दिव्य गुप्त विज्ञान यानी सीक्रेट साइंस। पांच हजार साल पुरानी यह विद्या जब संसार से विलुप्त हो गई, तब एक संत ने संगम की रेती पर इस विद्या को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है। शक्तिपात (ट्रांसफर ऑफ एनर्जी) के जरिये अपनी ऊर्जा को दूसरे के शरीर में स्थानांतरित कर उसे रोगमुक्त बनाने में इस विद्या का इस्तेमाल किया जाता है।
कुंभ नगरी के सेक्टर दस में सद्गुरु कॉन्सियेसनेस सोसाइटी के शिविर में आए कृष्णायन जी महाराज का उद्देश्य है कि इस विद्या को पूरे विश्व में फैलाया जाए। वह अपने सैकड़ों शिष्यों को इस विद्या में पारंगत भी कर चुके हैं।
गंभीर रोगों से छुटकारा
कृष्णायन जी महाराज के अनुसार इस विद्या को तीन चरणों में सीखा जाता है। पहला चरण 24 घंटे का होता है, जिसे साधक कहते हैं। 21 दिन बाद दूसरे चरण का नंबर आता है, जिसे सिद्ध कहते हैं और दो माह बाद तीसरा एवं अंतिम चरण होता है, जिसे सिद्धा सिद्ध कहते हैं। इस विद्या के माध्यम से गंभीर रोगों से छुटकारा मिल सकता है और बच्चों का आईक्यू भी बढ़ाया जा सकता है।
बक्सर (बिहार) में जन्में 63 वर्षीय कृष्णायन जी महाराज बताते हैं कि 28 साल की उम्र में इस विद्या की ओर उनका खिंचाव बढ़ा और तभी उन्होंने तय किया कि संसार से विलुप्त हो चुकी इस विद्या को वह पुनर्जीवित करेंगे।