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भारत की संसद एक ऐसी संस्था है, जो प्रतिनिधि लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करती है और समय के साथ विकसित हुई है। यह आदर्शवाद, राजनीति और नौकरशाही का मिश्रण है, जो लोगों का प्रतिनिधित्व करती है और मुखर होकर उनकी चिंताओं को संबोधित कर उनके लिए काम करती है। हम सब जानते हैं कि तकनीक खासकर इंटरनेट हर चीज को बदल रहा है। यह हर औसत आदमी को सूचना और डाटा से जोड़ रहा है। इस कारण दबाव में आकर हर संस्थान बदल रहा है और नई चीजें अपना रहा है-इसमें संसद एवं संसदीय प्रतिनिधि भी शामिल हैं।
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भारत दुनिया का सबसे बड़ा और विविधता से भरा लोकतंत्र है, जिसमें तकनीक महत्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ रही है। इसलिए यह कहना बहुत जरूरी है कि हम तकनीक का इस्तेमाल विधायिका को इस प्रकार बदलने में करना चाहते हैं कि वह और अधिक प्रभावी, उत्तरदायी, पारदर्शी और जिम्मेदार बने। हमारी मौजूदा सरकार शासन एवं राजनीति में बहुत ज्यादा परिवर्तन और प्रशासन और लोकतंत्र में गहराई तकनीक के माध्यम से ला रही है। वह किसी कमतर टेक्नोलॉजी सोल्यूशन्स के जरिये नहीं, अपितु तकनीक एवं नवाचार के जरिये विविधता से भरे लोकतंत्र को मजबूती से भविष्य के लिए एक आकार देना चाहती है। हमारा लोकतंत्र उस व्यक्ति के प्रभाव और उसके आसपास घूमता रहता है, जो लोगों का प्रतिनिधि है-सांसद है। पर हमें अपना ध्यान निम्नलिखित परिणामों पर केंद्रित करने में लगाना चाहिए, कि नागरिकों को प्रतिक्रिया देते समय, विधायिका के कार्यों के दौरान एवं किसी काम को करने के तरीके से हमारे सांसदों की क्षमता, दक्षता और योग्यता का विकास हो, कि नागरिकों की सहभागिता ज्यादा हो और एक संस्थान के रूप में संसद पर हमारा भरोसा, पारदर्शिता एवं जवाबदेही हमेशा बढ़े। यह जानकारी विचार और जानकारी प्रसारित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले ट्विटर, फेसबुक एवं अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करने से कहीं अधिक बढ़ती है। यह विकास का एक वृहत परिपेक्ष्य बनाता है, जो संसद एवं नागरिकों के बीच के संवाद को और पास लाता है।
इसलिए सबसे पहले हम अपने प्रतिनिधियों और नागरिकों को सक्षम बनाएं-हम अपने प्रतिनिधियों को तकनीक और नई खोजों का एजेंट बनाएं, जिससे वे पारंपरिक रूप से अपनी छवि बनाने के बजाय नई खोजों एवं तकनीक का एजेंट बनें। हर जनप्रतिनिधि को तकनीकी टूल एवं ट्रेनिंग प्रदान कर इस बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। हमारे संसदीय सचिवालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि आईपैड्स और लैपटॉप हर चुने गए सदस्यों को दिया जाए और उनका इस्तेमाल करने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम्स दिए जाएं और उन्हें मौजूदा डाटाबेस/प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराए जाएं। नई डिजिटल विधायिका प्रणाली सभी प्रतिनिधियों को अच्छे से कार्यकारी काम में मदद करे-उनकी सभी प्रकार की फाइलिंग अब ऑनलाइन हो, जिसमें दोनों सदनों के लिए पूर्ण रूप से इंटरेक्टिव वेबसाइट, मेंबर पोर्टल, ई-नोटिस आदि हों।
डिजिटल तरीके से संसद पूरी तरह से तभी प्रभावी हो पाएगी, जब नागरिक भी ऑनलाइन हों। पिछले करीब चार साल में करोड़ों नागरिक इंटरनेट से जुड़े हैं, और 2022 में, भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस के समय इंटरनेट से जुड़े लोगों की संख्या और अधिक हो जाएगी, फलत: वे अपने प्रतिनिधियों, सरकार एवं विधायिका से जुड़कर सूचनाएं, सेवाएं और जवाबदेही मांग सकेंगे।
इसलिए इस बीच आगे बढ़ते हुए संसद में एक सांसद के काम के संबंध में रिपोर्ट करना हमारी रणनीति का हिस्सा है। हर सांसद का अपना एक पोर्टल हो, जिसमें वह अपने सारे काम का अपडेट रखे, ताकि हर नागरिक उसे देख सके और जरूरत पड़ने पर उसकी आलोचना भी कर सके। इससे वाद-विवाद एवं हस्तक्षेप की गुणवत्ता पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा तथा सांसदों एवं मतदाताओं के बीच बातचीत बढ़ेगी।
हमने संसदीय पोर्टल एवं सर्च इंजन बनाए हैं, जिसमें संसद एवं सांसदों के वर्तमान कामों को आर्काइव कर डिजिटाइज्ड किया गया है और उन्हें आसानी से उपलब्ध कराया गया है। भविष्य में संसदीय पोर्टल एवं प्लेटफॉर्म के जरिये कानूनों को सीधे ई-परामर्श में शामिल किया जाएगा, जिससे प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी के मुद्दों को संबोधित किया जाए। ऐसे पोर्टल एवं प्लेटफॉर्म के जरिये युवाओं को राजनीति से जोड़ने की योजना है, ताकि वे संसद को एक संस्थान के रूप में जानें और इससे खुद को जोड़ सकें।
हम अपने सांसदों को सरकार के मंत्रियों के साथ अद्यतन शोध, डाटा और तथ्यों को लेकर बहस करते देखते हैं। ऐसे देश में, जहां विधायिका का काम गरीबी, सुरक्षा और अन्य सामाजिक सेवाओं-मुद्दों पर अपने लक्ष्यों को हासिल करना है, वहीं इन डाटा और तथ्यों के आधार पर किसी भी सांसद के प्रदर्शन की समीक्षा करना महत्वपूर्ण है। बजट एवं अन्य वित्तीय डाटा पहले से ही ऑनलाइन डाटाबेस में मौजूद हैं। हमारी संसद भी सामाजिक सुरक्षा एवं डाटा प्रदर्शन ऑनलाइन स्थानांतरित करने का काम कर रही है।
हम इस परिवर्तन एवं प्रक्रिया को सक्षम तरीके से न सिर्फ संसद में लागू करेंगे, बल्कि भविष्य में विधानसभाओं एवं स्थानीय निकायों को भी इसके दायरे में लाएंगे।
केंद्र की मौजूदा सरकार एवं संसद यह मानती है कि तकनीक के जरिये नागरिकों को सशक्त बनाया जाए और संसद एवं लोकतंत्र को आने वाले समय में बदला जा सके। यह कोई विकल्प नहीं है, बल्कि प्रासंगिक रहने के लिए एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। संसदीय बिरादरी के सदस्यों के रूप में हमें इस बदलाव के लिए हमारे सभी संसदीय संस्थानों को इस परिवर्तन हेतु एक-दूसरे का सकारात्मक रूप से समर्थन करना चाहिए और उन्हें डिजिटल रूप से सक्षम बनाना चाहिए।