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अर्चना शुक्ला के चाचा ने आकर उसके माता-पिता को न समझाया होता तो अर्चना का बाल विवाह 15 साल की उम्र में ही गया होता। तब नवीं में पढ़ रही अर्चना को बाल विवाह के शारीरिक मानसिक नुकसानों की मोटी-मोटी जानकारी थी और वह अपनी पढ़ाई भी जारी रखना चाहती थी। लेकिन उसकी बातों को पिता ने मानने से इनकार कर दिया था। अर्चना के चाचा के समझाने पर ही उनका दिला पसीजा।
श्रावस्ती के इकौना ब्लॉक के बगनहा गांव की अर्चना नवीं में पढ़ते समय ही जानती थी कि बाल विवाह होने से लड़की का मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य तो बिगड़ता ही है, जो बच्चा होता है, उसके भी कुपोषित होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है। अपनी पढ़ाई जारी रखने की इच्छा के साथ ही उसने यह बातें भी माता-पिता से कही थीं। चार बेटियों के उसके पिता तहसीलदार शुक्ला के सिर पर अपना बोझ हल्का करने का भूत सवार था, इसलिए बेटी के तर्क बेमानी हो गये।
लेकिन जब उनके ही भाई ने उन तर्कों को दोहराया तो तहसीलदार बेटी का बाल विवाह न करने के लिए राजी हो गए। इतना ही नहीं, उन्होंने इस बात के लिए भी हामी भर ली कि बेटी पढ़-लिख कर जब अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी, तभी उसका विवाह करेंगे।
स्मार्ट बेटियां अभियान से जुड़ी इंटरनेट साथी ननकना यादव ने यह वीडियो कथा बनाई है।
अमर उजाला फाउंडेशन, यूनिसेफ, फ्रेंड, फिया फाउंडेशन और जे.एम.सी. के साझा अभियान स्मार्ट बेटियां के तहत श्रावस्ती और बलरामपुर जिले की 150 किशोरियों-लड़कियों को अपने मोबाइल फोन से बाल विवाह के खिलाफ काम करने वालों की ऐसी ही सच्ची और प्रेरक कहानियां बनाने का संक्षिप्त प्रशिक्षण दिया गया है। इन स्मार्ट बेटियों की भेजी कहानियों को ही हम यहां आपके सामने पेश कर रहे हैं।