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महाकुंभ में पहली बार संन्यासिनी दशनामी अखाड़े के गठन के बाद यह राय भी उभरी है कि शाही स्नान में महिला संतों को प्राथमिकता दी जाए। महिला संतों ने इसे प्रमुखता से उठाने की तैयारी भी कर ली है। उनका तर्क है कि जब दुनिया में हर जगह लेडीज फर्स्ट की अवधारणा है तो संत समाज इसे दरकिनार कैसे कर सकता है।
महिला महामंडलेश्वरों की इस मांग से परंपरा को लेकर नया विवाद उभर सकता है हालांकि उनका यह कहना है कि संत समाज महिलाओं को देवी रूप में मानता है इसलिए शाही स्नान में आचार्य महामंडलेश्वर के बाद चलने की मांग को मनाने में पीछे नहीं हटेंगे।
संगम की रेती पर आने वाली महिला संतों के हौसले बुलंद हैं। इस बार महाकुंभ में अखाड़ों की ओर से महामंडलेश्वर बनाए जाने का क्रम भी महिला संतों से शुरू हुआ। महानिर्वाणी ने पहले वेद भारती को महामंडलेश्वर बनाया। उसके बाद निरंजनी अखाड़े ने निर्भयानंद पुरी को महामंडलेश्वर के तौर पर मान्यता दी।
इसी दौरान महिला संन्यासियों की टोली माईबाड़े को अखाड़े का दर्जा मिल गया। महिला संन्यासियों की संख्या भी तेजी से बढ़ी। अब महिलाओं की मांग है कि उन्हें शाही स्नान के जुलूस में आचार्य महामंडलेश्वर के बाद चलने का मौका दिया जाए।
संन्यासिनी अखाड़े में हो महिला संतों का पंजीकरण
संन्यासिनी अखाड़े की अध्यक्ष देव्या गिरि की मांग है कि दशनामी अखाड़ों की महिला संत, महंत एवं महामंडलेश्वरों का पंजीकरण संन्यासिनी अखाड़े में किया जाए। उनका कहना है कि अखाड़े उन्हें सूचना दें कि किस महिला संत को पदाधिकारी बनाया जाएगा। उन्होंने सभी अखाड़ों से लिस्ट भी मांगने का मन बनाया है।
ध्वजा ही अलग नहीं, संस्कार भी अलग
महिला संतों ने मांग उठाई है कि मौनी अमावस्या को संत परंपरा में दीक्षित होने वाली संन्यासिनियों का दीक्षा संस्कार जूना अखाड़े की धर्मध्वजा के बजाए उनके शिविर में स्थापित धर्मध्वजा के नीचे ही हो। संन्यासिनी अखाड़ा की अध्यक्ष श्रीमहंत देव्यागिरि के मुताबिक दशनामी संन्यासी अखाड़े से अलग संन्यासिनी अखाड़े के तौर पर मान्यता मिली है। महिला संतों ने अलग ध्वजा फहराई है। उनका कहना है कि हमारा अगला कदम अपनी ध्वजा के नीचे ही संस्कार कराना है।
संत समाज में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है। शाही स्नान में आचार्य महामंडलेश्वर के पीछे पहले नंबर पर चलने की मांग इसी भाव को साकार करने के लिए है। परंपरा न बदली तो नई महामंडलेश्वर को वरीयता क्रम में सबसे पीछे चलना पड़ेगा जो संत समाज की मर्यादा के विपरीत है।-गुरु मां आनंदमयी पुरी, महामंडलेश्वर, निरंजनी अखाड़ा
महाकुंभ में पहली बार संन्यासिनी दशनामी अखाड़े के गठन के बाद यह राय भी उभरी है कि शाही स्नान में महिला संतों को प्राथमिकता दी जाए। महिला संतों ने इसे प्रमुखता से उठाने की तैयारी भी कर ली है। उनका तर्क है कि जब दुनिया में हर जगह लेडीज फर्स्ट की अवधारणा है तो संत समाज इसे दरकिनार कैसे कर सकता है।
महिला महामंडलेश्वरों की इस मांग से परंपरा को लेकर नया विवाद उभर सकता है हालांकि उनका यह कहना है कि संत समाज महिलाओं को देवी रूप में मानता है इसलिए शाही स्नान में आचार्य महामंडलेश्वर के बाद चलने की मांग को मनाने में पीछे नहीं हटेंगे।
संगम की रेती पर आने वाली महिला संतों के हौसले बुलंद हैं। इस बार महाकुंभ में अखाड़ों की ओर से महामंडलेश्वर बनाए जाने का क्रम भी महिला संतों से शुरू हुआ। महानिर्वाणी ने पहले वेद भारती को महामंडलेश्वर बनाया। उसके बाद निरंजनी अखाड़े ने निर्भयानंद पुरी को महामंडलेश्वर के तौर पर मान्यता दी।
इसी दौरान महिला संन्यासियों की टोली माईबाड़े को अखाड़े का दर्जा मिल गया। महिला संन्यासियों की संख्या भी तेजी से बढ़ी। अब महिलाओं की मांग है कि उन्हें शाही स्नान के जुलूस में आचार्य महामंडलेश्वर के बाद चलने का मौका दिया जाए।
संन्यासिनी अखाड़े में हो महिला संतों का पंजीकरण
संन्यासिनी अखाड़े की अध्यक्ष देव्या गिरि की मांग है कि दशनामी अखाड़ों की महिला संत, महंत एवं महामंडलेश्वरों का पंजीकरण संन्यासिनी अखाड़े में किया जाए। उनका कहना है कि अखाड़े उन्हें सूचना दें कि किस महिला संत को पदाधिकारी बनाया जाएगा। उन्होंने सभी अखाड़ों से लिस्ट भी मांगने का मन बनाया है।
ध्वजा ही अलग नहीं, संस्कार भी अलग
महिला संतों ने मांग उठाई है कि मौनी अमावस्या को संत परंपरा में दीक्षित होने वाली संन्यासिनियों का दीक्षा संस्कार जूना अखाड़े की धर्मध्वजा के बजाए उनके शिविर में स्थापित धर्मध्वजा के नीचे ही हो। संन्यासिनी अखाड़ा की अध्यक्ष श्रीमहंत देव्यागिरि के मुताबिक दशनामी संन्यासी अखाड़े से अलग संन्यासिनी अखाड़े के तौर पर मान्यता मिली है। महिला संतों ने अलग ध्वजा फहराई है। उनका कहना है कि हमारा अगला कदम अपनी ध्वजा के नीचे ही संस्कार कराना है।
संत समाज में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है। शाही स्नान में आचार्य महामंडलेश्वर के पीछे पहले नंबर पर चलने की मांग इसी भाव को साकार करने के लिए है। परंपरा न बदली तो नई महामंडलेश्वर को वरीयता क्रम में सबसे पीछे चलना पड़ेगा जो संत समाज की मर्यादा के विपरीत है।
-गुरु मां आनंदमयी पुरी, महामंडलेश्वर, निरंजनी अखाड़ा