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उद्योग जगत की आगामी वित्तीय वर्ष की योजनाओं का खाका आरबीआई की मौद्रिक नीति समीक्षा के आधार पर जल्द बनना शुरू हो सकता है। बिजली, सड़क समेत तमाम बुनियादी क्षेत्रों के विस्तार में बड़ी बाधा बन चुकी वित्तीय मजबूरी को खत्म करने में रेपो दर और सीआरआर में कटौती का लाभ जल्द उद्योग जगत को मिलने की उम्मीद है। वहीं, जानकार मानते हैं कि कंज्यूमर ड्यूरेबल उत्पादों की मांग और निर्यात बढ़ाने के लिए भी रेपो दर और सीआरआर में कटौती बड़ी राहत लेकर आएगी।
उद्योग संगठन फिक्की से जुड़ी कई कंपनियों ने कहा है कि आरबीआई के कदम से आगामी वित्तीय वर्ष में भी ब्याज दरों में कटौती की संभावना बनती नजर आ रही है। आर्थिक विकास अब आरबीआई के एजेंडे में भी प्राथमिकता से होने के कारण कंपनियों के औद्योगिक समस्याओं का हल जल्द निकलने की उम्मीद है। यही वजह है कि आईटी, इंजीनियरिंग और कंज्यूमर ड्यूरेबल उत्पाद बनाने वाली कंपनियों ने आगामी वित्तीय वर्ष की विस्तार योजनाओं पर अब गंभीरता से बात आगे बढ़ने की बात कही है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के अर्थशास्त्री एसके मंडल का कहना है कि देश की कई बड़ी ढांचागत, रीयल एस्टेट, नागरिक उड्डयन से जुड़ी परियोजनाओं की राह आरबीआई की पहल से आसान हो सकती है। वहीं लगातार घट रहे निर्यात के आंकड़े को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि देश में दो बड़ी कंपनियां जीएमआर और जीवीके के राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के साथ करार टूटने के पीछे वित्तीय अक्षमता को जानकार बड़ी वजह मानते हैं। वहीं, देश की कई ढांचागत परियोजनाएं ठंडे बस्ते में जाने का कारण भी नकदी की कमी रही है। मंडल का मानना है कि अगर व्यवसायिक बैंक ब्याज दरों में कटौती करते हैं, तो इसका लाभ इन तमाम परियोजनाओं को होगा।
उद्योग जगत की आगामी वित्तीय वर्ष की योजनाओं का खाका आरबीआई की मौद्रिक नीति समीक्षा के आधार पर जल्द बनना शुरू हो सकता है। बिजली, सड़क समेत तमाम बुनियादी क्षेत्रों के विस्तार में बड़ी बाधा बन चुकी वित्तीय मजबूरी को खत्म करने में रेपो दर और सीआरआर में कटौती का लाभ जल्द उद्योग जगत को मिलने की उम्मीद है। वहीं, जानकार मानते हैं कि कंज्यूमर ड्यूरेबल उत्पादों की मांग और निर्यात बढ़ाने के लिए भी रेपो दर और सीआरआर में कटौती बड़ी राहत लेकर आएगी।
उद्योग संगठन फिक्की से जुड़ी कई कंपनियों ने कहा है कि आरबीआई के कदम से आगामी वित्तीय वर्ष में भी ब्याज दरों में कटौती की संभावना बनती नजर आ रही है। आर्थिक विकास अब आरबीआई के एजेंडे में भी प्राथमिकता से होने के कारण कंपनियों के औद्योगिक समस्याओं का हल जल्द निकलने की उम्मीद है। यही वजह है कि आईटी, इंजीनियरिंग और कंज्यूमर ड्यूरेबल उत्पाद बनाने वाली कंपनियों ने आगामी वित्तीय वर्ष की विस्तार योजनाओं पर अब गंभीरता से बात आगे बढ़ने की बात कही है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के अर्थशास्त्री एसके मंडल का कहना है कि देश की कई बड़ी ढांचागत, रीयल एस्टेट, नागरिक उड्डयन से जुड़ी परियोजनाओं की राह आरबीआई की पहल से आसान हो सकती है। वहीं लगातार घट रहे निर्यात के आंकड़े को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि देश में दो बड़ी कंपनियां जीएमआर और जीवीके के राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के साथ करार टूटने के पीछे वित्तीय अक्षमता को जानकार बड़ी वजह मानते हैं। वहीं, देश की कई ढांचागत परियोजनाएं ठंडे बस्ते में जाने का कारण भी नकदी की कमी रही है। मंडल का मानना है कि अगर व्यवसायिक बैंक ब्याज दरों में कटौती करते हैं, तो इसका लाभ इन तमाम परियोजनाओं को होगा।