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नागा और राजयोग? अखाड़ों के बारे में जो नहीं जानते, उन्हें यह जान हैरानी हो सकती है। केवल राजयोग ही क्यों, खूनी नागा, खिचड़ी नागा, बर्फानी नागा, नागाओं को लेकर ऐसा तमाम शब्द प्रचलित हैं जो श्रद्धालुओं को हैरान करते हैं लेकिन महाकुंभ नगर में हर सवाल का जवाब है।
नागा बनने वाले ज्यादातर साधु चाहते हैं कि उन्हें संगम नगरी में ही इसका मौका मिले। अखाड़ों के बीच मान्यता है कि इलाहाबाद के कुंभ में नागा बनने वाले संन्यासियों को राजयोग मिलता है। शायद इसीलिए उन्हें राजराजेश्वर नागा कहते हैं। इसके विपरीत उज्जैन के कुंभ में जो नागा बनते हैं, उन्हें ‘खूनी’ नागा की संज्ञा दी जाती है।
उज्जैन में महाकाल की पूजा होती है और गर्मी के मौसम में कुंभ का आयोजन होता है। मान्यता है कि इसका प्रभाव उज्जैन में नागा बनने वाले संन्यासियों के स्वभाव पर भी पड़ता है। इसी वजह से उज्जैन में नागा बनने वाले गुस्सैल होते हैं।
हरिद्वार के कुंभ में नागा बनने वाले संन्यासियों को ‘बर्फानी’ नागा कहा जाता है। हरिद्वार चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है और कुंभ के अन्य आयोजन स्थलों के मुकाबले हरिद्वार में ठंड ज्यादा पड़ती है। इसलिए वहां नागा बनने वाले संन्यासी शांत प्रवृत्ति के होते हैं। नासिक में नागा बनने वालों को ‘खिचड़ी’ नागा कहा जाता है।
तपोनिधि आनंद अखाड़े के थानापति भैरोगिरी जी महाराज के मुताबिक इलाहाबाद का कुंभ ठंड के मौसम में पड़ता है, हरिद्वार का कुंभ ठंड के मौसम में शुरू होकर गर्मी में समाप्त होता है। उज्जैन का कुंभ गर्मी और नासिक का कुंभ बारिश के मौसम में होता है।
नागा कुंभ में ही बनाए जाते हैं और इस दौरान कुंभ क्षेत्र का मौसम और वहां की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि नागा के स्वभाव को पूरी तरह से प्रभावित करती है। भैरोगिरी जी महाराज के अनुसार वह खुद इसके एक उदाहरण हैं। उन्हें इलाहाबाद के कुंभ में नागा बनाया गया था और नागा बनने के बाद से ही वह शान से जीवन बिता रहे हैं।
नागा और राजयोग? अखाड़ों के बारे में जो नहीं जानते, उन्हें यह जान हैरानी हो सकती है। केवल राजयोग ही क्यों, खूनी नागा, खिचड़ी नागा, बर्फानी नागा, नागाओं को लेकर ऐसा तमाम शब्द प्रचलित हैं जो श्रद्धालुओं को हैरान करते हैं लेकिन महाकुंभ नगर में हर सवाल का जवाब है।
नागा बनने वाले ज्यादातर साधु चाहते हैं कि उन्हें संगम नगरी में ही इसका मौका मिले। अखाड़ों के बीच मान्यता है कि इलाहाबाद के कुंभ में नागा बनने वाले संन्यासियों को राजयोग मिलता है। शायद इसीलिए उन्हें राजराजेश्वर नागा कहते हैं। इसके विपरीत उज्जैन के कुंभ में जो नागा बनते हैं, उन्हें ‘खूनी’ नागा की संज्ञा दी जाती है।
उज्जैन में महाकाल की पूजा होती है और गर्मी के मौसम में कुंभ का आयोजन होता है। मान्यता है कि इसका प्रभाव उज्जैन में नागा बनने वाले संन्यासियों के स्वभाव पर भी पड़ता है। इसी वजह से उज्जैन में नागा बनने वाले गुस्सैल होते हैं।
हरिद्वार के कुंभ में नागा बनने वाले संन्यासियों को ‘बर्फानी’ नागा कहा जाता है। हरिद्वार चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है और कुंभ के अन्य आयोजन स्थलों के मुकाबले हरिद्वार में ठंड ज्यादा पड़ती है। इसलिए वहां नागा बनने वाले संन्यासी शांत प्रवृत्ति के होते हैं। नासिक में नागा बनने वालों को ‘खिचड़ी’ नागा कहा जाता है।
तपोनिधि आनंद अखाड़े के थानापति भैरोगिरी जी महाराज के मुताबिक इलाहाबाद का कुंभ ठंड के मौसम में पड़ता है, हरिद्वार का कुंभ ठंड के मौसम में शुरू होकर गर्मी में समाप्त होता है। उज्जैन का कुंभ गर्मी और नासिक का कुंभ बारिश के मौसम में होता है।
नागा कुंभ में ही बनाए जाते हैं और इस दौरान कुंभ क्षेत्र का मौसम और वहां की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि नागा के स्वभाव को पूरी तरह से प्रभावित करती है। भैरोगिरी जी महाराज के अनुसार वह खुद इसके एक उदाहरण हैं। उन्हें इलाहाबाद के कुंभ में नागा बनाया गया था और नागा बनने के बाद से ही वह शान से जीवन बिता रहे हैं।