोर्ड (डॉ मनमोहन सिंह, सलमान खुर्शीद) ने मिलकर यूपीए को बैकवर्ड (पिछड़ा) और कांग्रेस को ऑकवर्ड (अटपटा) बना दिया है। यह एसएमएस कांग्रेस के भीतर की सारी कहानी बयान कर देता है। साफ है कि मनमोहन सिंह और पी चिदंबरम को लेकर नाराजगी भीतर से भी है। अलग तेलंगाना के गठन का विचार जयराम रमेश के दिमाग की ही उपज था। दरअसल राहुल गांधी ने तेलंगाना के संदर्भ में जयराम रमेश से वही भूमिका निभाने को कहा था, जो उन्होंने भूमि सुधार विधेयक के संदर्भ में निभाई थी।
अगर दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस और भाजपा की स्थितियों का विश्लेषण किया जाए, तो साफ होता है कि यहां कांग्रेस की हालत बेहद नाजुक है। 42 लोकसभा सीटों वाले अविभाजित आंध्र प्रदेश के लोगों में राज्य के विभाजन को लेकर कांग्रेस के प्रति कड़वाहट देखी जा सकती है। इसका नुकसान कांग्रेस को होगा। वाईएसआर राजशेखर रेड्डी के पुत्र जगन मोहन रेड्डी ने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी तो बनाई ही थी। हाल में पूर्व मुख्यमंत्री किरन रेड्डी ने जय समैक्यांध्र (संयुक्त आंध्र) पार्टी बनाई। चिरंजीवी के भाई पवन कल्याण ने भी एक पार्टी बना डाली है। कांग्रेस नाम जुड़े होने की वजह से इन पार्टियों में एक डर समाया हुआ है। इससे कांग्रेस के प्रति माहौल का अंदाजा लगाया जा सकता है। संभव है कि वहां कांग्रेस को छह-सात सीटें मिल जाएं।
केरल और कर्नाटक में कुल मिलाकर 48 लोकसभा सीटें हैं। इन राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार है। केरल में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है। लेकिन बी एस येदियुरप्पा की भाजपा में वापसी से कर्नाटक में कांग्रेस पांच-छह सीटों तक ही सिमट सकती है। तमिलनाडु से चुनाव लड़ने से पी चिदंबरम के इन्कार से हर कोई वाकिफ है। नरेंद्र मोदी तमिलनाडु की अपनी तीन रैलियों में चिदंबरम को 'गलती से चुना गया मंत्री' कह चुके हैं। उनका तर्क था कि कई चरण की गणनाओं के बाद चिदंबरम को जीत हासिल हो पाई थी। पुदुचेरी से वी नारायणसामी को जीतने में खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। कम शब्दों में कहें, तो दक्षिण भारत की कुल 130 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस 20-25 से ज्यादा सीटें पाने की उम्मीद नहीं कर सकती।
अब दक्षिण में जरा भाजपा की स्थिति पर गौर फरमाएं। कर्नाटक में पांच साल तक भाजपा सत्ता में रही। यह जानना रोचक है कि केरल में चार-पांच हिंदू बाहुल्य जिलों में भाजपा ने अपनी जड़े जमानी शुरू कर दी हैं। इसके अलावा नरेंद्र मोदी और राजनाथ्ा सिंह ने तमिलनाडु में डीएमडीके, एमडीएमके और पीएमके के साथ गठजोड़ बनाने में कामयाबी हासिल की है। जबकि कांग्रेस द्रमुक को मनाने में कामयाब नहीं रही है। यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि एम के स्टालिन ने सोनिया गांधी के दिल्ली आमंत्रण को ठुकरा दिया। तीन साल तक द्रमुक नेताओं को कांग्रेस ने जेल में रखा। स्टालिन ने सोनिया गांधी से शिकायत की थी कि विदेशी कारों की खरीद मामले में उनके और अलागिरि के घर पर प्रवर्तन निदेशालय के छापों के पीछे पी चिदंबरम का हाथ था। जिस दिन द्रमुक ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस लिया था, उसी दिन सीबीआई का छापा पड़ा, जिसके लिए बाद में खुद प्रधानमंत्री ने स्टालिन से माफी मांगी थी। तमिलनाडु के कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के मुताबिक पार्टी का वह रुख गैरजरूरी था।
अगर आंध्र प्रदेश में टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस अधिकांश सीटें जीत लेती हैं और तमिलनाडु में जयललिता की अन्नाद्रमुक 25 सीटें जीत लेती हैं, तो यही लोग दिल्ली में एनडीए सरकार के गठन में बड़ी भूमिका निभाएंगे। इस तरह उत्तर प्रदेश और बिहार में भाजपा को मिलने वाली सीटें ही नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा को दिशा देंगी।