अमेरिका विदेश मंत्री माइकल पोम्पियो अगले हफ्ते अपनी दक्षिण एशिया यात्रा में भारत के साथ-साथ श्रीलंका और मालदीव भी जाएंगे। पोम्पियो और अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क टी. एस्पर 2+2 वार्ता के लिए भारत आ रहे हैं। उस दौरान भारत-अमेरिका पार्टनरशिप से जुड़े एक अहम समझौते पर दस्तखत होंगे।
जानकारों का कहना है कि उसके साथ अमेरिका से संबंधों के मामले में भारत की स्थिति लगभग वैसी हो जाएगी, जैसी उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) देशों की है। इस तरह दक्षिण एशिया में अमेरिका की पैठ और मजबूत हो जाएगी। मगर पोम्पियो की यात्रा का एक और मकसद उन देशों में भी अमेरिका की पकड़ मजबूत करना है, जहां उसके प्रभाव को हाल में चीन से कड़ी चुनौती मिली है।
ऐसे देशों में श्रीलंका और मालदीव शामिल रहे हैं। पोम्पियो 25 अक्टूबर को कोलंबो पहुंचेंगे। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि उनकी श्रीलंका यात्रा से ‘मुक्त एवं खुले इंडो-पैसेफिक क्षेत्र’ के अमेरिकी लक्ष्य को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। मालदीव के बारे में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि पोम्पियो की माले यात्रा के दौरान दोनों देश अपने नजदीकी दोतरफा संबंधों की पुष्टि करेंगे और समुद्री सुरक्षा एवं आतंकवाद से लड़ाई जैसे मुद्दों पर अपनी भागीदारी को आगे बढ़ाएंगे।
गौरतलब है कि श्रीलंका और मालदीव दोनों ऐसे देश हैं, जहां पिछले एक दशक में चीन ने अपनी गहरी पैठ बनाई। मालदीव में पिछले चुनाव के बाद बनी नई सरकार ने चीनी प्रभाव को सीमित करने की कोशिश की है, लेकिन श्रीलंका में राजपक्षे परिवार के सत्ता में लौटने के साथ चीन के लिए फिर से अनुकूल स्थितियां बनने के संकेत मिले हैं। पिछले दिनों चीन के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने कोलंबो का दौरा किया था। उसकी अगुआई चीन के वरिष्ठ नेता यांग जिशी ने की थी।
यांग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पॉलित ब्यूरो के सदस्य और कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के विदेश नीति आयोग के निदेशक हैं। चीन ने इतने ऊंचे स्तर का दल कोलंबो भेजा, तो उसका संदेश साफ था। इस प्रतिनिधिमंडल की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच हंबनतोता औद्योगिक ज़ोन और पोर्ट सिटी के निर्माण कार्य तेजी से पूरा करने पर सहमती बनी। हंबनतोता परियोजना चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा है, जिसे चीन इसे एक अरब 40 करोड़ डॉलर की लागत से बना रहा है। इसके अलावा हुए श्रीलंका- चीन मुक्त व्यापार समझौते के लिए फिर से वार्ता शुरू करने का फैसला हुआ।
श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति ऐसी है, जिससे वह चीन के- खासकर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना में- महत्वपूर्ण है। इस वक्त जबकि अमेरिका चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में लगा हुआ है, तब श्रीलंका को चीनी खेमे में जाने से रोकना उसकी प्राथमिकताओं में है। इसीलिए पोम्पियो की कोलंबो यात्रा पर कूटनीतिज्ञों की खास निगाहें लगी रहेंगी।
मालदीव बहुत छोटा देश है। मगर अपनी समुद्री भौगोलिक स्थिति के कारण वह भी चीन के लिए महत्वपूर्ण है। चीन ने वहां बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत लाखों डॉलर का निदेश किया है। अब्दुल्ला यामीन के राष्ट्रपति होने के दौरान चीन को मालदीव में गहरी पैठ बनाने का मौका मिला। तब मालदीव ने चीन से 3.1 अरब डॉलर का कर्ज लेकर चीनी योजना में निवेश किया। इससे मालदीव के कर्ज जाल में फंस जाने का अंदेशा पैदा हुआ। 2018 के चुनाव में यामीन हार गए। तब इब्राहिम मोहम्मद सोलीह राष्ट्रपति बने, जो पूर्व राष्ट्रपति और संसद के मौजूदा स्पीकर मोहम्मद नशीद के सहयोगी हैं। मोहम्मद नशीद के भारत से दोस्ताना रिश्ते रहे हैं। इस सरकार के दौर में चीन की मंशाओं पर लगाम लगी है।
मौजूदा सरकार चीन के कर्ज जाल से निकलने की कोशिश में है। जाहिर है, अमेरिका के लिए उससे संबंध मजबूत बनाने का यह अनुकूल मौका है। पोम्पियो की यात्रा को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। वरना, अमेरिकी विदेश मंत्री मालदीव की यात्रा करें, अगर अतीत के अनुभवों को याद किया जाए, तो यह असामान्य घटना ही लगती है।