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Gujarat Election: BJP-Congress eyeing on 14 tribal seats in second phase
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Gujarat Election: दूसरे चरण की 14 आदिवासी सीटों पर भाजपा-कांग्रेस की नजर, एमपी-राजस्थान तक दिखेगा असर
Gujarat Election: अमर उजाला से चर्चा में आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि इतने वर्षों से भाजपा गुजरात में सत्ता पर काबिज है। लेकिन इसके बाद भी हमारे मुद्दों को हल करने में नाकाम नजर आ रही है। इन चुनावों में भाजपा ने फिर हमारे हित की बाते की, लेकिन चुनाव के बाद सब भूल जाते हैं...
गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 14 आदिवासी आरक्षित पर वोटिंग हो चुकी है। अब सभी की निगाहें दूसरे चरण की उत्तर और मध्य-पूर्वी गुजरात की 13 आदिवासी सीटों पर टिकी हुई है। भाजपा और कांग्रेस अब दोनों ही दलों ने इन सीटों पर प्रचार भी तेज कर दिया है। लेकिन आज भी आदिवासी समाज अपनी समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष करते हुए नजर आ रहे हैं।
2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव परिणाम के विश्लेषण से पता चलता है कि 2012 के चुनावों में इन 13 एसटी सीटों पर 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ था। इनमें भाजपा को महज तीन और कांग्रेस को 10 सीटें हासिल हुई थीं। 2012 में पांच फीसदी से भी कम अंतर वाली तीन सीटें थीं। इसमें कांग्रेस ने दो और भाजपा ने एक सीट पर जीत हासिल की थी। 2017 के विधानसभा चुनावों में इन 13 सीटों पर 67.85 फीसदी मतदान हुआ। इनमें भाजपा को 4 और कांग्रेस को 8 सीटें हासिल हुईं। जबकि एक सीट अन्य दल की जीत हुई। 2017 में पांच सीटों पर हार जीत का अंतर पांच फीसदी से भी कम था। जिससे भाजपा और कांग्रेस दोनों को दो-दो सीटें मिली थीं।
दरअसल, गुजरात में दूसरे चरण में 14 जिलों की 93 सीटों पर वोटिंग होगी। इनमें से एक बड़ा हिस्सा मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। इसमें आदिवासी क्षेत्र पंचमहल क्षेत्र भी शामिल है। इसके अलावा प्रदेश की राजधानी गांधीनगर, अहमदाबाद, वडोदरा और आणंद जैसे शहर भी शामिल हैं। भाजपा की कोशिश है कि इस क्षेत्र में अपनी पकड़ को और मजबूत करे। इस चुनाव में कांग्रेस के कई प्रमुख नेता भाजपा में शामिल हुए हैं। इनमें आदिवासी नेता मोहन भाई राठवा प्रमुख हैं। इधर, कांग्रेस भी दूसरे चरण में होने वाले चुनावी क्षेत्र में खासकर उत्तर गुजरात में अपनी पिछली पकड़ को मजबूत रखने की पूरी कोशिश करेगी। यह क्षेत्र राजस्थान से लगा हुआ है। कांग्रेस नेता अशोक गहलोत प्रदेश में चुनावी कामकाज देख रहे हैं। ऐसे में यह क्षेत्र उनके लिए अहम है। सीमावर्ती यह क्षेत्र में दोनों राज्यों के मुद्दे व रिश्ते काफी असर रखते हैं। अगले साल एमपी और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में यह क्षेत्र दोनों पार्टियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
आदिवासियों को साधने के लिए भाजपा-कांग्रेस के अपने वादे
आदिवासी सीटों पर हमेशा से कांग्रेस पार्टी का कब्जा रहा है। यह सीटें कांग्रेस पार्टी का गढ़ कही जाती हैं। लेकिन 2022 में भाजपा ने आदिवासी समृद्धि कॉरिडोर के जरिए इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। भाजपा ने आदिवासी समाज से वन बंधु कल्याण योजना 2.0 के तहत एक लाख करोड़ रुपये आवंटित करने का वादा किया। टॉप रैंकिंग संस्थान में प्रवेश मिलने पर आदिवासी छात्रों को अनुदान देने की बात कहीं है। आदिवासी क्षेत्रों में 8 मेडिकल व 10 नर्सिंग पैरामेडिकल कॉलेज की स्थापना। इसके अलावा अंबाजी से उमरगाम तक बिरसा मुंडा आदिवासी समृद्धि कॉरिडोर बनाकर प्रत्येक जिले को 4 से 6 लाइन हाईवे से जोड़ने का वादा किया है।
कांग्रेस का वादा भूमि वन भूमि अधिकार दिलाएंगे
अपने किले को बचाने के लिए कांग्रेस ने भी आदिवासी समुदाय से कई वादे किए हैं। कांग्रेस ने वादा किया है कि पेसा अधिनियम लागू करेंगे। जिसमें ग्राम सभाओं को प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन की सत्ता होगी। वन अधिकार अधिनियम का कार्यान्वयन, जिसके तहत वन भूमि के अधिकार प्रदान किए जाएंगे। इसके अलावा वेदांता, पार-तापी लिंकेज प्रोजेक्ट से जुड़ी मंजूरी और प्रक्रियाएं रद्द कर दी जाएगी। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी एरिया डेवलपमेंट एंड टूरिज्म गवर्नेंस एक्ट निरस्त होगा। किसानों को जमीन वापस की जाएगी।
भाजपा नाकाम रही हमारे मुद्दों को हल करने में
अमर उजाला से चर्चा में आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि इतने वर्षों से भाजपा गुजरात में सत्ता पर काबिज है। लेकिन इसके बाद भी हमारे मुद्दों को हल करने में नाकाम नजर आ रही है। इन चुनावों में भाजपा ने फिर हमारे हित की बाते की, लेकिन चुनाव के बाद सब भूल जाते हैं। विपक्ष कांग्रेस और आद आदमी पार्टी ने केवल एक या दो मुद्दों को इन चुनावों में उठाया, लेकिन बाकि जरूरी मुद्दों पर किसी की नजर तक नहीं पड़ी।
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समाज के लोगों का कहना है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत 75 वर्ष या 3 पीढ़ियों हो गई हो, तो स्वामित्व अधिकार देने का प्रावधान का कानून अमल में है, लेकिन आज भी 92 हजार से ज्यादा दावे लंबित है। कई आदिवासी बस्तियों के गांवों को राजस्व गांवों के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। इसलिए वहां के आदिवासी लोगों को पंचायती राज के लाभ नहीं मिल रहे हैं। सरकारी योजनाओं का सभी लाभ ऑनलाइन मिलते हैं। लेकिन आज की स्थिति में कई आदिवासी क्षेत्रों में इंटरनेट की कनेक्टिविटी की समस्या है। प्रदेश के सरिता गायकवाड़ और मुरली गावित जैसे खिलाड़ी जनजातीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर एक भी खेल शामिल नहीं है।
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