ब्रिटेन में हर साल इस मौसम में सर्कस शहर-शहर जाकर करतब दिखाता है। वैसे इस चलन में एक फर्क आ गया है। अब शेर और बाघों के वे अनोखे करतब धीरे-धीरे ग़ायब हो रहे हैं जो इन सर्कसों की रौनक हुआ करते थे।
मगर यूरोप में आज भी सर्कस में जानवरों से जुड़े करतब, भले ही छोटे पैमाने पर हों, लोगों को दिखाए जाते हैं।
फ़्रांस में नार्मेंडी के दक्षिणी छोर पर एक जगह है 'पार्क नेचुरेल डु पेर्चे'। दूर-दूर तक फैले घने जंगल, घुमावदार नदियां- कुदरत के अनोखे नज़ारे वाला यह इलाका अपने लंबे-चौड़े खलिहानों के लिए भी जाना जाता है।
एक शेरयह इलाका कीनिया के उस सवाना से एकदम अलग है, जिसकी मैं अभ्यस्त हूँ। मगर फिलहाल मैं यहां हूं। पेर्चे के बीचों-बीच, मुझसे बस दस मीटर की दूरी पर एक शेर है। लगभग चार साल का होगा वो। घने सुनहरे बाल और जवानी की रंगत लिए मोटी फीकी गुलाबी नाक वाला शेर।

हरी घास पर लेटा सिर उठाए वह मुझे ही देख रहा था। मैंने पहले भी कई बार इस तरह से लेटे, अलसाई आंखों से मैदान को ताकते शेर को देखा है।
मैंने अफ्रीका में वाइल्ड लाइफ फिल्म बनाने वाली टीम के साथ काम करते हुए बरसों बिताए हैं। शेर की उन खूंखार आंखों से निगाहें मिलने पर पेट में उठता वह हौल भी याद है मुझे। एक कदम गलत पड़ा और मैं गई।
मगर यह शेर उन खूंखार शेरों से एकदम अलग था। मैं उसकी ओर बढ़ी मगर उसकी आंखें बमुश्किल ही हिलीं। उसके चेहरे पर ना किसी तरह की चाह, ना इरादा और ना ही किसी खुशी की लकीर दिखी।
आमतौर पर किसी शेर के लिए उसकी ओर बढ़ती चीजें आनंद देती हैं। वह उसके पीछे भागता है। चाहे अंत में उसे वह शिकार मिले या ना मिले।
इस शेर को तो मेरा डर तक नहीं था। अफ्रीका के लगभग सभी शेर अपने पास आने वाले इंसान के प्रति आमतौर पर चौकन्ने होते हैं।
ऊबा, थका, मायूसमगर यहां तो उल्टा था। वह बेहद थका, ऊबा हुआ और मायूस दिख रहा था। वह कुछ ऐसी हालत में था जिसमें इससे पहले मैंने किसी शेर को नहीं देखा।
मैं जब वहां के स्थानीय बाजार से गुजर रही थी तो देखा कि किसी सर्कस कंपनी का तंबू लगा हुआ था।
चहल-पहल से भरी सड़क के उस ओर था एक मैकडॉनल्ड और कार सर्विस सेंटर। पास में सुपरमार्केट के लिए आबंटित जगह पर बेतरतीब ढंग से सर्कस के पोस्टर लगे हुए थे।
उन्हीं पोस्टरों के बीच के एक पोस्टर पर बनी तस्वीर में मुझे पिंजड़े में बैठा शेर दिखाई दिया। उसकी देह-यष्टि जानी पहचानी थी।
फिर मुझे सड़क किनारे खड़े कई पोस्टर दिखाई दिए। फिर बस पड़ाव, कूड़ादान और स्ट्रीट लैंप दिखे।
पोस्टर पर एक लाइन लिखी थी। “आइए, चिड़िया घर की सैर करें”। लाइन के नीचे सफेद बाघ, जलते हुए रिंग से छलांग लगाते, या शानदार मुद्रा में खड़े शेर की तस्वीर बनी थी।
पोस्टर से पता चला कि सर्कस उस इलाके में अगले पांच दिनों तक दिखाया जाएगा। मैंने अपनी गाड़ी पार्क की, सड़क पार कर सर्कस की ओर चल पड़ी।
सर्कस में कैद
एक आदमी ट्रक से सामान खोल रहा था। मैंने उससे पूछा कि क्या मैं अंदर जा सकती हूं।
होठों के बीच दबाए हुए सिगरेट से धुंए का छल्ला उड़ाते हुए उसने मुझे देखा, फिर सिर हिलाया।
एक तरफ खुरदरी खाल वाले चार ऊंट खड़े थे। वहां न तो घास थी, ना ही कोई पेड़। जमीन पर बस सफेद लाइनें खिंची हुईं थीं। शायद इन्हें दुकानदारों ने हाट में अपनी दुकान लगाते हुए खींची होगी।
इसके बाद मैंने शेरों और बाघों को देखा। पिंजड़े में कैद इन के बीच सफेद रंग के बाघ भी थे।
दो मीटर चौड़ी और 12 मीटर लंबी गाड़ी छोटे-छोटे हिस्सों में बँटी है। इनमें कम से कम छह बड़े शेर मौजूद थे। कुछ तो सो रहे थे। बाकी बैठे थे या खड़े थे।
खाली निगाहेंवे खाली निगाहों से सामने से गुजरती लोगों की भीड़ को देख रहे थे।
ब्रिटेन की सरकार ने हाल ही में घोषणा की कि देश में सर्कस में जंगली जानवरों के इस्तेमाल पर 2015 से रोक लग जाएगी।
कितने ऐसे शेर-बाघ, हाथी या दूसरे जानवर होंगे जिन्हें दुनिया को सलाख़ों के पीछे से देखना पड़ता होगा और उन्हें अंदाज़ा भी नहीं होगा कि जंगल की आज़ादी का क्या मतलब होता है? इन सबसे अनजान ये जानवर शहर दर शहर अपना करतब दिखा रहे हैं।
वे हर रात भयावह, धधकते आग के छल्लों से गुजरते हैं, छलांग लगाते हैं। वे मदारी के चाबुक के इशारे पर नाचते हैं, करतब दिखाते हैं।
मगर चाहने वालों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उनकी उदासी-मायूसी खो गई है।