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Supreme Court notes insurmountable obstacles in implementation of living wills
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Supreme Court: अदालत ने लिविंग विल के कार्यान्वयन में बाधाओं पर दिया ध्यान, इच्छामृत्यु चुनने में होगी आसानी
पीटीआई, दिल्ली
Published by: Jeet Kumar
Updated Sun, 05 Feb 2023 12:36 AM IST
सार
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न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कई संशोधनों को जारी करते हुए प्रक्रिया में डॉक्टरों और अस्पतालों की भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में लिविंग विल रोगियों के चिकित्सा निर्देशों को लागू करने को लेकर याचिका दायर की गई थी। वहीं अब मरणासन्न रोगियों के अग्रिम चिकित्सा निर्देशों के कार्यान्वयन में दुर्गम बाधाओं को ध्यान में रखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे और अधिक व्यावहारिक बनाने के लिए प्रक्रिया को आसान बना दिया है।
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कई संशोधनों को जारी करते हुए प्रक्रिया में डॉक्टरों और अस्पतालों की भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। अदालत ने कहा है कि जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, उनको लेकर बड़ी संख्या में डॉक्टरों ने आवाज उठाई है और शीर्ष अदालत के लिए अपने निर्देशों पर फिर से विचार करना नितांत आवश्यक हो गया है।
अदालत ने कहा कि एक जीवित अब निष्पादक द्वारा दो अनुप्रमाणित गवाहों की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए जाएंगे, अधिमानतः स्वतंत्र, और एक नोटरी या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष प्रमाणित। इसमें एक अभिभावक या करीबी रिश्तेदार का नाम निर्दिष्ट होना चाहिए, जो प्रासंगिक समय पर निर्णय लेने में अक्षम होने की स्थिति में हो
2018 में दिया था ऐतिहासिक फैसला
निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर अपने ऐतिहासिक आदेश के चार साल से अधिक समय बाद शीर्ष अदालत ने "लिविंग विल" पर अपने 2018 के दिशानिर्देशों को संशोधित करने पर सहमति जताई थी। अदालत ने 9 मार्च, 2018 के अपने फैसले में माना था कि गरिमा के साथ मौत एक मौलिक अधिकार है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु और लिविंग विल को कानूनन वैध ठहराया था।
अदालत ने अग्रिम निर्देशों के निष्पादन की प्रक्रिया से संबंधित सिद्धांतों को निर्धारित किया था। शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले के अनुसार, दो गवाहों और प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट (JMFC) की उपस्थिति में वसीयत बनाने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किए जाने की आवश्यकता है। इसके बावजूद, जीवित इच्छा पंजीकृत करने के इच्छुक लोगों को बोझिल दिशा-निर्देशों के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिससे शीर्ष अदालत को पुनर्विचार करना पड़ रहा है।
केंद्र को लगाई थी फटकार
शीर्ष अदालत ने इससे पहले सुनवाई के दौरान निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर अब तक कानून नहीं बनाने के लिए केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। पीठ ने कहा था कि विधायिका ने अपनी विधायी जिम्मेदारी को त्याग दिया है और न्यायपालिका पर दोषारोपण कर रही है। अदालत ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि यह एक ऐसा मामला है जिस पर देश के चुने हुए प्रतिनिधियों को बहस करनी चाहिए। साथ ही इसने कहा था कि अदालत में अपेक्षित विशेषज्ञता की कमी है और यह पार्टियों द्वारा प्रदान की गई जानकारी पर निर्भर है।
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