देश ने यदि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में उच्च नैतिक मूल्यों के बजाय सैन्य संसाधनों का इस्तेमाल किया होता तो आज वह भारत का हिस्सा होता। यह बात भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरुप राहा ने कही।
राहा ने इस बात पर भी अफसोस व्यक्त किया कि भारत सरकार ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले तक अपनी वायु क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं किया। वायुसेना प्रमुख ने पीओके पर अपनी बेबाक टिप्पणी करते हुए कहा इसे देश का ‘नासूर’ करार दिया और कहा कि भारत ने यहां सुरक्षा जरूरतों के लिए कभी ‘व्यावहारिक पहल’नहीं की।
उन्होंने कहा कि देश के सुरक्षा माहौल को बिगाड़ा गया और सैन्य शक्ति के तौर पर वायुसेना की क्षमता का इस्तेमाल इस क्षेत्र के संघर्ष को रोकने के लिए किया जाना चाहिए था जिससे वहां शांति और सौहार्द का माहौल बन सके।
एयरोस्पेस सेमिनार में राहा ने कहा, ‘हमारी विदेश नीति यूएन चार्टर, गुटनिरपेक्ष आंदोलन के चार्टर और पंचशील सिद्धांत का तहेदिल से पालन करती है। हम उच्च आदर्श मूल्यों का पालन करते हैं और वास्तविक रूप से बहुत व्यावहारिक कदम नहीं उठा पाते, जो मेरी समझ से सुरक्षा के लिए जरूरी है। इस मामले में हमने हितकारी माहौल बनाने के लिए अपनी सैन्य क्षमता की भूमिका की भी अनदेखी कर दी।’
उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो प्रतिकूल स्थितियों से निपटने के लिए सैन्य क्षमता, खासकर वायुसेना क्षमता से परहेज करता रहा है और संघर्ष की स्थिति आने पर अतीत में कई बार कदम पीछे खींच चुका है।
उन्होंने कहा जम्मू कश्मीर में सन 1947 में जब छापेमारों की सेना ने हमला किया था तो भारतीय वायुसेना के परिवहन विमानों ने ही भारतीय सेना की मदद की थी और युद्ध के मैदान में साजो-सामान पहुंचाए थे। उन्होंने कहा, ‘और जब सैन्य समाधान निकलता दिखता है तो उच्च नैतिक मूल्यों की दुहाई देकर हम इस समस्या के शांतिपूर्ण समाधान के लिए यूएन चले जाते थे। लिहाजा यह समस्या अब तक बनी हुई है। पीओके अब भी हमारे लिए नासूर बना हुआ है।
सन 1965 के युद्ध में हमने राजनीतिक कारणों से पूर्वी पाकिस्तान के खिलाफ वायु क्षमता का इस्तेमाल नहीं किया जबकि पाकिस्तानी वायु सेना हमारे हवाई ठिकानों, अधोसंरचनाओें और विमानों पर हमले करता रहा। हमने गंभीर नुकसान झेला लेकिन कभी जवाबी कार्रवाई नहीं की।
सिर्फ एक बार 1971 में वायुसेना का पूर्ण इस्तेमाल किया और तीनों सेनाओं की सम्मिलित ताकत के परिणामस्वरूप ही बांग्लादेश का जन्म हुआ। लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। हम अपनी सुरक्षा करने तथा युद्ध का मुकाबला करने के लिए अपनी वायु क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं।’
देश ने यदि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में उच्च नैतिक मूल्यों के बजाय सैन्य संसाधनों का इस्तेमाल किया होता तो आज वह भारत का हिस्सा होता। यह बात भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरुप राहा ने कही।
राहा ने इस बात पर भी अफसोस व्यक्त किया कि भारत सरकार ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले तक अपनी वायु क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं किया। वायुसेना प्रमुख ने पीओके पर अपनी बेबाक टिप्पणी करते हुए कहा इसे देश का ‘नासूर’ करार दिया और कहा कि भारत ने यहां सुरक्षा जरूरतों के लिए कभी ‘व्यावहारिक पहल’नहीं की।
उन्होंने कहा कि देश के सुरक्षा माहौल को बिगाड़ा गया और सैन्य शक्ति के तौर पर वायुसेना की क्षमता का इस्तेमाल इस क्षेत्र के संघर्ष को रोकने के लिए किया जाना चाहिए था जिससे वहां शांति और सौहार्द का माहौल बन सके।
एयरोस्पेस सेमिनार में राहा ने कहा, ‘हमारी विदेश नीति यूएन चार्टर, गुटनिरपेक्ष आंदोलन के चार्टर और पंचशील सिद्धांत का तहेदिल से पालन करती है। हम उच्च आदर्श मूल्यों का पालन करते हैं और वास्तविक रूप से बहुत व्यावहारिक कदम नहीं उठा पाते, जो मेरी समझ से सुरक्षा के लिए जरूरी है। इस मामले में हमने हितकारी माहौल बनाने के लिए अपनी सैन्य क्षमता की भूमिका की भी अनदेखी कर दी।’