आवासीय परियोजनाओं को 25,000 करोड़, बैंकों को 70,000 करोड़ का पैकेज तथा कॉरपोरेट टैक्स में कटौती जैसे ठोस सरकारी उपायों के बावजूद मंदी बेकाबू है। इसकी पुष्टि दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में विकास दर के पांच फीसदी से भी नीचे गिरने के भारतीय स्टेट बैंक के अनुमान, मूडीज द्वारा वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 5.8 फीसदी करने, सितंबर महीने में आईआईपी (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) के 4.3 फीसदी घटने तथा ग्रामीणों के खर्च में गिरावट आदि से हो रही है।
मूडीज ने हाल में भारत का क्रेडिट आउटलुक नकारात्मक किया है, तो नोमुरा ने विकास दर के 4.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। जबकि सीएमआईई ने विगत अक्तूबर में बेरोजगारी दर 8.5 फीसदी आंकी। राजस्व वसूली में गिरावट के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों को केंद्र सरकार की करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की रियायत भी अर्थव्यवस्था को गति देने में नाकाम है। राजकोषीय घाटा बढ़कर 3.7 फीसदी होने की मूडीज की आशंका को औद्योगिक उत्पादन में पिछले दो महीने की लगातार गिरावट पुष्ट कर रही है।
पहली तिमाही में विकास दर पांच फीसदी रही है, जो छह साल में सबसे कम है। बाजार में नकदी, विश्वास तथा मांग, तीनों का घोर संकट है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार द्वारा यह हकीकत सरकार को बताने के बाद से ही वित्त मंत्री रियायतें लुटा रही हैं, जबकि जरूरत सरकारी खर्च बढ़ाने की है, जिससे कि गांववालों के हाथ में पैसा पहुंचे। हालांकि मंदी का ठीकरा घूम-फिरकर नोटबंदी तथा अव्यवस्थित जीएसटी की असंगठित क्षेत्र पर जबर्दस्त चोट पर ही फूट रहा है, जिनसे लाखों नौकरियां छूटीं, असंगठित कारोबार ठप हुआ और निवेशकों ने हाथ खींच लिए।
सो नया पूंजी निवेश ठप है और वैश्विक व्यापार युद्ध ने निर्यात पर आरी चला दी है। लोगों की जेब खाली है, इसलिए मांग ठिठकी हुई है। इसका असर सितंबर में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 4.3 फीसदी की गिरावट के रूप में सामने है। जबकि सितंबर, 2018 में आईआईपी 4.6 फीसदी बढ़ा था। इस बार विनिर्माण घटा है और बिजली, पेट्रोल और डीजल सहित ऊर्जा की मांग घटी है। विनिर्माण उत्पादन 3.9 फीसदी गिरा, जबकि सितंबर 2018 में यह 4.8 फीसदी बढ़ा था। बिजली उत्पादन 2.6 फीसदी गिरा, जबकि सितंबर, 2018 में यह 8.2 फीसदी बढ़ा था। खनन भी 8.5 फीसदी घटा, जबकि सितंबर, 2018 में इसमें 0.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। अगस्त में भी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 1.1 फीसदी गिरा था। पर सितंबर में आई गिरावट फरवरी, 2013 के बाद अधिकतम गिरावट है। अक्तूबर में बिजली की मांग महाराष्ट्र, गुजरात जैसे औद्यौगिक राज्यों सहित देश भर में 13.2 प्रतिशत घट गई। पिछले 12 साल में बिजली की मांग इतनी नहीं घटी। दिवाली के त्योहारी महीने में भी बिजली की मांग गिरी।
इसीलिए वृद्धि दर के अनुमान को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां लगातार घटा रही हैं। रिजर्व बैंक भी अपना अनुमान 6.9 फीसदी से घटाकर 6.1 फीसदी कर चुका। हालांकि उसके अनुसार दूसरी छमाही में कारोबार तेज होगा, पर दिवाली में भी कारोबारी मांग के घटकर 60 फीसदी रह जाने से मंदी के लंबा खिंचने की आशंका प्रबल हुई है।
केंद्रीय वित्त मंत्री हालांकि मौजूदा छमाही में मांग और निवेश बढ़ने का दावा कर रही हैं, पर बेरोजगारी की मार और मनरेगा आदि में सरकारी कामों पर खर्च बढ़ाने से बचने की प्रवृत्ति बरकरार रही, तो मांग कैसे बढ़ेगी?
