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This Vijay Diwas Remember the sacrifice given by our disabled soldiers do something good for them
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इस विजय दिवस- हमारे विकलांग सैनिकों द्वारा दिए गए त्याग को याद कर उनके लिए कुछ अच्छा करें
राजीव चंद्रशेखर, सांसद
Published by: सोनू शर्मा
Updated Sat, 15 Dec 2018 07:52 PM IST
आज हम विजय दिवस की 48वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, आज के दिन भारत ने पाकिस्तान के साथ 13 दिन चली लंबी लड़ाई के बाद 16 दिसंबर 1971 को विजय प्राप्त की थी। इस दिन को न सिर्फ भारत की सेना की निर्णायक विजय के रूप में देखा जाता है, अपितु यह दिन आधुनिक सैन्य इतिहास में अद्वितीय रूप से भारतीय सैनिकों की बहादुरी और साहस को जश्न के रूप में मना जाता है। इस युद्ध में करीब 3843 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे और इस युद्ध के परिणामस्वरूप पाकिस्तानी सेना ने एकपक्षीय आत्मसमर्पण किया था और फलत: बांग्लादेश नामक देश का गठन हुआ।
इस युद्ध से सैनिकों के अदम्य साहस की कई कहानियां भी सामने आईं- इसमें करीब 1313 भारतीय सैनिकों जिसमें थल सेना, नौ सेना व वायुसेना के सैनिकों को वीरता एवं अदम्य साहस के प्रदर्शन के लिए वीरता सम्मान भी प्रदान किए गए-जिसमें परम वीर चक्र भी शामिल है। जिन सैनिकों को यह परम वीर चक्र प्रदान किया गया उसमें शामिल हैं अल्बर्ट एक्का, 2/लेफ्टिनेंट अरूण खेत्रपाल, फ्लाइट ऑफिसर जीत सिंह शेखों और मेजर होशियार सिंह (बाद में ब्रिगेडियर) प्रमुख थे।
जीत कर घर वापिस आए सैनिकों में 9,851 सैनिक घायल हो गए, और उनमें से कई विकलांग भी हो गए। भारतीय सेना उन सैनिकों के सम्मान में वर्ष 2018 को 'ड्यटी के दौरान अंगहीन हुए सैनिकों के वर्ष' के रूप में मना रही है, जो देश की सेवा करते हुए अंगहीन हुए और उनके भीतर के कभी न मरने वाले सैनिक के सम्मान में आज यह दिवस मनाया जा रहा हैं। आज के दिन हमें उन कई लोगों को याद रखने की जरूरत है, जैसे मेजर जनरल इयान कारडोजो (एवीएसएम एमएम (रिटायर्ड), मेजर सुजीत कुमार पंचोली, कैप्टन भगवान सिंह जोधा और ऐसे कई सैकड़ों सैनिक जो सन् 1971 की लड़ाई में लड़े और उस दौरान अपना कोई न कोई अंग गंवा बैठे।
अपने अतुलनीय सैन्य करियर में मेजर जनरल कारडोजो ने तब अपना एक पैर गंवा दिया, जब वह 1971 के युद्ध में एक लैंडमाइन में जा घुसे। उन्होंने अपना क्षत-विक्षत हुआ पैर अपनी ही खुखरी से काट डाला और गोरखा बैटमैन से कहा, कि 'जाओ, इसको दफन कर दो।' अपनी अक्षमता को अपने सैनिक होने की राह में कोई बाधा न बनने दिया, वह भारतीय सेना के पहले अंगहीन ऑफिसर बने, जिन्होंने अपनी बटालियन को और फिर इंफेट्री ब्रिगेड को कमांड दी।
मुझे ऐसे कई हीरो से मिलने का मौका मिला, जो अंगहीन हो गए थे, पर उन्होंने अपनी अपंगता को कभी रास्ते का रोड़ा नहीं बनाया। मेजर जनरल सुनील कुमार राज़दान (कीर्ती चक्र, वीएसएम) की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। जम्मू-कश्मीर में सन् 1994 में एक आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन में गोलीबारी के दौरान वह जिंदगी भर के लिए पैराप्लेजिक हो गए। अपनी सारी बाधाओं को पार कर, वह भारतीय सेना के पहले व्हीलचेयर प्रयोग करने वाले जनरल हुए।
हां, ऐसे कई अंगहीन हुए सैनिकों की भी कहानियां भी हैं, जो अपने उचित हक के लिए दौड़ते-फिरते रहे हैं। हाल ही में मद्रास इंजीनियर ग्रुप के पूर्व-रेक्ट एक अंगहीन सैनिक वासावीरा भद्रुदू का मामला सामने आया, जिन्हें 1976 के अक्षमता पेंशन के लिए अयोग्य करार दिया गया। हालांकि उनका पेंशन पेंमेट ऑर्डर जारी हो गया था पर उन्हें इस संबंध में कोई सूचना नहीं दी गई। उनकी अस्थिर मानसिक स्थिति का मतलब था कि उन्हें 2012 तक इस संबंध में सूचित होने का लाभ नहीं मिले। इसके बाद उन्हें लगातार प्रताड़ित किया गया और उनकी बकाया राशि पर भी हाइपर टैक्निकल आपत्तियों के कारण डिफेंस अकांउट्स विभाग के अकाउंट ऑफिसर ने आपत्तियां उठाईं। तब जब उनकी याचिका को सोशिएल मीडिया के जरिए सामने लाया गया, तब संप्रति की रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारण ने अधिकाऱियों को इस मामले में संज्ञान लेने को कहा।
