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Indo-Pak Border: बॉर्डर पर तस्कर क्यों लपेट रहे गीली बोरी? BSF के डबल चक्रव्यूह से नहीं बचेंगे ड्रोन-गुर्गे

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Fri, 09 Dec 2022 05:38 PM IST
सार

बीएसएफ के पास मौजूदा समय में इस्राइल के 21 'लांग रेंज रीकानिसन्स एंड ऑब्जरवेशन सिस्टम' (लोरोस) हैं। हालांकि अभी 19 लोरोस काम कर रहे हैं, तकनीकी खराबी के चलते दो उपकरण बॉर्डर साइट पर नहीं हैं। यह सिस्टम ट्राईपोर्ट पर लगता है। साथ ही इसकी ऊंचाई बढ़ाने के लिए इसे पोल पर भी लगाया जा सकता है।

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loc - फोटो : फाइल, अमर उजाला

विस्तार

पाकिस्तान से आ रहे ड्रोन, जिनमें हथियार, कारतूस और ड्रग्स के पैकेट होते हैं, उन्हें उठाने के लिए भारतीय सीमा में जो 'गुर्गे' बॉर्डर क्षेत्र में पहुंचते हैं, उन्हें पकड़ने के लिए बीएसएफ एक खास रणनीति पर काम कर रही है। ये 'गुर्गे' बहुत तेज होते हैं। सुरक्षा बलों द्वारा इन्हें पकड़ने के लिए जो तकनीक अपनाई जाती है, ये उसका तोड़ निकाल लेते हैं। जैसे हैंड हेल्ड थर्मल इमेजर (एचएचटीआई) तकनीक को गच्चा देने के लिए स्मगलर/आतंकी संगठनों के ओवर ग्राउंड वर्कर, अपने शरीर पर भीगी हुई बोरी लपेट लेते हैं। इससे उनका बॉडी तापमान नीचे चला जाता है और वे एचएचटीआई की पकड़ में आने से बच जाते हैं। बॉर्डर के निकट वे रेंग कर या कुत्ते बिल्ली की तरह चलने लगते हैं, ताकि एचएचटीआई में किसी इंसान की इमेज की बजाए जानवर की छवि दिखाई पड़े। बीएसएफ अब इन सभी तरीकों का तोड़ निकाल रही है। बहुत जल्द बॉर्डर पर ऐसे कैमरे लगेंगे, जिनकी मदद से बीस किलोमीटर दूरी तक अगर कोई कछुआ बन कर भी चलता है तो उसकी जानकारी जवानों को पता चल जाएगी। 



सर्विलांस के लिए ले रहे हैं 'लोरोस' की मदद
बीएसएफ के पास मौजूदा समय में इस्राइल के 21 'लांग रेंज रीकानिसन्स एंड ऑब्जरवेशन सिस्टम' (लोरोस) हैं। हालांकि अभी 19 लोरोस काम कर रहे हैं, तकनीकी खराबी के चलते दो उपकरण बॉर्डर साइट पर नहीं हैं। यह सिस्टम ट्राईपोर्ट पर लगता है। साथ ही इसकी ऊंचाई बढ़ाने के लिए इसे पोल पर भी लगाया जा सकता है। बॉर्डर पर लोरोस के जरिए दिन में 12 किलोमीटर दूर से किसी मानव का पता लगाया जाता है। 9 किलोमीटर दूर से व्यक्ति की पहचान हो सकती है। वाहन की बात करें तो 13 किलोमीटर से उसका पता चल जाता है, जबकि 7.5 किलोमीटर दूरी पर उसकी पहचान हो जाती है। इसके अलावा बल के पास एचएचटीआई व सर्विलांस के दूसरे उपकरण भी मौजूद हैं। बीएसएफ डीजी पंकज कुमार सिंह ने कहा था कि पाकिस्तान की ओर से जो ड्रोन आ रहे हैं, वे बदलाव किए हुए होते हैं। जैसे कंपनी से जब ड्रोन बनकर आता है तो उसमें लाइट ब्लिंक करती है। उसी लाइट को निशाना बनाकर जवान गोली चलाते थे। अब ड्रोन ब्लिंक नहीं हो रहे। ऐसे में रात या धुंध में आवाज पर ही निशाना लगाना पड़ता है। 


शरीर पर 'गीली बोरी' लपेट कर गच्चा देने का प्रयास  
चूंकि बॉर्डर के कई हिस्सों पर घना जंगल है, खेत खलियान भी होते हैं। बल के अधिकारियों का कहना है, स्मगलर या ओवर ग्राउंड वर्कर को मालूम होता है कि पाकिस्तान की ओर से ड्रोन कब आएगा। वे बॉर्डर के निकट कहीं पर छिप जाते हैं। उन्हें पता होता है कि बॉर्डर पर सर्विलांस के लिए तकनीकी उपकरण भी लगे हैं। वे जवानों को गच्चा देने का प्रयास करते हैं। इसके लिए वे अपने शरीर पर गीली बोरी या कोई दूसरा ऐसा कपड़ा, जो काफी देर तक पानी या नमी को बरकरार रख सके, लपेट लेते हैं। हालांकि उनका यह तरीका तीस चालीस मिनट ही चल पाता है। जैसे ही बोरी सूखने लगती है, वैसे ही उनके शरीर का तापमान बढ़ने लगता है। इससे उनकी पहचान 'लोरोस या एचएचटीआई' में रिकॉर्ड हो जाती है। फलां जगह पर कोई व्यक्ति चल रहा है या छिपा है, जवान तुरंत उस ओर रवाना हो जाते हैं। दूसरा, वे लोग जब छोटी मोटी झाड़ियों के इलाके में होते हैं, तो वहां पर रेंगते हुए चलते हैं। उस इलाके में जो भी जानवर बॉर्डर के आसपास ज्यादा पाया जाता है, उसी तरीके से चलने का प्रयास करते हैं। जैसे किसी इलाके में जंगली सूअर, भेड या कुत्ते आदि हैं तो वे इन्हीं की तरह दोनों चलते हैं। इसके जरिए उनका मकसद, सुरक्षा बलों को गुमराह करना होता है। रात या धुंध के समय, सर्विलांस उपकरण में उनकी छवि किसी जानवर जैसी आती है। 
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