Hindi News
›
Columns
›
Blog
›
gandhi jayanti special, Symbolic form of Mahatma Gandhi in cinema
{"_id":"6332f45603e4db6c1b13df2a","slug":"gandhi-jayanti-special-symbolic-form-of-mahatma-gandhi-in-cinema","type":"feature-story","status":"publish","title_hn":"गांधी और विश्व सिनेमा (भाग- 2): सिनेमा में महात्मा गांधी का प्रतीकात्मक रूप","category":{"title":"Blog","title_hn":"अभिमत","slug":"blog"}}
गांधी और विश्व सिनेमा (भाग- 2): सिनेमा में महात्मा गांधी का प्रतीकात्मक रूप
ऐसी दर्जनों फिल्में है, जिसमें गांधी किसी-ना-किसी रूप में उपस्थित हैं, चाहे वो सत्याग्रह हो, अहिंसा हो या फिर गरीबों पर विशेष ध्यान देने की गांधीवादी परिकल्पना हो। वहीं महात्मा गांधी ने स्वयं जीवन में एकमात्र फ़िल्म विजय भट्ट निर्देशित ‘रामराज्य’ देखी थी। रामराज्य उनका एक सपना भी था।
महात्मा गांधी पर बनी फिल्में
- फोटो : Amarujala Creatives
जब गांधी जी को सीधे-सीधे केंद्र में रख कर बनी फ़िल्मों की बात आती है तो यह क्षेत्र उतना उर्वरक नजर नहीं आता है जितना होना चाहिए था या जितना इसके होने की संभावना है। गांधी भारतीय जनमानस के बीच आज भी जीवित हैं। ऐसी फिल्में बनी हैं जिनमें गांधी नहीं गांधी के विचार उपस्थित हैं। 1936 में बनी फ़िल्म ‘अछूत कन्या’ पर गांधी का प्रभाव देखा जा सकता है, वैसे फ़िल्म का कथानक 1900 के भारत को दिखाता है।
गांधी जी के साथ ब्रह्मचर्य, सत्याग्रह, हस्त उद्योग स्वत: चले आते हैं। 1950 में बनी फ़िल्म ‘जोगन’ की नायिका अपनी मर्जी के खिलाफ शादी का विरोध करने के लिए ब्रह्मचर्य की राह अपनाती है। 1952 की ‘आंधियाँ’ में फिल्म का नायक महाजन है और सूद पर पैसे चढ़ाता है, अपने पैसे के बल पर जब वह गांव की एक गरीब लड़की से शादी करना चाहता है तो पूरा गांव सत्याग्रह करने का फैसला लेता है।
फ़िल्म ‘नया दौर’ (1957) में समाजवाद को लेकर गांधी और नेहरू के बीच के द्वंद्व को बेहतरीन ढंग से चित्रित किया गया है। फिल्म में गांधी की उक्ति, ‘वो मजदूरों को विस्थापित कर देगी और कुछ लोगों के हाथों में पूरी ताकत सिमट जाएगी’ का बखूबी इस्तेमाल किया गया है।
स्वतंत्रता के बाद सिने-जगत में गांधी जी
महात्मा गांधी बीसवीं सदी के पांच दशक तक जीवित थे। 1948 में उनकी हत्या हुई। तीन दशक वे खूब सक्रिय थे, देश के राजनैतिक, सामाजिक आंदोलनों का संचालन कर रहे थे। स्वतंत्रता के बाद से भारतीय सिने-जगत में सिनेमा के इस कट्टर विरोधी महामानव की उपस्थिति किसी-न-किसी रूप में बनी रही है। स्वतंत्रतापूर्व भी वे सिनेमा में उपस्थित थे, जिसे हम थोड़ी देर बाद देखेंगे।
हालांकि 1957 में ही बनी महबूब खान की फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ में गांधी की उपस्थिति परोक्ष रूप से है, पर वे और उनका विचार इसमें बहुत ही मजबूती से उभर कर आते हैं। एक पूरा परिवार एक ताकतवर सूदखोऱ सुखीलाला (कन्हैयालाल) के खिलाफ जिस तरह से विरोध करता है, खासकर उसमें भी मां राधा (नरगिस) और उसका एक बेटा रामू (राजेंद्र कुमार) अहिंसक तरीके का जैसे सहारा लेते हैं वो परोक्ष रूप से गांधी की याद दिलाते हैं।
प्रसिद्ध फ़िल्मकार व्ही शांताराम की फ़िल्में गांधी के विचारों से अनुप्रेरित हैं, खासकर 1957 में बनी उनकी फ़िल्म ‘दो आँखें बारह हाथ’। हिंदू मुस्लिम एकता के गांधी के विचार कई फिल्मों में दिखते हैं, फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ (1977) में प्रेरणा और प्रतीकात्मकता के रूप में तीनों बच्चे गांधी की प्रतिमा के नीचे दीखते हैं। फ़िल्म भाईचारे का संदेश देती है।
विज्ञापन
ऐसी दर्जनों फिल्में है, जिसमें गांधी किसी-ना-किसी रूप में उपस्थित हैं, चाहे वो सत्याग्रह हो, अहिंसा हो या फिर गरीबों पर विशेष ध्यान देने की गांधीवादी परिकल्पना हो। अनुराग कश्यप की ‘ब्लैक फ्रायडे' (2004) जैसी फिल्म के शुरुआती फ्रेम में गांधी की उक्ति उभरती है... ‘आंख के बदले आंख लेने की नीति पर चलें तो पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी।’