आवासीय परियोजनाओं को 25,000 करोड़, बैंकों को 70,000 करोड़ का पैकेज तथा कॉरपोरेट टैक्स में कटौती जैसे ठोस सरकारी उपायों के बावजूद मंदी बेकाबू है। इसकी पुष्टि दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में विकास दर के पांच फीसदी से भी नीचे गिरने के भारतीय स्टेट बैंक के अनुमान, मूडीज द्वारा वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 5.8 फीसदी करने, सितंबर महीने में आईआईपी (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) के 4.3 फीसदी घटने तथा ग्रामीणों के खर्च में गिरावट आदि से हो रही है।
मूडीज ने हाल में भारत का क्रेडिट आउटलुक नकारात्मक किया है, तो नोमुरा ने विकास दर के 4.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। जबकि सीएमआईई ने विगत अक्तूबर में बेरोजगारी दर 8.5 फीसदी आंकी। राजस्व वसूली में गिरावट के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों को केंद्र सरकार की करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की रियायत भी अर्थव्यवस्था को गति देने में नाकाम है। राजकोषीय घाटा बढ़कर 3.7 फीसदी होने की मूडीज की आशंका को औद्योगिक उत्पादन में पिछले दो महीने की लगातार गिरावट पुष्ट कर रही है।
पहली तिमाही में विकास दर पांच फीसदी रही है, जो छह साल में सबसे कम है। बाजार में नकदी, विश्वास तथा मांग, तीनों का घोर संकट है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार द्वारा यह हकीकत सरकार को बताने के बाद से ही वित्त मंत्री रियायतें लुटा रही हैं, जबकि जरूरत सरकारी खर्च बढ़ाने की है, जिससे कि गांववालों के हाथ में पैसा पहुंचे। हालांकि मंदी का ठीकरा घूम-फिरकर नोटबंदी तथा अव्यवस्थित जीएसटी की असंगठित क्षेत्र पर जबर्दस्त चोट पर ही फूट रहा है, जिनसे लाखों नौकरियां छूटीं, असंगठित कारोबार ठप हुआ और निवेशकों ने हाथ खींच लिए।
सो नया पूंजी निवेश ठप है और वैश्विक व्यापार युद्ध ने निर्यात पर आरी चला दी है। लोगों की जेब खाली है, इसलिए मांग ठिठकी हुई है। इसका असर सितंबर में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 4.3 फीसदी की गिरावट के रूप में सामने है। जबकि सितंबर, 2018 में आईआईपी 4.6 फीसदी बढ़ा था। इस बार विनिर्माण घटा है और बिजली, पेट्रोल और डीजल सहित ऊर्जा की मांग घटी है। विनिर्माण उत्पादन 3.9 फीसदी गिरा, जबकि सितंबर 2018 में यह 4.8 फीसदी बढ़ा था। बिजली उत्पादन 2.6 फीसदी गिरा, जबकि सितंबर, 2018 में यह 8.2 फीसदी बढ़ा था। खनन भी 8.5 फीसदी घटा, जबकि सितंबर, 2018 में इसमें 0.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। अगस्त में भी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 1.1 फीसदी गिरा था। पर सितंबर में आई गिरावट फरवरी, 2013 के बाद अधिकतम गिरावट है। अक्तूबर में बिजली की मांग महाराष्ट्र, गुजरात जैसे औद्यौगिक राज्यों सहित देश भर में 13.2 प्रतिशत घट गई। पिछले 12 साल में बिजली की मांग इतनी नहीं घटी। दिवाली के त्योहारी महीने में भी बिजली की मांग गिरी।
इसीलिए वृद्धि दर के अनुमान को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां लगातार घटा रही हैं। रिजर्व बैंक भी अपना अनुमान 6.9 फीसदी से घटाकर 6.1 फीसदी कर चुका। हालांकि उसके अनुसार दूसरी छमाही में कारोबार तेज होगा, पर दिवाली में भी कारोबारी मांग के घटकर 60 फीसदी रह जाने से मंदी के लंबा खिंचने की आशंका प्रबल हुई है।
केंद्रीय वित्त मंत्री हालांकि मौजूदा छमाही में मांग और निवेश बढ़ने का दावा कर रही हैं, पर बेरोजगारी की मार और मनरेगा आदि में सरकारी कामों पर खर्च बढ़ाने से बचने की प्रवृत्ति बरकरार रही, तो मांग कैसे बढ़ेगी?