निरंतर एक्सेस के लिए सब्सक्राइब करें
आगे पढ़ने के लिए लॉगिन या रजिस्टर करें
अमर उजाला प्रीमियम लेख सिर्फ रजिस्टर्ड पाठकों के लिए ही उपलब्ध हैं
विस्तार
तुर्किये में हाल में हुए चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोआन ने अपने प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू को हराकर जीत हासिल की है। विनाशकारी भूकंप और जीवन यापन के संकट जैसी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद अर्दोआन प्रचार अभियान को मजहब आधारित राष्ट्रवाद पर केंद्रित करने में कामयाब रहे, जो बहुत से मतदाताओं की सोच से मेल खाता था। शासन तंत्र पर उनके नियंत्रण और रूस जैसी विदेशी ताकत के समर्थन ने भी उनकी जीत में भूमिका निभाई।
अर्दोआन पिछले 20 वर्षों से सत्ता में है, पहले प्रधानमंत्री के रूप में और फिर 2003 से राष्ट्रपति के रूप में। उन्होंने 2017 में एक जनमत संग्रह के जरिये राष्ट्रपति पद की भूमिका को महज औपचारिक के बजाय एक शक्तिशाली पद में तब्दील कर दिया, जिससे तुर्किये में संसदीय प्रणाली की जगह राष्ट्रपति का पद कार्यकारी हो गया। अर्दोआन की पार्टी जस्टिस ऐंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) ने राजनीतिक संस्थानों को खोखला कर दिया, मीडिया को वश में कर लिया और सत्ता पर मजबूत पकड़ के लिए सैन्य कमान को फिर से आकार दिया है।
कलचदारलू के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन का उद्देश्य राष्ट्रपति को कार्यकारी के पद से हटाना और एक मजबूत संसदीय प्रणाली को बढ़ावा देना था। उन्होंने दक्षिणपंथी मतदाताओं से सीरियाई शरणार्थियों को वापस उनके वतन भेजने की वकालत करने की भी अपील की। हालांकि, चुनाव से पहले जनमत सर्वेक्षणों में अग्रणी होने के बावजूद कलचदारलू अंततः हार गए।
समर्थकों द्वारा अर्दोआन एवं एकेपी की जीत का जश्न मनाया गया, लेकिन उन्हें तुर्किये और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचकों की आपत्तियों का सामना भी करना पड़ा। आर्थिक नीतियों, भूकंप के बाद सुस्ती से राहत कार्यक्रम और लोकतांत्रिक संस्थानों के क्षरण की वजह से अर्दोआन की आलोचना हुई है। कई लोगों को उम्मीद थी कि कलचदारलू की जीत एक ज्यादा लोकतांत्रिक और समृद्ध तुर्किये का निर्माण करेगी, जो पश्चिमी मूल्यों के साथ संबंध स्थापित करेगा और यूरोपीय संघ की सदस्यता हासिल करने की कोशिश करेगा। हालांकि, अर्दोआन की जीत बताती है कि तुर्किये के अपने मौजूदा रास्ते पर चलते रहने की संभावना है, जिसके तहत यह विदेशी मामलों में बेहद टकराव वाला रुख अपनाता है और रूस जैसे देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाता है।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अर्दोआन के व्यक्तिगत संबंध यूक्रेन पर क्रेमलिन के युद्ध के चलते भी बचे रहे। रूसी ऊर्जा आयात पर भुगतान के स्थगन से तुर्किये की बदहाल अर्थव्यवस्था को लाभ मिल रहा है, जिसकी वजह से इस साल अर्दोआन को अपने प्रचार अभियान पर दिल खोलकर खर्च करने में मदद मिली।
तुर्किये यूरोप और एशिया के चौराहे पर स्थित है और नाटो में इसकी भूमिका के कारण इसके चुनावी नतीजों का महत्व सीमाओं से परे है। अर्दोआन की सरकार ने ऐसे फैसले लिए हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित किया है, जैसे नाटो में शामिल होने के लिए स्वीडन के खिलाफ वीटो करना और रूसी मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदना, जिसके कारण अमेरिकी अगुआई वाली फाइटर जेट परियोजना से इसे हटा दिया गया। हालांकि तुर्किये ने वैश्विक खाद्य संकट के दौरान यूक्रेनी अनाज लदान की सुविधा जैसे समझौतों में बिचौलिए की भूमिका भी निभाई है।
