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मोटी कमाई करने वाले स्कूलों से सरकार सर्विस टैक्स वसूलने के रास्ते तलाश रही है। समाज सेवा के नाम पर टैक्स छूट का लाभ उठाने वाले और फ्रेंचाइजी समेत कई तरीकों से कमाई करने वाले स्कूलों पर वित्त मंत्रालय की नजर है। पिछले साल सरकार ने शिक्षण संस्थानों को सर्विस टैक्स के दायरे से मुक्त रखने का फैसला किया था। लेकिन आगामी बजट में सरकार स्कूलों की कुछ सेवाओं पर कर लगाने की तैयारी कर रही है।
वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाले केंद्रीय उत्पाद व सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने स्कूल व अन्य शिक्षण संस्थानों की कुछ सेवाओं को फिर से सर्विस टैक्स के दायरे में लाने के प्रस्ताव पर काम करना शुरू कर दिया है।
बोर्ड खासतौर पर स्कूलों द्वारा फ्रेंचाइजी, ईवेंट और बसों के संचालन से होने वाली कमाई को टैक्स के दायरे में लाने की संभावनाएं तलाश रहा है। हालांकि, अभी सिर्फ नॉन प्रॉफिट संस्था, ट्रस्ट या कंपनी को ही स्कूल खोलने की इजाजत है लेकिन हाल के वर्षों में शिक्षा क्षेत्र में कॉरपोरेट जगत की दिलचस्पी बढ़ी है। स्कूलों के अलावा शिक्षा होम ट्यूशन, कोचिंग आदि का कारोबार बढ़ रहा है।
दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष आरसी जैन का कहना है कि कानूनन कोई स्कूल फ्रेंचाइजी नहीं दे सकता है। सिर्फ अपना नाम इस्तेमाल करने की छूट दे सकता है लेकिन इसके एवज में भी वह कमाई नहीं कर सकता।
जैन का कहना है कि सरकार पहले भी शिक्षा पर सर्विस टैक्स लगा चुकी है, जिनका स्कूलों ने जमकर विरोध किया था। गैर सहायता प्राप्त स्कूलों केसंगठनों से जुड़े एसकेभट्टाचार्य का कहना है अगर सरकार शिक्षा का व्यवसायीकरण रोकने की बात करती है लेकिन स्कूलों से प्रॉपर्टी टैक्स, पानी और बिजली का बिल व्यवसायिक दरों से वसूला जाता है। यह सरकार की दोहरी नीति है।
टैक्स मामलों के अधिवक्ता हितेंद्र मेहता का कहना है कि मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों द्वारा ली जाने वाली सेवाएं जैसे बसों का संचालन, कैटरिंग, ईवेंट मैनेजमेंट आदि फिलहाल सर्विस टैक्स से मुक्त हैं। लेकिन जिस तरह शिक्षण संस्थानों की गतिविधियां बढ़ रही हैं, इन पर सरकार टैक्स लगा सकती है।
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाले एडवोकेट अशोक अग्रवाल का कहना है कि कानून शिक्षण संस्थानों को मुनाफा कमाने की छूट नहीं देता लेकिन स्कूलों की कमाई किसी से छिपी नहीं है। सेवा के बजाय यह कारोबार बन चुका है।
2,500 अरब का शिक्षा बाजार
सलाहकार फर्म टैकभनोपैक केअनुमान के मुताबिक, देश में करीब ढाई लाख से ज्यादा प्राइवेट स्कूल हैं और भारत में स्कूली शिक्षा का बाजार 44 अरब डॉलर (करीब 2,500 अरब रुपये) से भी ज्यादा बड़ा है। स्कूलों पर सर्विस टैक्स लगने से सरकार के राजस्व में भारी इजाफा हो सकता है। लेकिन स्कूल टैक्स का बोझ आखिर में अभिभावकों पर ही डालेंगे और पढ़ाई का खर्च बढ़ेगा।
