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आज हम 70 वें भारतीय सेना दिवस का जश्न मना रहे हैं। इसी दिन 1949 में जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) के एम करियप्पा ने स्वतंत्रता के बाद पहली बार भारतीय सशस्त्र बल के कमांडर इन चीफ का पदभार संभाला था। उन्होंने अंतिम ब्रिटिश कमांडर इन चीफ जनरल सर एफ आर आर बुचर से कमान संभाली थी। तब से हमारी सेना दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना बन गई है और यह वास्तव में गर्व की बात है कि भारतीय सेना एक स्वैच्छिक सेवा बनी हुई है। हमारे देश के पुरुषों और महिलाओं ने स्वेच्छा से राष्ट्र की सेवा को चुना। हालांकि संविधान में सैन्य भर्ती का प्रावधान है, लेकिन इसे कभी थोपा नहीं गया। सेना ने हमें महान 21 परमवीर और हजारों ऐसे जांबाज जवान दिए, जो सेना के आदर्श वाक्य-’स्वयं से पहले सेवा’-के तहत सेवा देते रहे हैं।
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भारतीय सेना लोगों के लिए कई चीजों का प्रतिनिधित्व करती है, लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए यह निःस्वार्थ और राष्ट्र की सेवा के लिए पेशेवर दृष्टिकोण का पर्याय है। आज सेना दिवस के दिन हम जीत का जश्न मनाते हैं और हमारे सैनिकों के बलिदानों को सलाम करते हैं। एक राष्ट्र के रूप में यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने वर्दीधारी राष्ट्र प्रहरियों और परिजनों का ख्याल न सिर्फ उनकी सेवा अवधि के दौरान, बल्कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी रखें।
सरकार सशस्त्र बलों, सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों और उनके परिवारों के कल्याण के लिए कई तरह की योजनाएं एवं लाभप्रद कार्यक्रम चलाती हैं। वन रैंक-वन पेंशन का ही मामला लीजिए, तो इस मुद्दे पर संसद सदस्य बनने के बाद (2006) से मैं लगातार देश का ध्यान आकृष्ट करता रहा हूं, और इसे सरकार ने 2015 में लागू किया। यह आजादी के बाद किसी भी सरकार द्वारा सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों के लिए चलाया गया सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण कल्याणकारी उपाय है, जिससे बीस लाख से ज्यादा पूर्व सैन्यकर्मियों, उनकी विधवाओं एवं अन्य परिजनों को लाभ मिलेगा।
सेवारत जवानों और उनके परिजनों/आश्रितों को सभी चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। पूर्व सैन्यकर्मियों एवं उनके आश्रितों के लिए भी पूर्व-सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ईसीएचएस) के तहत चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। यह योजना अनेक लोगों को लाभ देने के लिए लागू है, लेकिन दूर-दराज के इलाकों में ईसीएचएस पॉलीक्लिनिक में विशेषज्ञों और दवाओं की कमी तथा भुगतान की अदायगी में देरी के कारण अस्पतालों से यह सुविधा वापस लेने जैसे गंभीर मुद्दे हैं।
सेवारत सैन्यकर्मियों और उनके आश्रितों को यात्रा रियायतें प्रदान की जाती हैं, क्योंकि शौर्य पुरस्कार विजेताओं और वीर नारियों (विधवाओं) के लिए विशेष रियायतें हैं। सेवारत और पूर्व सैन्यकर्मियों के लिए कई आवासीय योजनाएं भी हैं। सैन्य कल्याण आवासीय संगठन (एडब्ल्यूएचओ) एक ऐसा संगठन है, जो देश के कुछ खास केंद्रों में सेवारत एवं पूर्व सैन्यकर्मियों तथा विधवाओं के लिए आवास निर्माण के लिए उत्तरदायी है। एडब्ल्यूएचओ ने सेवारत जूनियर कमीशन अफसर और अन्य रैंकों के सैनिकों के लिए किफायती घर बनाने के लिए 'जय जवान आवास योजना' भी शुरू की है। गौरतलब है कि ये आवास सैनिक छावनी के आसपास बनाए जा रहे हैं, ताकि उनमें रहने वाले परिवार इलाके के सैन्य अस्पताल और सैन्य स्कूल जैसी सुविधा का लाभ उठा सकें। निश्चित रूप से जिन अत्यंत कठिन परिस्थितियों में हमारे जवान राष्ट्र की सेवा करते हैं, उसकी भरपाई किसी भी चीज से नहीं की जा सकती। हमारे बहुत से बहादुर जवानों ने बर्फीले तूफानों और दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में हिमस्खलन के बीच अपना जीवन बिताया है। सीमा क्षेत्र में हमारे जवान ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में तैनात रहते हैं, जहां कोई बुनियादी सुविधा नहीं होती। फिर भी उन्हें हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहना होता है।
तमाम कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद एक क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है। वह यह कि सेवानिवृत्ति के बाद हमारे सैनिकों को फिर से रोजगार की व्यवस्था करनी पड़ती है। मेरा मानना है कि 35 साल के जवान और 54 वर्ष के अधिकारियों को सेवानिवृत्ति की अनुमति देना राष्ट्रीय क्षमता का अपव्यय है, क्योंकि ये उनके जीवन के महत्वपूर्ण समय होते हैं। बेहतर चिकित्सा सुविधा के साथ तंदुरुस्त सैनिकों की सेवानिवृत्ति की उम्र पर विचार करने के लिए यह अच्छा अवसर हो सकता है। ऐसे उच्च प्रशिक्षित और अनुशासित सैन्यकर्मी किसी भी संगठन के लिए अमूल्य संपत्ति होंगे। राज्य एवं केंद्र सरकार के अनुषंग संस्थानों में सैनिकों की फिर से भर्ती की बात मैं पिछले कई वर्षों से कर रहा हूं। इससे दो फायदे होंगे, पहला, सरकारी संगठनों को कुशल, समर्पित एवं पेशेवर लोग मिलेंगे और दूसरा, पेंशन बिल और सरकार के अन्य खर्च में कमी आएगी।
हमारे सैनिकों की सेवा और बलिदान का बदला कभी नहीं चुकाया जा सकता। ऐसे में यह सुनिश्चित करना हमारा नैतिक दायित्व है कि उनके परिजनों को कोई कठिनाई न हो। एक बार देश अगर हमारे पूर्व सैनिकों और शहीदों के परिवारों को कुछ देता है, तो उसे वापस नहीं लिया जाना चाहिए। शहीदों और उनके परिवारों से संबंधित मुद्दे से संवेदनशीलता से निपटा जाना चाहिए। वर्ष 2012 में यह सुनिश्चित करने के लिए, कि हमारे सशस्त्र बलों, पूर्व सैनिकों और उनके परिजनों के प्रति प्रतिबद्धता कानून में निहित है, मैंने एक प्राइवेट मेंबर बिल-सशस्त्र बल प्रतिज्ञापत्र विधेयक संसद में पेश किया था, जो अब भी विचाराधीन है। इसमें राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सैनिकों की बहादुरी और बलिदान के बदले उनकी देखभाल और सहायता में सुधार की प्रतिबद्धता का समर्थन किया गया है। असल में वे हमारे सम्मान, हमारी प्रेरणा और हमारे समर्थन के हकदार हैं। आज का दिन उन लोगों का धन्यवाद करने का दिन है, जो राष्ट्र की सेवा करते हैं, और उन शहीदों को श्रद्धांजलि देने का दिन है, जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा के लिए जीवन का बलिदान दिया।