जैसे ही अर्दोआन तुर्किये के राष्ट्रपति के रूप में अपना नया कार्यकाल शुरू करेंगे, उन्हें कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। मुल्क की बदहाल अर्थव्यवस्था और जीवन यापन का संकट अर्दोआन के लिए तत्काल एक बड़ी चुनौती है। बढ़ती मुद्रास्फीति और घटती क्रयशक्ति ने तुर्किये के लोगों को प्रभावित किया है। इस संकट से निपटना और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना उनकी उच्च प्राथमिकता होगी। अर्दोआन को अनियंत्रित मुद्रास्फीति का प्रबंधन करने की जरूरत है। ब्याज दरों की कटौती से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की उनकी रूढ़िवादी नीति को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा है। आर्थिक स्थिरता बरकरार रखते हुए मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करना उनके प्रशासन के लिए जरूरी होगा। तुर्किये के नाटो सहयोगी, विशेष रूप से अमेरिका स्वीडन के नाटो में शामिल होने के खिलाफ वीटो हटाने के लिए उत्सुक हैं। तुर्किये के उन लोगों के प्रत्यर्पण की मांग, जिन पर कुर्द उग्रवादियों से संबंध होने का संदेह है, ने स्थिति को जटिल बना दिया है। अर्दोआन को इन तनावों को दूर करने और एक समाधान खोजने की आवश्यकता होगी।
तुर्किये को सीरिया की सीमा पर बाड़ लगाने की भी जरूरत है। सीरियाई गृह युद्ध के दौरान विपक्षी ताकतों को अर्दोआन के समर्थन के कारण पड़ोसी देश सीरिया के साथ संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। तुर्किये ने उत्तरी सीरिया में सैन्य अभियान चलाया और वहां अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखी है। रूसी-मध्यस्थ वार्ता सहित संबंधों को सुधारने के प्रयास राजनयिक संबंधों को अब तक सामान्य बनाने में विफल रहे हैं।
अर्दोआन के नेतृत्व में तुर्किये ने कुछ खास मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ गठबंधन किया है, जिसमें कश्मीर पर रुख भी शामिल है। यह ईरान और मलयेशिया के साथ उस समूह का भी हिस्सा है, जो इस्लामी दुनिया में नेतृत्व का दावा करना चाहता है, जो अक्सर भारत के खिलाफ रहता है। भूकंप के बाद सहयता के बावजूद यह देखा जाना बाकी है कि भारत के प्रति उसके रवैये में बदलाव आता है या नहीं।
मुस्तफा कमाल अतातुर्क की धर्मनिरपेक्षता आज भले ही तुर्किये में चलन में नहीं हो, लेकिन उनका राष्ट्रवाद आज भी प्रतिध्वनित हो रहा है। अर्दोआन को रूढ़िवादी मतदाताओं का समर्थन हासिल है, जो धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर स्थापित मुल्क में इस्लाम को बढ़ाने और वैश्विक राजनीति में तुर्किये के प्रभाव को बढ़ाने के उनके प्रयासों की प्रशंसा करते हैं।
जैसा कि तुर्किये अपना 100वां जन्मदिन मना रहा है, यह खुद को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पाता है, अर्दोआन के निरंतर नेतृत्व ने इसकी घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय नीतियों को आकार दिया है। पश्चिमी देशों एवं मास्को के साथ चुनावी नतीजों के दूरगामी परिणाम होंगे और व्यापक पश्चिमी एशियाई क्षेत्र उसकी भावी दिशा को करीब से देख रहे हैं।
- लेखक एमपी-आईडीएसए में एसोसिएट फैलो हैं।