मोटी कमाई करने वाले स्कूलों से सरकार सर्विस टैक्स वसूलने के रास्ते तलाश रही है। समाज सेवा के नाम पर टैक्स छूट का लाभ उठाने वाले और फ्रेंचाइजी समेत कई तरीकों से कमाई करने वाले स्कूलों पर वित्त मंत्रालय की नजर है। पिछले साल सरकार ने शिक्षण संस्थानों को सर्विस टैक्स के दायरे से मुक्त रखने का फैसला किया था। लेकिन आगामी बजट में सरकार स्कूलों की कुछ सेवाओं पर कर लगाने की तैयारी कर रही है।
वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाले केंद्रीय उत्पाद व सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने स्कूल व अन्य शिक्षण संस्थानों की कुछ सेवाओं को फिर से सर्विस टैक्स के दायरे में लाने के प्रस्ताव पर काम करना शुरू कर दिया है।
बोर्ड खासतौर पर स्कूलों द्वारा फ्रेंचाइजी, ईवेंट और बसों के संचालन से होने वाली कमाई को टैक्स के दायरे में लाने की संभावनाएं तलाश रहा है। हालांकि, अभी सिर्फ नॉन प्रॉफिट संस्था, ट्रस्ट या कंपनी को ही स्कूल खोलने की इजाजत है लेकिन हाल के वर्षों में शिक्षा क्षेत्र में कॉरपोरेट जगत की दिलचस्पी बढ़ी है। स्कूलों के अलावा शिक्षा होम ट्यूशन, कोचिंग आदि का कारोबार बढ़ रहा है।
दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष आरसी जैन का कहना है कि कानूनन कोई स्कूल फ्रेंचाइजी नहीं दे सकता है। सिर्फ अपना नाम इस्तेमाल करने की छूट दे सकता है लेकिन इसके एवज में भी वह कमाई नहीं कर सकता।
जैन का कहना है कि सरकार पहले भी शिक्षा पर सर्विस टैक्स लगा चुकी है, जिनका स्कूलों ने जमकर विरोध किया था। गैर सहायता प्राप्त स्कूलों केसंगठनों से जुड़े एसकेभट्टाचार्य का कहना है अगर सरकार शिक्षा का व्यवसायीकरण रोकने की बात करती है लेकिन स्कूलों से प्रॉपर्टी टैक्स, पानी और बिजली का बिल व्यवसायिक दरों से वसूला जाता है। यह सरकार की दोहरी नीति है।
टैक्स मामलों के अधिवक्ता हितेंद्र मेहता का कहना है कि मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों द्वारा ली जाने वाली सेवाएं जैसे बसों का संचालन, कैटरिंग, ईवेंट मैनेजमेंट आदि फिलहाल सर्विस टैक्स से मुक्त हैं। लेकिन जिस तरह शिक्षण संस्थानों की गतिविधियां बढ़ रही हैं, इन पर सरकार टैक्स लगा सकती है।
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाले एडवोकेट अशोक अग्रवाल का कहना है कि कानून शिक्षण संस्थानों को मुनाफा कमाने की छूट नहीं देता लेकिन स्कूलों की कमाई किसी से छिपी नहीं है। सेवा के बजाय यह कारोबार बन चुका है।
2,500 अरब का शिक्षा बाजार
सलाहकार फर्म टैकभनोपैक केअनुमान के मुताबिक, देश में करीब ढाई लाख से ज्यादा प्राइवेट स्कूल हैं और भारत में स्कूली शिक्षा का बाजार 44 अरब डॉलर (करीब 2,500 अरब रुपये) से भी ज्यादा बड़ा है। स्कूलों पर सर्विस टैक्स लगने से सरकार के राजस्व में भारी इजाफा हो सकता है। लेकिन स्कूल टैक्स का बोझ आखिर में अभिभावकों पर ही डालेंगे और पढ़ाई का खर्च बढ़ेगा।