महात्मा गांधी ने जीवन में एकमात्र फ़िल्म विजय भट्ट निर्देशित ‘रामराज्य’ देखी थी। रामराज्य उनका एक सपना था।
फिल्मों में बापू का किरदार
- फोटो : istock
कई भाषाओं में गांधी पर फिल्में
महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद उन पर कोई फ़ीचर फ़िल्म नहीं बनी। कुछ दशकों के बाद उन पर फ़ीचर फ़िल्मों की लाइन लग गई। इंग्लिश-हिन्दी के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं में भी गांधी पर फ़िल्में बनी हैं। 2008 में एनआरएन गौडा ने ‘नानु गाँधी’ कन्नड भाषा में बनाई। इसमें बच्चों का एक समूह अपने आसपास के लोगों को गांधी के सिद्धांतों एवं विचारों की प्रेरणा देता है।
2009 में अमित राय ने हिन्दी में ‘रोड टू संगम’, 2016 में सरोज मिश्र ने भी हिन्दी में ‘गांधीगीरी’, 2018 में नईम सिद्दिकी ने ‘हमने गांधी को मार दिया’ बनाई। 2019 में गुजराती में एक बिल्कुल अलग ढ़ंग की फ़िल्म गांधी पर आई। इस अनोखी फ़िल्म का नाम है, ‘रीबूटिंग महात्मा’, जैसा इसके नाम से पता चलता है यह फ़िल्म महात्मा गांधी के ‘मानव मशीन’ या यूं कहें रोबोट संस्करण की बात करती है। इसमें गांधी को 21वीं सदी में लाकर उनसे आज की बातें करवाई गई हैं।
यहां गांधीजी आज की दुनिया के विषयों जैसे राजनीतिक पद्धति, सोशल मीडिया, युवा, यहां तक कि फ़िल्म यानी बॉलीवुड पर विचार-विमर्श करते नजर आते हैं। वे इन सबका आज की दुनिया पर पड़ रहे प्रभाव की बात करते हैं।
फिल्मों में गांधी जी का किरदार निभाने वाले कलाकार
इसी सिलसिले में एक मजेदार बात बताऊँ, केरल का एक आदमी एक बार अपनी कम्पनी के एक समारोह में फैंसीड्रेस के लिए गाँधीजी का रूप धरता है और लोग इतनी प्रशंसा करते हैं कि वह अपने लंबे-घुंघराले बालों को सदा के लिए तिलांजलि दे देता है और शाकाहारी बन जाता है। फ़िल्म में काम करता है, नाटकों में हिस्सा लेता है और-तो-और केरल में खड़ी गांधीजी की कई मूर्तियों के लिए मॉडल बनता है। उसके एक दोस्त के पिता जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था, ने उसे पॉकेट घड़ी दी।
स्थानीय मोची ने चमड़े की चप्पलें बना दीं। चश्मे वाले ने गांधीजी के गोल रिंग वाला चश्मा बना दिया। पिछले तीस साल से यह व्यक्ति गांधी जी न केवल भूमिका कर रहा वरन उनकी तरह जीवन व्यतीत करने की चेष्टा भी कर रहा है। एरणाकुलम के इस आदमी का नाम है जॉर्ज पॉल। खादी का शॉल कंधे पर डाले धोती से गोल्डचेन वाली पॉकेट घड़ी लटकाए हाथ में लाठी लिए इस व्यक्ति को देख कोई भी धोखा का जाए। स्कूल-कॉलेज, मंच, फ़िल्म में तकरीबन 4,000 से अधिक बार गांधी की भूमिका करने वाले जॉर्ज पॉल ने अपने घर का नाम ‘साबरमति’ रखा है।
फ़िल्मों में गांधीजी के नजर आने की बात ऐसी है कि स्वतंत्रता आंदोलन पर बनी फ़िल्म हो, नेहरू, आंबेडकर पर कोई भी फ़िल्म हो उसमें गाँधीजी की उपस्थिति होगी ही, जैसे गुरिन्दर चड्ढ़ा की फ़िल्म ‘हाउस ऑफ़ वॉयसराय’ (यह ‘पार्टिशन’ नाम से भी उपलब्ध है) में गांधी हैं।
‘9 आवर्स’ फ़िल्म बात गोडसे की करती है पर फ़िल्म में गांधी हैं। कमल हासन ने ‘हे राम’ बनाई उसमें नसीरुद्दीन शाह गांधी की भूमिका में हैं। केतन मेहता ने 1993 में गांधी तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल के रिश्तों पर फ़िल्म ‘सरदार’ बनाई। इसमें पटेल की भूमिका में परेश रावल हैं और अन्नु कपूर ने गांधीजी की भूमिका की है।
ये तो कुछ उन फ़िल्मों की बात हुई जहाँ गांधीजी परदे पर हैं पर पूरी फ़िल्म उन पर केंद्रित नहीं है। आगे हम उन फ़िल्मों की बात करेंगे जहां गांधीजी मुख्य किरदार हैं। और उससे भी पहले हम गांधीजी को डॉक्यूमेंट्री में भी देखने वाले हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदाई नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें
Disclaimer
हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर और व्यक्तिगत अनुभव प्रदान कर सकें और लक्षित विज्ञापन पेश कर सकें। अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।