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राहुल गांधी ने पार्टी की कमान ऐसे समय पर छोड़ी है जब कुछ ही महीनों के अंदर चार महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में नए कांग्रेस अध्यक्ष के सामने किसी चमत्कार की ही चुनौती होगी। महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए हैं।
कांग्रेस के नए अध्यक्ष की सबसे पहली चुनौती पार्टी को एक रखने की होगी। लोकसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद जिस तरह कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है उसे वापस लाना और संगठन को फिर से खड़ा करना कहीं बड़ा काम है। आमतौर पर जब भी गांधी परिवार के अलावा या उनकी मर्जी के खिलाफ कमान किसी अन्य नेता के हाथ में गई है पार्टी विभाजन की ओर से बढ़ी है।
1991 में नरसिंह राव अध्यक्ष जरूर बने लेकिन पार्टी उत्तर भारत में भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसी तरह 1996 में सीताराम केजरी के अध्यक्ष बनने पार्टी कमजोर हुई और गुटबाजी बढने पर सोनिया गांधी ने जिम्मेदारी संभाली। पार्टी में गुटबाजी और अलग-अलग धड़े बनने से भी कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दल खड़े हुए।
राहुल गांधी को मनाने गए कुछ नेताओं से उन्होंने कहा भी मैं पार्टी थोड़ा छोड़ रहा है और अध्यक्ष नहीं रहूंगा तो मेरी बात नहीं मानेंगे। साफ संकेत है अध्यक्ष पद छोडने के बाद भी गांधी का वर्चस्व, संरक्षण और मार्गदर्शन बना रहेगा। साफ है कि पार्टी को नया अध्यक्ष जो भी मिलेगा गांधी परिवार के प्रति उसका सम्मान कम नहीं होगा।
नए अध्यक्ष के सामने एक और कठिन चुनौती है कांग्रेस शासित राज्यों में सरकार बचाए रखने, वहां के मुख्यमंत्रियों पर नियंत्रण और तालमेल बनाने की। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह क्षत्रप की भूमिका में हैं और उनके फैसलों को पार्टी स्वीकार करती है।
मध्यप्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का पार्टी में अपना राजनीतिक कद है। ऐसे में नए अध्यक्ष के सामने इन नेताओं से उनके औरा के मुताबिक तालमेल बैठाना कठिन परीक्षा होगी।
कांग्रेस अध्यक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपने राज्यों में सत्ता बचाए रखने की होगी। इन राज्यों में भाजपा की आक्रामक राजनीति के खतरे से निपटना भी होगा। राजस्थान में सीएम और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच टसल का असर सरकार पर न पड़े ये भी चुनौती होगा।
कर्नाटक में गठबंधन की सरकार राहुल गांधी के चलते संभली हुई थी ऐसे में राज्य के नेताओं पर काबू और सहयोगी दल को साधना भी मुश्किलों भरा होगा।
राहुल गांधी ने पार्टी की कमान ऐसे समय पर छोड़ी है जब कुछ ही महीनों के अंदर चार महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में नए कांग्रेस अध्यक्ष के सामने किसी चमत्कार की ही चुनौती होगी। महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए हैं।
कांग्रेस के नए अध्यक्ष की सबसे पहली चुनौती पार्टी को एक रखने की होगी। लोकसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद जिस तरह कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा है उसे वापस लाना और संगठन को फिर से खड़ा करना कहीं बड़ा काम है। आमतौर पर जब भी गांधी परिवार के अलावा या उनकी मर्जी के खिलाफ कमान किसी अन्य नेता के हाथ में गई है पार्टी विभाजन की ओर से बढ़ी है।
1991 में नरसिंह राव अध्यक्ष जरूर बने लेकिन पार्टी उत्तर भारत में भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसी तरह 1996 में सीताराम केजरी के अध्यक्ष बनने पार्टी कमजोर हुई और गुटबाजी बढने पर सोनिया गांधी ने जिम्मेदारी संभाली। पार्टी में गुटबाजी और अलग-अलग धड़े बनने से भी कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दल खड़े हुए।
राहुल गांधी को मनाने गए कुछ नेताओं से उन्होंने कहा भी मैं पार्टी थोड़ा छोड़ रहा है और अध्यक्ष नहीं रहूंगा तो मेरी बात नहीं मानेंगे। साफ संकेत है अध्यक्ष पद छोडने के बाद भी गांधी का वर्चस्व, संरक्षण और मार्गदर्शन बना रहेगा। साफ है कि पार्टी को नया अध्यक्ष जो भी मिलेगा गांधी परिवार के प्रति उसका सम्मान कम नहीं होगा।
नए अध्यक्ष के सामने एक और कठिन चुनौती है कांग्रेस शासित राज्यों में सरकार बचाए रखने, वहां के मुख्यमंत्रियों पर नियंत्रण और तालमेल बनाने की। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह क्षत्रप की भूमिका में हैं और उनके फैसलों को पार्टी स्वीकार करती है।
मध्यप्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का पार्टी में अपना राजनीतिक कद है। ऐसे में नए अध्यक्ष के सामने इन नेताओं से उनके औरा के मुताबिक तालमेल बैठाना कठिन परीक्षा होगी।
कांग्रेस अध्यक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपने राज्यों में सत्ता बचाए रखने की होगी। इन राज्यों में भाजपा की आक्रामक राजनीति के खतरे से निपटना भी होगा। राजस्थान में सीएम और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच टसल का असर सरकार पर न पड़े ये भी चुनौती होगा।
कर्नाटक में गठबंधन की सरकार राहुल गांधी के चलते संभली हुई थी ऐसे में राज्य के नेताओं पर काबू और सहयोगी दल को साधना भी मुश्किलों भरा होगा।