अंगहीन हुए सैनिकों के प्रति नौकरशाहों की दुर्भावना कोई नई नहीं है। सन 2011 में, मैंने उस समय के रक्षा मंत्री श्री एके एंटोनी के लिखा था कि वह इस संबंध में विकलांग सैनकों की अक्षमता और पेंशन लाभ के संबंध में मुकदमेबाजी को लेकर दयालु दृष्टिकोण अपनाएं जिससे उन्हें पेंशन मिलने के लाभ मिल सकें। पूर्व सैनिक के कल्याण विभाग ने एक मेमो जारी कर यह कहा कि हम उनके केस लड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। इस समय यूपीए सरकार ने अपनी तरफ से उदासीनता व्यक्त की क्योंकि ऐसे हजारों लोग थे जिन्होंने अपने अंग और/दृष्टि खो दी थी और देश की सेवा में रहते हुए लगातार स्वयं नुकसान झेला है।
फरवरी 2014 में, मैंने फिर से रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी को पत्र लिखकर मांग की कि वह डीईएसड्ब्ल्यू का आदेश वापिस लें, जिसमें पूर्व सैनिकों को विकलांगता और पेंशन लाभ से संबंधित मामलों में रक्षा मंत्रालय के खिलाफ निचली अदालतों में तय किए गए सभी मामलों में स्वयं से अपील करने के लिए कानूनी अधिकारियों की आवश्यकता थी। मेरे इस हस्तक्षेप के बाद वह आदेश वापिस ले लिया गया। वर्तमान सरकार ने मुकदमेबाजी/ अपील को न्यूनतम रखने के मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लिया और यह सुनिश्चित किया कि विकलांगता से मिलने वाले लाभों की गलत तरीके से ब्रांडिंग करके इन्हें देने से इनकार नहीं किया जा सकता है 'इसका न तो कारण निश्चित किया जा सकता है, न ही सेवा के दौरान यह बिगड़ना चाहिए।'
सैनिकों की अक्षमता, पेंशन/लाभ के विरुद्ध आई हुई अपीलों को देखते हुए पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने जुलाई 2015 में रक्षा मंत्री विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जो मुकदमेबाजी और लोक शिकायतों को कम करने के उपायों का सुझाव देती है। इन रिपोर्ट ने सैनिकों के विरुद्ध कई बेकार की अपीलों को कम करने की कोशिश की। कई सुझावों पर कार्यान्वयन के लिए सहमति बन गई और कइयों की लंबित अपील को वापिस लेने पर कोई कार्रवाई ही नहीं हुई। अपील दायर करने एवं न दायर करने के बीच में कई विरोधाभासी निर्देश के बीच फंसना आज भी दुखद रूप से जारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसी फालतू अपीलों पर कई बार अपने अवलोकन दे दिए हैं। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में रक्षा मंत्रालय द्वारा पहले से सेटल हुए मामलों को फिर से जारी करने के लिए उसकी सख्त निंदा की है।
वर्दी में हमारे पुरुष एवं महिलाओं को एवं उनके परिवारों को अक्षमता पेंशन/लाभ पाने के लिए असंवेदनशीलता, उदासीनता और लड़ाई का सामना करना पड़ता है, जो बहुत ही गहरी चिंता का विषय है और मैंने भी यह मुद्दा लगातार आती सरकारों के सामने बार-बार संसद में उठाया है।
नवंबर में रक्षा प्रवक्ता ने ट्वीट करके यह बताया कि मंत्रालय विकलांग सैनिकों के खिलाफ मुकदमेबाजी के मुद्दे पर काम कर उन्हें कम करने का प्रयास कर रहा है, साथ ही वह हितधारकों के प्रयासों को भी स्वीकार करता है, साथ ही वह बचे हुए मामलों को वापिस लेने के तरीकों पर भी काम कर रहा है। मेरा विश्वास है कि इस बार मंत्रालय सैनिकों को अच्छा आश्वासन देगा।
वर्दी पहने हमारे स्त्री-पुरुष देश की जबरदस्त सुरक्षा करते हैं और वह यह काम अपनी जिंदगी दांव पर रख एवं अपने हाथ-पांव गंवाकर भी करते हैं। कम से कम हम इतना कर सकते हैं कि हम उन्हें वह आदर एवं सम्मान दें, जिनके वह हकदार हैं और हम उन्हें यह सुनिश्चित करें कि देश उनकी सेवाओं और त्याग का कर्जदार है।
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