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कुंभ मेले में अजब-गजब बाबाओं की कमी नहीं है। इन्हीं में से एक बरईपुर के रामूदास बचपन से तुलसी की माला बना रहे हैं। वह तुलसी के पेड़ की लकड़ी से माला बनाते हैं और एक माला बनाने में उन्हें तीन दिन का समय लगता है।
काम कठिन है लेकिन उनकी लगन से इस कार्य को भी बौना साबित कर दिया है। माला बनाने का वह पैसा नहीं लेते। माला अपने गुरू को समर्पित कर देते हैं और गुरू के माध्यम से तुलसी की माला अनुयायियों के बीच वितरित कर दी जाती है।
बरईपुर (छोटा मीराजापुर) के 65 वर्षीय रामू दास को भी ठीक से याद नहीं कि वह तुलसी की माला कब से बना रहे हैं। इन दिनों वह सेक्टर दस में स्थित सद्गुरु कॉन्सिएसनेस सोसाइटी के शिविर में रहकर मालाएं तैयार कर रहे हैं। वह बचपन से यह काम कर रहे हैं। तुलसी की माला बनाने के लिए औजार के नाम पर उनके पास महज एक चाकू और हाथ से चलने वाली छोटी सी मशीन है।
माला बनाने की प्रक्रिया
माला तुलसी के पौधे की लकड़ी से बनाते हैं। वैसे तो माला बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मशीन भी आती है, जिससे एक दिन में दर्जनों मालाएं तैयार की जा सकती हैं लेकिन रामू दास का मानना है कि हाथ से माला बनाने का सुख और महत्व अलग है। हाथ से बनी तुलसी की माला ज्यादा प्रभावकारी होती है। हालांकि हाथ से तीन दिन में एक माला ही तैयार हो पाती है।
इसके लिए सबसे पहले तुलसी के पौधे की लकड़ी को बारीकी से छीलना पड़ता है। इसके बाद उसके 108 छोटे-छोटे टुकड़े करने पड़ते हैं। हर टुकड़े में छेद करना पड़ता है और उन टुकड़ों को धागे में पिरोकर माला तैयार किया जाता है। रामू दास यह माला अपने गुरू कृष्णायन जी महाराज को समर्पित कर देते हैं और गुरू इस माला को अपने अनुयायियों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं।
रामू दास के अनुसार तुलसी की माला पहनने से तन और मन शीतल रहता है। अच्छे विचार आते हैं और ह्रदय में भक्ति भाव जागृत होता है।
कुंभ मेले में अजब-गजब बाबाओं की कमी नहीं है। इन्हीं में से एक बरईपुर के रामूदास बचपन से तुलसी की माला बना रहे हैं। वह तुलसी के पेड़ की लकड़ी से माला बनाते हैं और एक माला बनाने में उन्हें तीन दिन का समय लगता है।
काम कठिन है लेकिन उनकी लगन से इस कार्य को भी बौना साबित कर दिया है। माला बनाने का वह पैसा नहीं लेते। माला अपने गुरू को समर्पित कर देते हैं और गुरू के माध्यम से तुलसी की माला अनुयायियों के बीच वितरित कर दी जाती है।
बरईपुर (छोटा मीराजापुर) के 65 वर्षीय रामू दास को भी ठीक से याद नहीं कि वह तुलसी की माला कब से बना रहे हैं। इन दिनों वह सेक्टर दस में स्थित सद्गुरु कॉन्सिएसनेस सोसाइटी के शिविर में रहकर मालाएं तैयार कर रहे हैं। वह बचपन से यह काम कर रहे हैं। तुलसी की माला बनाने के लिए औजार के नाम पर उनके पास महज एक चाकू और हाथ से चलने वाली छोटी सी मशीन है।
माला बनाने की प्रक्रिया
माला तुलसी के पौधे की लकड़ी से बनाते हैं। वैसे तो माला बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मशीन भी आती है, जिससे एक दिन में दर्जनों मालाएं तैयार की जा सकती हैं लेकिन रामू दास का मानना है कि हाथ से माला बनाने का सुख और महत्व अलग है। हाथ से बनी तुलसी की माला ज्यादा प्रभावकारी होती है। हालांकि हाथ से तीन दिन में एक माला ही तैयार हो पाती है।
इसके लिए सबसे पहले तुलसी के पौधे की लकड़ी को बारीकी से छीलना पड़ता है। इसके बाद उसके 108 छोटे-छोटे टुकड़े करने पड़ते हैं। हर टुकड़े में छेद करना पड़ता है और उन टुकड़ों को धागे में पिरोकर माला तैयार किया जाता है। रामू दास यह माला अपने गुरू कृष्णायन जी महाराज को समर्पित कर देते हैं और गुरू इस माला को अपने अनुयायियों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं।
रामू दास के अनुसार तुलसी की माला पहनने से तन और मन शीतल रहता है। अच्छे विचार आते हैं और ह्रदय में भक्ति भाव जागृत होता है।